क्या है अनुच्छेद 240, चंडीगढ़ को इसके दायरे में लाने को लेकर क्यों हुआ विवाद

1 hour ago

What is Article 240: केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को संविधान के अनुच्छेद 240 के दायरे में लाने के केंद्र के प्रस्ताव ने पंजाब में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है. जिससे प्रतिद्वंद्वी दल एकजुट होकर तीव्र विरोध में उतर आए हैं और केंद्र सरकार को तुरंत समझौतापूर्ण तरीके से पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा है. यह कदम शहर के प्रशासन को पंजाब के राज्यपाल से अलग कर देगा और इसे राष्ट्रपति के प्रत्यक्ष शासन के अधीन कर देगा. जिसे पंजाब के राजनीतिक परिदृश्य में राज्य की पहचान और संघीय अधिकारों पर एक बुनियादी हमले के रूप में देखा जा रहा है.

वर्तमान में, यह शहर एक केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) है और पंजाब के राज्यपाल चंडीगढ़ के प्रशासक के रूप में अतिरिक्त प्रभार संभालते हैं. इसके अलावा 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद से यह पंजाब और हरियाणा की साझा राजधानी भी है, जिसके कारण दोनों राज्यों के प्रमुख अधिनियम और कानून इस शहर पर लागू होते हैं. 1984 से पहले शहर में एक स्वतंत्र मुख्य सचिव होता था. उसके बादॉ पंजाब के राज्यपाल ने प्रशासक का पदभार संभाला और एक केंद्र शासित प्रदेश के सलाहकार ने मुख्य सचिव की भूमिका निभाई. यह प्रशासनिक ढांचा दशकों से अपरिवर्तित रहा है. पंजाब की इस शहर में निरंतर केंद्रीय भूमिका रही है.

पंजाब ने जताई तीखी प्रतिक्रिया
चंडीगढ़ को अनुच्छेद 240 के दायरे में लाने के आशय के बाद विवाद छिड़ गया. पंजाब के नेताओं ने तुरंत इस पर आपत्ति जताई और केंद्र पर चंडीगढ़ पर राज्य की ऐतिहासिक स्थिति को कमजोर करने का आरोप लगाया. तीखी प्रतिक्रिया के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक बयान जारी कर स्पष्ट किया कि प्रस्ताव केवल ‘विचाराधीन’ है और इस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है. मंत्रालय ने आश्वासन दिया कि आगामी संसद सत्र में कोई विधेयक पेश नहीं किया जाएगा और सभी हितधारकों के साथ पर्याप्त परामर्श के बाद ही कोई उपयुक्त निर्णय लिया जाएगा. इस घटनाक्रम ने चंडीगढ़ की संवैधानिक स्थिति को लेकर लंबे समय से चले आ रहे तनाव को फिर से ताजा कर दिया है. यह भी कि पंजाब इसे प्रभावित करने वाले किसी भी प्रस्ताव पर तीखी प्रतिक्रिया क्यों देता है.

1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद से चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा की साझा राजधानी है.

क्या हैं अनुच्छेद 240 के मायने
इस बहस का मूल एक महत्वपूर्ण सत्ता हस्तांतरण है. वर्तमान में चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा दोनों की संयुक्त राजधानी है. इसका प्रशासन पंजाब के राज्यपाल के हाथों में है. 1984 से लागू यह व्यवस्था पंजाब को 1966 में उसके भूभाग से अलग किए गए इस शहर से एक प्रतीकात्मक और प्रशासनिक संबंध प्रदान करती है. चंडीगढ़ को अनुच्छेद 240 के अंतर्गत लाने से इस व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन आएगा. इससे राष्ट्रपति को इस क्षेत्र की शांति, प्रगति और सुशासन के लिए नियम बनाने का अधिकार मिल जाएगा. उसका शासन ढांचा लक्षद्वीप, दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव जैसे केंद्र शासित प्रदेशों के अनुरूप हो जाएगा. महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे शहर के प्रशासक के रूप में एक समर्पित उपराज्यपाल की नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा, जिससे पंजाब से इसका प्रशासनिक संबंध टूट जाएगा और यह केंद्र के सीधे नियंत्रण में आ जाएगा.

