क्यों चुनाव आयोग ने बंगाल में 4 अफसरों को हटाने को कहा, क्या वो कर सकता है ये

3 days ago

भारतीय चुनाव आयोग ने बंगाल के 4 अफसरों को हटाने के लिए कहा है लेकिन बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया है. उन्होंने चुनाव आयोग को चुनौती भी दी है कि कोई ऐसा कानून नहीं है कि वो इन अफसरों को हटाने आदेश दे. जानते हैं कि पूरा मामला क्या है और क्यों ममता से इस मामले पर ठन गई है. नियम क्या कहते हैं.

चुनाव आयोग ने 4 अधिकारियों को वोटर सूची में फर्जी नाम जोड़ने, डेटा सुरक्षा उल्लंघन और अनाधिकृत व्यक्तियों के साथ लॉगिन क्रेडेंशियल्स साझा करने के आरोप में निलंबित किया है. कार्रवाई में दो इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन अफसर, दो सहायक इलेक्टोरल अफसर और एक डेटा एंट्री ऑपरेटर शामिल थे. कहीं कहीं हटाए जाने वाले लोगों की संख्या 4 बताई गई है तो कहीं 5.

भारतीय चुनाव आयोग ने इन सभी के खिलाफ FIR दर्ज करने और विभागीय कार्रवाई शुरू करने का निर्देश राज्य के मुख्य सचिव को दिया है. जैसे ही चुनाव आयोग ने ये आदेश दिया. बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उबल पड़ीं. उन्होंने साफ कहा कि वो किसी अफसर को नहीं हटाने वालीं. उन्होंने चुनाव आयोग पर इसके लिए सवाल उठा दिए.

ममता बनर्जी ने पूछा, “चुनाव तो लंबे समय बाद है, ऐसी कार्रवाई की अनुमति कौन-सा कानून देता है?”. उन्होंने इसे BJP के अनुकूल कदम बताते हुए चुनाव आयोग को बीजेपी का बांडेड लेबर कह दिया.

उन्होंने इस कार्रवाई को स्पेशनल इंटेसिव रिविजन (SIR) जैसे कदमों से जोड़ते हुए इसे नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस यानि NRC लागू करने की छिपी साजिश बताया. उन्होंने कहा कि वे राज्य के अफसरों की रक्षा करेंगी और FIR नहीं होने देंगी.

सवाल – क्या चुनाव आयोग इस तरह राज्य के सरकारी कर्मचारियों को हटा सकता है?

हां. चुनाव आयोग को संविधान (Article 324) और जनप्रतिनिधित्व कानून, 1950 के अंतर्गत चुनाव प्रक्रिया की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने का अधिकार है. यदि निर्वाचन अधिकारियों ने भ्रष्ट तरीके से काम किया. मतदाता सूची ठीक से नहीं बनाई या डेटा सुरक्षा नीति का उल्लंघन किया, तो भारतीय चुनाव आयोग सस्पेंशन, एफआईआर और अन्य अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकता है.

सवाल – क्या चुनाव आयोग चुनावों से पहले भी यानि चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले भी ये काम कर सकता है?

– भारतीय चुनाव आयोग ने पहले भी अन्य राज्यों में चुनाव की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए उपद्रव के जोखिम को देखते हुए वरिष्ठ अधिकारियों को हटा या स्थानांतरित किया है, जैसे कि बंगाल में डीजीपी राजीव कुमार का तबादला 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले किया गया था.

सवाल – तो फिर ममता बनर्जी क्यों चुनाव आयोग की इस कार्रवाई को चुनौती दे रही हैं?

– ममता बनर्जी चुनाव आयोग की इस कार्रवाई को चुनौती इसलिए दे रही हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ECI की कार्रवाई का “समय” और “इरादा” संदिग्ध है.
ममता का कहना है कि अभी न तो चुनाव घोषित हुए हैं, न आदर्श आचार संहिता लागू है, तो फिर चुनाव आयोग को राज्य के अधिकारियों को निलंबित करने या FIR दर्ज कराने का अधिकार किस कानून के तहत है? इसीलिए उन्होंने पूछा, “चुनाव होने में अभी काफी वक्त है. आयोग ने किस कानून के तहत यह कार्रवाई की?”

