क्या था अकबर का सूफियाना खाना, मंत्रों के साथ बनता, मांसरहित, आप भी आजमाएं

1 hour ago

अकबर के बारे में कहा जाता है कि वह ऐसा मुगल बादशाह था, जो शाकाहारी ज्यादा था और मांसाहारी कम. उसने शाकाहार से मिला जुला एक खाना विकसित किया, जिसे वह सूफियाना भोजन कहता था. उन्हें वह सयंम के दिनों में खाता था. वैसे अकबर की शाही रसोई में तीन तरह के भोजन बनाए जाते थे. इन्हें पकाने और बनाने का तरीका भी अलग ही था. इसे अकबर के रसोई विभाग ने अपने तरीके से विकसित किया था.

सलमा हुसैन की किताब “द एम्परर्स टेबल – द आर्ट ऑफ मुगल कुजीन” इस बारे में विस्तार से बताती है. आइन-ए-अकबरी में भीपके हुए व्यंजनों की तीन श्रेणियों के बारे में बताया गया है.

सूफियाना भोजन वो खाना होता था जो अकबर के संयम के दिनों में खाता था, इसमें मांस का उपयोग नहीं होता था. ये व्यंजन चावल, गेहूं, दाल, पालक और कुछ अन्य पत्तेदार सब्जियों के साथ शरबत आदि से बनते थे.

मसलन चावल से शीर बिरंज, ज़र्द बिरंज, खुश्का, अरीद खिचड़ी बनती थी तो गेहूं धोकर अलग करके उसमें मसाला डालकर चिखी बनाई जाती थी. दूसरे वर्ग में वे खाने शामिल थे, जिनमें चावल और मांस या गेहूं और मांस दोनों को मिलाया जाता था, जैसे पुलाव, शुल्ला, शोरबा, हलीम, हरीस, कश्क और कुतुब.

तीसरे वर्ग में मांस को घी, मसालों, दही और अंडों में पकाकर यखनी, कबाब, दोपियाज़ा, मुसम्मन, दम पुख्त और मालगुबा जैसे व्यंजन बनाए जाते थे. भोजन की ये प्रणाली पूरे मुगल साम्राज्य में जारी रही.

सूफियाना खाना क्यों खाने लगा सम्राट

दरअसल सूफियाना खाना अकबर की निजी जीवनशैली का एक दिलचस्प और अनोखा अध्याय है. ये उसकी ऐसी भोजन पद्धति थी, जिसमें वह मांस तक छोड़ देता था. क्या अकबर वास्तव में शाकाहारी बन गया था? अकबर के शासन के मध्य काल यानि 1570 से 1580 के दौरान उसका झुकाव सूफियों, योगियों, जैन आचार्यों और हिंदू संतों की ओर बढ़ा. फतेहपुर सीकरी में उसकी चर्चाओं का दायरा इतना व्यापक हो चुका था कि राजनीति से हटकर शरीर – मन – आत्मा के सवाल उठने लगे.

आत्मा की शुद्धि के लिए होता था ये खाना

इसी दौर में उसने तामसिक आहार यानि मांस और शराब को कम किया. उपवास को अपनाया. इसी से नए तरीके का आहार विकसित हुआ, जिसे सूफियाना आहार कहा गया – एक तरह का संयमित, पवित्र भोजन. अकबर इस भोजन को केवल स्वास्थ्य या स्वाद के लिए नहीं, बल्कि “आत्मिक शुद्धि” के लिए खाता था, यह भोजन अक्सर धार्मिक मंत्रों के साथ तैयार होता था. खास नियमों से गुजरता था. कई बार उसका सुफियाना भोजन ऐसा होता था कि फल या दलिया पर ही टिक जाता था.

वैसे इतिहासकारों के अनुसार, अकबर मांस बहुत कम खाता था. कई बार लंबे समय के लिए मांस त्याग देता था. कुछ समय तक वह पूरी तरह शाकाहार पर ही रहता था. फिर भी वह जीवन भर पूर्ण शाकाहारी नहीं बना।
परंतु, सूफियाना खाना के दौरान वह केवल शाकाहारी भोजन ही लेता था, और कई बार इतना हल्का कि सिर्फ फल या दलिया पर टिक जाता था।

सूफियाना खाने का दलिया

ये गेहूं, जौ और बाजरे से बनता था. जौ या गेहूं को साफ कर भूनते, फिर दरदरा पीसते. पानी में पकाते, नमक बहुत कम होता था या बिल्कुल नहीं. कभी-कभी इसमें थोड़ा दूध या छाछ मिलाकर हल्का मीठा या खट्टापन दिया जाता. यह शरीर को शांत करने वाला, पचने में आसान और “सूफियाना” सिद्धांतों के अनुरूप था.

