Last Updated:June 23, 2025, 16:32 IST
जबसे पाकिस्तानी फील्ड मार्शल असीम मलिक ने डोनाल्ड ट्रंप को शांति का नोबेल देने की बात की है, तबसे हर जगह इसकी आलोचना हो रही है. खुद ट्रंप ने कह दिया है कि यह पुरस्कार उन्हें नहीं मिल सकता. नोबेल पुरस्कार के योग...और पढ़ें

एक दो मौकों को छोड़ दिया जाय तो नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित लोग महान रहे हैं.
हाइलाइट्स
नोबल पुरस्कार को लेकर ट्रंप का बयान गैरबाजिबदावत पर गए फील्ड मार्शल असीम मुनीर ने लिया था नामपाकिस्तान में ही विरोध हो रहा, नाम वापस लेने की मांग चल रहीनोबेल पुरस्कार मीम्स और मजाक का विषय बन गया है. फिलहाल इसकी एक ही वजह है – अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को यह पुरस्कार देने की सिफारिश की गई है. सिफारिश करने वाले भी पाकिस्तानी सेना के चीफ फील्ड मार्शल असीम मुनीर हैं, जिनकी तकरीरों की वजह से उन्हें जनरल कम मौलाना ज्यादा कहा जाता है. जनरल ने अमेरिकी राष्ट्रपति के नाम की हिमायत उस वक्त की जब वे ट्रंप की दावत खाने गए थे. वैसे भी जनरल मुनीर कोई राजनेता नहीं हैं. मुल्क की ओर से अगर किसी को नोबेल के लिए नामित किया भी जाता है तो सरकार के जरिए किया जाता है. बहरहाल, जनरल मुनीर के लौटने के बाद पाकिस्तान ने भी ट्रंप के नाम की सिफारिश कर दी. इसे लेकर भी पाकिस्तान में अलग बवाल मचा हुआ है. विपक्षी दल नामनेशन वापस लेने की सरकार से मांग कर रहे हैं.
साल 1901 में अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत से नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत हुई. इसका इतिहास बहुत ही शानदार है. इसके पहले विजेता थे हेनरी डुनेंट और फ्रेडरिक पैसी. डुनेंट ने रेड क्रॉस की स्थापना की. रेड क्रॉस अब किसी के लिए अनजान नहीं है, इसने युद्ध में घायलों की मदद की. अर्थशास्त्री पैसी ने शांति आंदोलन को बढ़ावा दिया. 1919 में वुड्रो विल्सन को नोबेल मिला, उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के बाद शांति के लिए लीग ऑफ नेशंस बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई. 1964 में मार्टिन लूथर किंग जूनियर को यह सम्मान मिला. उन्होंने अमेरिका में अश्वेतों के अधिकार के लिए अहिंसक लड़ाई लड़ी. 1979 में मदर टेरेसा को गरीबों और बीमारों की सेवा के लिए पुरस्कार दिया गया. 1993 में नेल्सन मंडेला और एफ. डब्ल्यू. डी. क्लर्क को दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद खत्म करने के उनके संघर्ष के लिए सम्मानित किया गया. 2014 में मलाला यूसुफजई को शिक्षा और महिलाओं के अधिकारों के लिए नोबेल मिला. इन लोगों का योगदान अपने आप में मिसाल से कम नहीं है.
हालांकि, यह भी सही है कि पहले भी नोबेल की चयन प्रक्रिया पर कई बार सवाल उठे. 1973 में हेनरी किसिंजर को वियतनाम युद्ध खत्म करने के लिए नोबेल मिला, लेकिन उनकी युद्ध नीतियों की आलोचना हुई. 2009 में बराक ओबामा को सिर्फ शांति की उम्मीदों के लिए पुरस्कार दिया गया. कई लोगों को यह गलत लगा. इन विवादों के बावजूद नोबेल की साख बनी रही. यह पुरस्कार दुनिया को प्रेरणा देता है.
