तेजस्वी को RJD सौंपते-सौंपते पीछे क्यों हट गए लालू यादव?पूरा सियासी खेल समझिये

4 hours ago

Last Updated:June 23, 2025, 13:06 IST

Bihar Politics: तेजस्वी यादव को आरजेडी की पूरी कमान देने की कवायद के बीच आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर लालू प्रसाद यादव की वापसी ने चौंका दिया है. तेजस्वी यादव को नेतृत्व न सौंपकर लालू यादव की लीडरशिप ब...और पढ़ें

तेजस्वी को RJD सौंपते-सौंपते पीछे क्यों हट गए लालू यादव?पूरा सियासी खेल समझिये

लालू प्रसाद यादव के हाथ फिर आरजेडी की कमान. तेजस्वी को अध्यक्ष नहीं बनाने पर सवाल उठे.

हाइलाइट्स

लालू यादव को 13वीं बार आरजेडी की कमान, तेजस्वी यादव को लेकर उठे सवाल.लालू यादव की सेहत, परिवार में तनाव और 2025 चुनाव की रणनीति अहम कारण?लालू का दबदबा बरकरार रखने की कवायद या कोर वोट बैंक को एकजुट रखने की रणनीति?

पटना. बिहार की राजनीति में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर लालू प्रसाद यादव की 13वीं बार निर्विरोध वापसी ने एक बार फिर सियासी गलियारों में चर्चा छेड़ दी है. RJD के राष्ट्रीय महासचिव अब्दुल बारी सिद्दीकी ने 22 जून 2025 को घोषणा की कि लालू ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहेंगे और सभी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं. दूसरी ओर बीजेपी प्रवक्ता अजय आलोक ने तंज कसते हुए कहा, पार्टी की कमांड अभी भी छोटे नवीं के सितारे को नहीं देना चाहते, क्योंकि डर है कि दारा शिकोह और औरंगजेब वाला किस्सा घर में न हो जाए. अजय आलोक का यह बयान तेजस्वी यादव को RJD की कमान न सौंपने और लालू के नेतृत्व में बने रहने की स्थिति पर सवाल उठाता है. क्या यह लालू की मजबूरी है, रणनीति का हिस्सा या परिवार और पार्टी में बगावत का डर? क्या तेजस्वी को कमान सौंपने में कोई और राजनीतिक कारण है? यह सवाल बिहार की सियासत में 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले अहम हो गया है.

लालू की मजबूरी या रणनीति? – राजनीति के जानकार कहते हैं कि लालू प्रसाद यादव का RJD पर दबदबा बिहार की राजनीति में एक अनोखी मिसाल हैं. वर्ष 1997 में पार्टी की स्थापना से लेकर अब तक लालू इसके निर्विवाद नेता रहे हैं. लेकिन, 78 वर्ष की उम्र और कई बीमारियों-मधुमेह, हृदय रोग और किडनी की समस्याओं के बावजूद लालू का अध्यक्ष बने रहना कई सवाल खड़े करता है. सिद्दीकी ने कहा, लालू की लोकप्रियता बिहार की राजनीति में बेजोड़ है. जाहिर है सिद्दीकी का यह बयान लालू की करिश्माई छवि को बताता है जो यादव और मुस्लिम वोटरों के बीच अभी भी मजबूत है. लेकिन क्या यह तेजस्वी को कमान न सौंपने का बहाना है या सचमुच लालू यादव का प्रभाव अभी भी तेजस्वी यादव से ज्यादा है?

रणनीति का हिस्सा

राजनीति के जानकार कहते हैं कि लालू यादव का अध्यक्ष बने रहना एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है. वर्ष 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले RJD को अपने कोर वोट बैंक-यादव और मुस्लिम (M-Y)—को एकजुट रखने की जरूरत है. लालू यादव का नाम इस समुदाय के बीच अभी भी जादू की तरह काम करता है. तेजस्वी यादव को कमान सौंपने से पहले लालू शायद यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि पार्टी और गठबंधन (महागठबंधन) एक मजबूत स्थिति में हो. इसके अतिरिक्त लालू यादव का नेतृत्व NDA के ‘परिवारवाद’ के आरोपों का जवाब भी है. अगर तेजस्वी को अभी कमान दी जाती तो बीजेपी इसे ‘वंशवाद’ का मुद्दा बनाकर हमला बोलती जैसा कि अजय आलोक ने अपने बयान में इशारा किया.

मजबूरी का सवाल

हालांकि, लालू यादव की खराब सेहत एक बड़ी मजबूरी है. अब्दुल बारी सिद्दीकी ने भी स्वीकार किया कि लालू का स्वास्थ्य चिंता का विषय है. लेकिन, उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि लालू यादव की राजनीतिक जिम्मेदारियां प्राथमिकता हैं. सिद्दीकी का यह बयान यह भी बताता है कि कई वजहों से लालू यादव को कमान छोड़ने का मन नहीं है. शायद इसलिए कि तेजस्वी यादव को पूर्ण नेतृत्व सौंपने से परिवार और पार्टी में अस्थिरता का खतरा है. तेजस्वी यादव को कमान देने का मतलब होगा कि लालू की छवि पृष्ठभूमि में चली जाए जो RJD के लिए जोखिम भरा हो सकता है.