सब्जियों का सादा ‘यखनी’ या शोरबा

आज के यखनी की तरह यह मसालेदार नहीं होती थी. अकबर के लिए यह खाना बिल्कुल हल्का, लगभग उपवास शैली का होता था. इसमें लौकी, तोरई, कद्दू, पालक, बैंगन, अरबी (बहुत कम) डाली जाती थी. सब्जियों को हल्की आंच पर उबालते. फिर अदरक, थोड़ा नमक और कभी-कभी काली मिर्च मिला देते. ये बिना घी-तेल के बनाई जाती थी. इसमें पानी का अनुपात ज्यादा होता था ताकि ये “सूफियाना शोरबा” बने.

खिचड़ी (घी रहित)

ये खाना अकबर की पसंदीदा व्यंजनों में एक था. ये खिचड़ी ज्यादातर मसूर दाल और चावल से बनती थी. कभी कभी बाजरा और मूंग से. बिना घी, बिना भारी मसालों के. सिर्फ हल्दी, नमक, कभी-कभी हल्की काली मिर्च मिलाकर. खिचड़ी अकबर के लिए आत्म-संयम का भोजन मानी जाती थी.

मौसमी फल, दूध, छाछ और खीर 

अकबर रोज सुबह फल खाता था, खासकर जब वह “सुफियाना अवधि” में होता था. इसमें वह खरबूजा, अंगूर, नारंगी, अनार, अमरूद, सेब (ये कश्मीर से आते थे). अकबर बहुत अधिक मीठा नहीं खाता था, लेकिन दूध में थोड़े चावल डालकर बनी हल्की खीर उसको पसंद थी. दलिया वाला दूध अच्छा लगता था. फलों के साथ दूध लेता था. इसमें चीनी बहुत कम और केसर-इलायची जैसी चीजें आध्यात्मिक भोजन में कम ही डाली जाती थीं.

रोटियां और सादा अन्न

अकबर गेहूं की बहुत पतली रोटियां फुलके जैसी खाता था. ये बिना घी की होती थीं. कभी-कभी वो चने के आटे या बाजरे की भी रोटी खाता था. साथ में उबली सब्जी या दही. एक दिन में 2–3 रोटियों से ज्यादा नहीं खाता था.

बादाम-पिस्ता वाला हल्का ‘मरकवा’ पानाहार

ये कोई मिठाई नहीं, बल्कि एक औषधीय-सा पेय था. बादाम भिगोकर पिसे जाते. पानी में उबालकर छाना जाता. थोड़ा दूध और थोड़ा शहद मिलाया जाता था. इसे मन को शांत करने वाला पेय माना जाता था. रात को सोने से पहले पिया जाता था.

सूफियाना खाने के नियम

सिर्फ भोजन ही नहीं, इसके साथ कई नियम भी थे. ये भोजन सूर्यास्त से पहले किया जाता था. ध्यान मुद्रा में बैठकर किया जाता था. इसमें खाने से पहले हाथ-मुंह धोना होता था. खाने के दौरान बिल्कुल बातचीत नहीं की जाती थी. ये खाना धीमी गति से खाते थे. इसमें अधिक से अधिक दो व्यंजन ही होते थे. अकबर का मानना था कि कम व ताज़ा भोजन से मन और शरीर दोनों साफ रहते हैं. सूफियाना खाना पकाने में प्याज़ -लहसुन नहीं, भारी मसाले नहीं और मिर्च का कम इस्तेमाल होता था.

मंत्रों के साथ कैसे तैयार होता था सूफियाना खाना

सूफियाना खाना बनाने वाले खानसामों को पहले स्नान करना होता था. खाना बनाने के दौरान उन्हें साफ़ और हल्के रंग के कपड़े पहनने पड़ते थे. वो रसोई में प्रवेश करने से पहले बिस्मिल्लाह या दुआ पढ़ते. वहां चप्पल पहनना वर्जित होता था. कई इतिहासकार बताते हैं कि अकबर के लिए सूफियाना खाना बनाने से पहले रसोई का फर्श गुलाबजल या पानी से पोंछा जाता था. यह वैसा ही था जैसे हिंदू-वैदिक परंपरा में हवन से पहले रसोई शुद्ध की जाती है.

रसोई में पवित्र धार्मिक उच्चारण किए जाते थे. कुछ अवसरों पर सूरह फ़ातिहा या आयतुल कुर्सी का पाठ होता था. ये मंत्रोच्चारण की तरह माना जाता था – भोजन को शुद्ध, पौष्टिक, और ‘रूहानी’ बनाने वाला.

सूफियाना भोजन पकाने वाले खानसामों को निर्देश था कि हल्ला नहीं मचाएं. क्रोध में खाना न पकाएं. हंसी – मजाक – गालीगलौच नहीं हो. रसोई में राजनीति या युद्ध की चर्चा न हो यानि रसोई का पूरा माहौल आध्यात्मिक रहे. जब भोजन बनकर पूरा हो जाता तो खानसामा दोनों हाथ उठाता, दुआ पढ़ी जाती. फिर भोजन को 10–15 सेकंड “चुप्पी” की अवस्था में रखा जाता.

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