केंद्र को मिल जाएंगी व्यापक शक्तियां
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के अनुसार, इसके निहितार्थ बहुत गहरे हैं. तीन बार सांसद रहे पवन बंसल के अनुसार इस बदलाव से केंद्र को व्यापक शक्तियां मिल जाएंगी. बंसल के हवाले से कहा गया है, “संसद द्वारा बनाया गया कोई भी अधिनियम या चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश पर लागू कोई भी अन्य कानून, संसद को दरकिनार करते हुए, केवल एक नियम बनाकर निरस्त या संशोधित किया जा सकता है, जो वर्तमान में केंद्र शासित प्रदेश के लिए कोई भी कानून बनाने के लिए केवल संसद ही सक्षम है.” उन्होंने इसे एक स्पष्ट उदाहरण से समझाया- चंडीगढ़ के मेयर के कार्यकाल में बदलाव के लिए अब संसद की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी. केंद्र सरकार का एक संयुक्त सचिव राष्ट्रपति की ओर से बस एक नोट पर हस्ताक्षर कर सकता है और यह बदलाव तुरंत लागू हो जाएगा. बंसल ने तर्क दिया कि वर्तमान प्रणाली दशकों से काम कर रही है और सुधार का ध्यान नगर निगम को सशक्त बनाने पर होना चाहिए, न कि नियंत्रण को केंद्रीकृत करने पर.

पंजाब को चंडीगढ़ से इतना लगाव क्यों
पंजाब के लिए चंडीगढ़ का महत्व विभाजन के बाद के वर्षों से है, जब राज्य ने अपनी ऐतिहासिक राजधानी लाहौर को पाकिस्तान को सौंप दिया था. शिमला, मार्च 1948 तक अस्थायी राजधानी रहा, जब केंद्र और पंजाब सरकार ने एक नए शहर के लिए हिमालय की तलहटी में जमीन का चयन किया. इस परियोजना के लिए खरड़ के 22 गांवों का अधिग्रहण किया गया. मास्टर प्लान वास्तुकार ली कोर्बुसिए ने तैयार किया था और चंडीगढ़ औपचारिक रूप से 21 सितंबर 1953 को पंजाब की राजधानी बना. इसके कुछ ही समय बाद 7 अक्टूबर 1953 को राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने राजधानी का उद्घाटन किया.

हरियाणा की अल्पकालिक राजधानी बना
पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 ने राज्य का विभाजन करके हरियाणा का निर्माण किया. सीमा पर स्थित चंडीगढ़, दोनों राज्यों की साझा राजधानी बना और इसे केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया. संपत्तियों का 60:40 के अनुपात में बंटवारा किया गया और हरियाणा को पंजाब सचिवालय और विधानसभा में अस्थायी आवास के साथ-साथ अपनी राजधानी बनाने के लिए वित्तीय सहायता भी दी गई. यह व्यवस्था अल्पकालिक थी, लेकिन उसके बाद के दशकों में हरियाणा ने कोई नई राजधानी नहीं बनायी. 29 जनवरी 1970 को केंद्र ने घोषणा की कि चंडीगढ़ का राजधानी परियोजना क्षेत्र समग्र रूप से पंजाब को मिलना चाहिए. यह निर्णय लागू नहीं हुआ और साझा-पूंजी व्यवस्था जारी रही. पंजाब के नेता अक्सर इस इतिहास का हवाला देते हुए तर्क देते हैं कि राज्य का दावा अभी भी अनसुलझा है.

केंद्र ने पहले भी की थी कोशिश
2016 में एक स्वतंत्र चंडीगढ़ प्रशासक नियुक्त करने और पंजाब के राज्यपाल द्वारा शहर का प्रभार संभालने की प्रथा को समाप्त करने के प्रयास किए गए थे. केंद्र ने केजे अल्फोंस को प्रशासक नियुक्त करने का प्रयास किया था. हालांकि, तत्कालीन शिरोमणि अकाली दल सरकार के हंगामे के बाद इस कदम को रोक दिया गया था. 1984 में पंजाब के राज्यपाल द्वारा चंडीगढ़ के प्रशासक का कार्यभार संभालने की प्रथा लागू की गयी थी. ऐसा सीमावर्ती राज्य में आतंकवाद के चरम पर होने के दौरान सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर सुचारू समन्वय सुनिश्चित करने के लिए किया गया था. उस समय पंजाब में राष्ट्रपति शासन था. इससे पहले चंडीगढ़ का प्रशासन एक मुख्य आयुक्त यानी एक सेवारत नौकरशाह द्वारा किया जाता था, जो केंद्र सरकार को रिपोर्ट करता था.

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