अगर इन लोगों के मुकाबले ट्रंप का मामला देखा जाए तो वे कहीं नहीं टिकते. समर्थकों की दलील है कि उन्होंने उत्तर कोरिया, इजरायल और अरब देशों के बीच समझौते कराए. उदाहरण के तौर पर, 2020 में अब्राहम समझौते से यूएई और बहरीन ने इजरायल को मान्यता दी. लेकिन क्या यह समझौते शांति के लिए थे या ट्रंप के सियासी फायदे के लिए? ट्रंप हमेशा ताकत दिखाने में यकीन रखते हैं. उनके दौर में अमेरिका ने ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाए और परमाणु समझौता तोड़ दिया. उनके भाषणों में एकता कम, बंटवारे की बात ज्यादा दिखी. ऐसे में उन्हें शांति का नोबेल देने की सिफारिश भी गंभीर नहीं लगती. यहां तक कि पाकिस्तान के कई नेताओं ने नोबल के लिए ट्रंप के नामांकन को वापस लेने की भी मांग कर दी है.
ट्रंप पर कई गंभीर आरोप भी हैं. 6 जनवरी 2021 को अमेरिकी संसद (कैपिटल हिल) पर हमला हुआ. बहुत से लोग मानते हैं कि ट्रंप के भड़काऊ भाषणों ने इसके लिए उकसाया. इसकी जांच भी हुई. उन पर पॉर्न स्टार स्टॉर्मी डेनियल्स को पैसे देकर चुप कराने का केस चला. यह पैसा उनके कथित रिश्ते को छिपाने के लिए था. ट्रंप पर अजीबो-गरीब पार्टियों में शामिल होने के आरोप भी लगे. एक कारोबारी के तौर पर उन पर अपने फायदे को देश से ऊपर रखने का आरोप है. टैक्स चोरी और धोखाधड़ी के कई केस उन पर चल रहे हैं. यहां यह भी ध्यान देने वाली बात है कि कुछ मामलों में उन पर मुकदमों की कार्रवाई इसलिए रोकी गई क्योंकि वे राष्ट्रपति चुन लिए गए.
अब बात उन्हें नामित करने वाले पाकिस्तान की. पाकिस्तानी जनरल के मुंह से शांति की बात वैसे खराब लगती है जैसे गले काटने वाला दूसरे को ईश्वर के भजन की बात सिखा रहा है. पाकिस्तानी जनरलों की ही देन रही है कि मुल्क बनने के बाद आधे से ज्यादा वक्त तक तानाशाहों की हुकूमत रही है. अगर यह कहा जाए कि फील्ड मार्शल बने असीम मुनीर खुद ही सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं तो गलत नहीं होगा.
नोबेल पुरस्कार का मकसद अच्छे काम को बढ़ावा देना है. लेकिन जब इसे गलत लोगों को देने की बात होती है, तो इसका असर कम होता है. ट्रंप जैसे नेता, जो ताकत और विवादों से घिरे हैं, इस लायक नहीं हैं. उनकी उपलब्धियां हो सकती हैं, लेकिन शांति का मतलब सिर्फ कागज पर समझौते नहीं. शांति तो दिलों को जोड़ने और समाज को बेहतर बनाने में है.
डोनाल्ड ट्रंप ने अब तक जिस तरह का व्यवहार किया है, वह किसी भी तरह से नोबेल पाने के योग्य नहीं है. यहां तक कि खुद उन्होंने यह बयान दे डाला कि शांति का नोबेल सिर्फ लिबरल लोगों को ही दिया जाता रहा है. अब वे इससे जो भी संदेश देना चाहते हों, यह तो साफ है कि यह उन्हीं लोगों को मिलना चाहिए जो व्यवहार में लिबरल यानी उदार हों. दूसरों को अपने से कम स्पेस न तो देते हों और न ही देने की सोचते हों. युद्ध के हमेशा विरोध में खड़े हों, न कि युद्ध करने वाले किसी एक तरफ से खुद ही लड़ाई में लग जाएं.
करीब ढाई दशक से सक्रिय पत्रकारिता. नेटवर्क18 में आने से पहले राजकुमार पांडेय सहारा टीवी नेटवर्क से जुड़े रहे. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद वहीं हिंदी दैनिक आज और जनमोर्चा में रिपोर्टिंग की. दिल...और पढ़ें
करीब ढाई दशक से सक्रिय पत्रकारिता. नेटवर्क18 में आने से पहले राजकुमार पांडेय सहारा टीवी नेटवर्क से जुड़े रहे. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद वहीं हिंदी दैनिक आज और जनमोर्चा में रिपोर्टिंग की. दिल...
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