क्या बिहार में 'स्त्री चेतना' के नायक की मुस्कान कायम रखने जा रही आधी आबादी?

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पटना. 1990 के दशक में बिहार की राजनीति जातीय पहचान की प्रयोगशाला थी, लेकिन 2005 के बाद नीतीश कुमार ने उसमें स्त्री शक्ति की चेतना का तत्व जोड़ दिया. सत्ता में आने के बाद उन्होंने ‘विकास’ को केवल सड़कों, पुलों और बिजली के आंकड़ों में नहीं देखा; उन्होंने उसे सामाजिक संरचना के सुधार से जोड़ा. उनकी राजनीति में महिला मतदाता पहली बार टारगेटेड, एक्टिव और डिसाइसिव ‘राजनीतिक विषय’ बन गईं. बिहार की स्त्रियां खामोशी के साथ मत से उस भूमिका में आ गईं जो – सत्ता का स्थायित्व तय करने लगीं. सवाल यह है कि क्या ऐसा ही 2025 विधानसभा चुनाव में फिर होने जा रहा है?

दरअसल, बिहार में बंपर वोटिंग हुई है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुस्कान फिर खिलखिलाहट में बदलने के इंतजार में है.ऐसा इसलिए कि बिहार की स्त्री शक्ति कभी राजनीतिक रूप से ‘मौन वर्ग’ की मानी जाती रहीं, पर अब अब इस लोकतंत्र की सबसे निर्णायक धुरी बन चुकी हैं. बिहार चुनाव में 69% महिला मतदान का अर्थ सिर्फ लोकतांत्रिक भागीदारी नहीं, बल्कि दो दशकों की योजनाओं का सामाजिक-राजनीतिक प्रतिफल है. यही कारण है कि नीतीश कुमार की मुस्कान एक बार फिर चर्चा में है. यह मुस्कान उस ‘मौन विश्वास’ की अभिव्यक्ति है जिसे किसी चुनावी भाषणों में नहीं , बल्कि स्त्री चेतना शक्ति पर विमर्श से समझा जा सकता है.

नीतीश के शासन में महिला विमर्श का नया अध्याय

वर्ष 2005 में जब नीतीश कुमार पहली बार सत्ता में आए, बिहार अपराध, भ्रष्टाचार और जातीय ध्रुवीकरण से जूझ रहा था. लेकिन, नीतीश कुमार ने सत्ता का केंद्र बदल दिया-जाति से समाज की ओर, पुरुषों से परिवार की ओर… और राजनीति से जीवन की ओर. उनकी रणनीति स्पष्ट थी- ‘सत्ता तभी स्थिर होगी जब समाज खुद स्थिर हो’ और इस स्थिरता का सबसे मजबूत स्तंभ के रुप में नीतीश कुमार ने महिलाओं को बिहार की राजनीति में भी स्थापित कर दिया. 2025 का बिहार चुनाव सिर्फ सत्ता का नहीं, चेतना का चुनाव है. यह वह क्षण है जब महिलाएं विकास की लाभार्थी नहीं, लोकतंत्र की निर्णायक बनती हुई दिख रही हैं.

जब नीतीश मॉडल में साइकिल बनी शक्ति का प्रतीक

बिहार में बदलाव तब शुरू हुआ, जब बालिकाओं ने साइकिल चलाई और वोट की स्याही से अपनी यात्रा शुरू की. वर्ष 2006 की मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना केवल स्कूल जाने की सुविधा नहीं थी, यह सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आरंभ थी. 9वीं कक्षा की छात्राओं को मुफ्त साइकिल दी गई ताकि वे स्कूल तक जा सकें. इस बदलाव का अर्थ बिहार ने शायद उतनी गहराई से नहीं समझा जितना वह हकदार था. साइकिल सिर्फ एक वाहन नहीं थी-यह स्त्री स्वायत्तता की प्रतीक भाषा थी. इस योजना ने न सिर्फ स्कूलों में लड़कियों की उपस्थिति 37% से बढ़ाकर 76% तक पहुंचाई. यह योजना बाद में यूनिसेफ और वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट्स में ‘case study in gender mobility’ के रूप में दर्ज हुई. इसके साथ ही बालिकाओं को दो जोड़ी यूनिफॉर्म और छात्रवृत्ति राशि दी जाने लगी. इससे स्कूल छोड़ने की दर में 60% तक कमी आई. नीतीश ने पहली बार यह समझा कि बिहार की राजनीति का भविष्य वोट बैंक में नहीं, बल्कि महिला आत्मनिर्भरता में छिपा है.

पंचायत राजनीति में स्त्री शक्ति के समाजीकरण का बड़ा प्रयोग

वर्ष 2006 में पंचायतों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण ने बिहार की सत्ता संरचना को जड़ से बदल दिया. अब हर पंचायत, हर ब्लॉक, हर ग्रामसभा में महिलाएं न केवल चुनी जा रही हैं, बल्कि निर्णय ले रही हैं. नीतीश की रणनीति थी-सत्ता को विकेंद्रित कर सत्ता को सामाजिक बनाना. इन महिलाओं ने राजनीति को नया अर्थ दिया-वह सत्ता में आईं. महिलाओं को स्थानीय निकायों में आधी सीटों पर आरक्षण मिलने का नतीजा है कि आज बिहार में 58% मुखिया और उपमुखिया महिलाएं हैं. यह भारत में जमीनी स्तर पर शासन व्यवस्था में महिलाएं (Women in grassroots governance) का सबसे बड़ा प्रयोग माना गया. 2025 में पुरुष मतदान जहां लगभग 61% रहा, वहीं महिला मतदान 69%… यह सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि नीतीश मॉडल की सामाजिक स्वीकृति का सबूत है.