परिवार में बगावत का डर?

अजय आलोक का “दारा शिकोह और औरंगजेब” वाला तंज लालू परिवार में आंतरिक कलह की ओर इशारा करता है. तेज प्रताप यादव को 25 मई 2025 को लालू ने पार्टी और परिवार से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया था, जब तेज प्रताप ने अनुष्का यादव के साथ अपने रिश्ते की सार्वजनिक घोषणा की. इस घटना ने परिवार में तनाव को उजागर कर दिया. दरअसल, तेज प्रताप और तेजस्वी के बीच पहले भी मतभेद सामने आए हैं, और तेजस्वी को कमान सौंपने से तेज प्रताप के समर्थकों में असंतोष बढ़ सकता है. इसके अलावा लालू की बेटी मीसा भारती और पत्नी राबड़ी देवी भी पार्टी में सक्रिय हैं.

लालू परिवार की एकता पर सतर्क

तेजस्वी को नेतृत्व देने से परिवार के अन्य सदस्यों की भूमिका कम हो सकती है जिससे “औरंगजेब-दारा शिकोह” जैसी स्थिति पैदा हो सकती है.आलोक ने यह भी दावा किया कि “RJD में परिवार ही पार्टी है और पार्टी ही परिवार.” यह बयान लालू परिवार की एकता पर सवाल उठाता है. तेज प्रताप के निष्कासन को बीजेपी ने “नाटक” करार दिया, लेकिन यह साफ है कि लालू परिवार में एकता बनाए रखने के लिए सतर्क हैं. तेजस्वी को कमान सौंपने से पहले लालू शायद यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि परिवार और पार्टी में कोई बड़ा विद्रोह न हो.

आरजेडी में बगावत का खतरा

वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि RJD में लालू के अलावा अन्य वरिष्ठ नेताओं-जैसे अब्दुल बारी सिद्दीकी और जगदानंद सिंह-का प्रभाव रहा है. तेजस्वी को कमान सौंपने से इन नेताओं के बीच असंतोष पैदा हो सकता है. खासकर अगर उन्हें लगे कि युवा नेतृत्व उनकी अनदेखी कर रहा है. सिद्दीकी का बयान कि “लालू की लोकप्रियता बेजोड़ है” यह संकेत देता है कि पार्टी के पुराने नेता अभी तेजस्वी को पूर्ण नेतृत्व के लिए तैयार नहीं मानते.

महागठबंधन की एकता

RJD महागठबंधन का नेतृत्व करती है जिसमें कांग्रेस और वाम दल शामिल हैं. लालू का अनुभव गठबंधन को एकजुट रखने में मदद करता है. खासकर जब सीट-बंटवारे जैसे जटिल मुद्दों पर बातचीत हो तो तेजस्वी को कमान देने से गठबंधन में विश्वास की कमी हो सकती है, क्योंकि उनकी तुलना में लालू का कद बड़ा है.
NDA के हमले
बीजेपी और जदयू लगातार RJD पर “जंगलराज” और “वंशवाद” का आरोप लगाते हैं. लालू का नेतृत्व इन हमलों का जवाब देने में कारगर है क्योंकि उनकी छवि एक अनुभवी और जुझारू नेता की है. तेजस्वी को कमान देने से NDA को नया हमला बोलने का मौका मिलेगा.
2025 का चुनावी जोखिम

बिहार विधानसभा चुनाव (अक्टूबर-नवंबर 2025) में RJD का लक्ष्य नीतीश कुमार की सरकार को उखाड़ फेंकना है. लालू का नाम अभी भी ग्रामीण और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को लुभाता है. तेजस्वी को कमान देने से पहले लालू यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि पार्टी सत्ता में वापसी करे.

लालू के अनुभव को सियासी कमान

वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि लालू प्रसाद यादव का RJD की कमान अपने पास रखना मजबूरी और रणनीति , दोनों है. उनकी खराब सेहत और परिवार में तनाव मजबूरी हैं, लेकिन कोर वोट बैंक को एकजुट रखने, NDA के हमलों का जवाब देने और महागठबंधन को मजबूत करने की रणनीति भी साफ दिखती है. तेजस्वी को कमान सौंपने से परिवार और पार्टी में बगावत का खतरा है, खासकर तेज प्रताप और वरिष्ठ नेताओं के असंतोष के कारण. लालू शायद 2025 के चुनाव तक तेजस्वी को तैयार करना चाहते हैं, ताकि सत्ता में वापसी के बाद नेतृत्व हस्तांतरण सुगम हो. लेकिन यह रणनीति तब तक जोखिम भरी रहेगी, जब तक लालू की छवि और तेजस्वी की स्वीकार्यता के बीच संतुलन नहीं बनता.

Vijay jha

पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें

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