महिला सशक्तिकरण और मौन विश्वास का गठजोड़

दरअसल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने कार्यकाल में स्त्री शक्ति में विश्वास जताया, नारी शक्ति की चेतना को जागृत किया और उनपर पूर्ण भरोसा जताया. उनकी मांग, आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने की ओर कई कदम बढ़ाए.  सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण 2016 में लागू किया गया. राज्य सरकार की नौकरियों (सिविल सेवाएं, पुलिस, शिक्षा आदि) में महिलाओं के लिए 35% आरक्षण लागू होने से 2016–2024 के बीच सरकारी सेवा में महिलाओं की भागीदारी 12% से बढ़कर 31% हो गई.  इसके अतिरिक्त कई ऐसै कार्य हैं जो स्त्री जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लेकर आए.

मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना 2018 में लागू की गई. इसके तहत जन्म से स्नातक करने तक हर चरण पर बालिकाओं को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है. बिहार ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत 1.3 करोड़ महिलाओं को सेल्फ हेल्प ग्रुप (SHG) से जोड़ा गया. ये महिलाएं अब छोटे व्यवसाय, डेयरी, बुनाई, बागवानी और सूक्ष्म उद्योग चला रही हैं. महिला को-ऑपरेटिव बैंक और माइक्रोफाइनेंस सुविधा दी. ग्रामीण महिलाओं को बिना जमानत छोटे ऋण उपलब्ध करवाए गए. नीतीश सरकार ने इनके लिए बैंक ऋण और बाजार से जुड़ाव की व्यवस्था दी. सामाजिक सुरक्षा-घरेलू हिंसा और असुरक्षा के खिलाफ महिला हेल्पलाइन 181 की व्यवस्था. घरेलू हिंसा, दहेज या उत्पीड़न की शिकायत के लिए टोल-फ्री हेल्पलाइन और हर जिले में महिला थाना की स्थापना. नारी निकेतन और आश्रय गृहों का सुदृढ़ीकरण के लिए काफी काम हुआ. कमजोर स्थिति की महिलाओं, विधवाओं या उत्पीड़ितों के लिए सुरक्षित आश्रय और पुनर्वास व्यवस्था की गई. दहेज और बाल विवाह निषेध अभियान 2017 में शुरू किया गया. इसके लिए उस वर्ष राज्यव्यापी मानव श्रृंखला में 4 करोड़ से अधिक लोगों ने भाग लिया. यह नीतीश कुमार का सबसे बड़ा Social Mobilization Campaign था, जल-नल योजना (हर घर नल का जल) जैसी योजनाओं से ग्रामीण महिलाओं को पानी ढोने की मजबूरी से मुक्ति दिलाने के लिए घर-घर पाइपलाइन जलापूर्ति. इस योजना का महिला जीवन पर सीधा असर पड़ा, स्वच्छता और सम्मान मिला. स्वास्थ्य, स्वच्छता और बुनियादी सुविधाएं दीं. शौचालय निर्माण के लिए अभियान को ‘इज्जतघर आंदोलन’ का नाम दिया गया यानी इसे महिलाओं के सम्मान से जोड़ा गया.महिलाओं के जीवन की गुणवत्ता सुधारने की लगातार कोशिश कर रहे.

शराबबंदी ने महिलाओं के लिए बदल दिया माहौल

बिहार में शराबबंदी 2016 में लागू हुई, जिसका उद्देश्य राज्य में शराब की बिक्री और सेवन पर रोक लगाना था. इस नीति का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के जीवन में सुधार लाना और उन्हें शराब के कारण होने वाली समस्याओं से बचाना था. इस नीति के लागू होने के बाद, महिलाओं के जीवन में कई सकारात्मक परिवर्तन आए. शराब की वजह से होने वाली घरेलू हिंसा, आर्थिक समस्याएं और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों में कमी आई. महिलाओं ने अपने जीवन में अधिक स्वतंत्रता और सुरक्षा महसूस की और उन्होंने अपने परिवारों के लिए अधिक योगदान देना शुरू किया. बिहार में शराबबंदी एक सफल नीति साबित हुई और राज्य में महिलाओं के जीवन में सुधार लाने में मदद की है.

मुस्कान उस मौन विश्वास की, जिसने बहुत कुछ बदला

बिहार की राजनीति में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी अब किसी योजना का नतीजा नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की मिसाल है. नीतीश कुमार की मुस्कान इसलिए भी खास है, क्योंकि इसमें चुनावी गणित से ज्यादा भरोसे का भाव है-उस भरोसे का जो बिहार की बेटियों, बहनों और माताओं ने पिछले दो दशकों में गढ़ा है. राजनीति में अक्सर कहा जाता है कि सत्ता नीतियों से मिलती है, लेकिन बिहार ने साबित किया कि सत्ता ‘विश्वास’ से टिकती है. नीतीश कुमार ने उस मौन वर्ग को आवाज दी, जिसने कभी अपनी मौजूदगी को वोट तक सीमित रखा था. आज वही वर्ग बिहार की दिशा तय कर रहा है. 2025 का चुनाव चाहे जैसा भी नतीजा दे, यह तय है कि बिहार की राजनीति अब महिलाओं के बिना न आगे बढ़ सकती है, न टिक सकती है.

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