सवाल – ममता बनर्जी क्यों इसे राज्य के अधिकार क्षेत्र में दखल बता रही हैं?

– ममता बनर्जी का तर्क है कि जो अफसर राज्य सरकार के अधीन हैं, उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का अधिकार राज्य सरकार के पास है ना कि चुनाव आयोग के पास, जब तक चुनाव न चल रहे हों. उनका कहना है, “चुनाव आयोग राज्य सरकार का बॉस नहीं है. हम इन अफसरों पर FIR नहीं होने देंगे.”

सवाल – कौन से कानून भारतीय चुनाव आयोग को पूरे देश में चुनाव से जुड़े पहलुओं पर पॉवर देता है?

– चुनाव आयोग ने जनप्रतिनिधित्व कानून, 1950 और 1951 की बात तो की ही है, ये ऊपर बताया जा चुका है. इसमें उसने आर्टिकल 324 की बात भी की है, ये उसे पूरे देश में चुनाव से जुड़े सभी पहलुओं पर नियंत्रण देने की शक्ति देता है, यहां तक कि चुनाव से पहले भी, अगर वो चुनाव प्रक्रिया की पवित्रता पर असर डालता हो.

सवाल – ऐसा कदम चुनाव आयोग किन और राज्यों के खिलाफ उठा चुका है?

– चुनाव आयोग कई बार राज्यों में इस तरह की कड़ी प्रशासनिक कार्रवाई कर चुका है. पश्चिम बंगाल में वर्ष 2021में विधानसभा चुनाव से पहले फरवरी-मार्च में राज्य के ADG और होम सेक्रेट्री को हटा दिया. फिर चुनाव की घोषणा के बाद DGP वीरेंद्र को भी हटा दिया गया. वर्ष 2019 में आंध्र प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले मुख्य सचिव अनिल चंद्र पुनेठा को हटाया गया. कई पुलिस अधिकारियों का तबादला किया गया. मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने विरोध किया और आरोप लगाया कि यह केंद्र सरकार के दबाव में हुआ.

तमिलनाडु में वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव के पहले चुनाव आयोग ने चेन्नई के जिलाधिकारी और पुलिस आयुक्त को बदल दिया. विपक्ष ने निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे और इन अधिकारियों के पक्षपातपूर्ण रवैये की शिकायत की थी. उत्तर प्रदेश में वर्ष 2012 में चुनाव आयोग ने चुनाव की घोषणा होने से पहले ही कई जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को बदल दिया.

सवाल – अगर ममता ने चुनाव आयोग की बात नहीं मानी और अफसरों को नहीं हटाया तो क्या होगा?

– चुनाव आयोग राष्ट्रपति से शिकायत कर सकता है कि राज्य सरकार चुनाव प्रक्रिया में बाधा डाल रही है. ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति, राज्यपाल के ज़रिए केंद्र सरकार को रिपोर्ट सौंप सकते हैं. संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार अगर कोई राज्य संविधान के अनुसार काम नहीं कर रहा, तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है. हालांकि यह अत्यधिक स्थिति होगी और आमतौर पर ECI पहले अन्य विकल्पों को आज़माता है.

चुनाव आयोग प्रेस कॉन्फ्रेंस और नोटिफिकेशन जारी कर कह सकता है. अगर राज्य सरकार आयोग के निर्देशों का पालन नहीं कर रही है, जो संविधान का उल्लंघन है. अगर टकराव बढ़ता है, तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है. चुनाव आयोग कह सकता है कि राज्य सरकार Article 324 के तहत उसकी शक्तियों का उल्लंघन कर रही है.

सवाल – क्या चुनाव आयोग सीधे इन अफसरों को अपने काम से हटा सकता है?

– बिल्कुल. चुनाव आयोग का अधिकार है कि वह कहे कि चुनाव से संबंधित कोई काम अब इस अधिकारी को नहीं दिया जाएगा. यदि राज्य सहयोग नहीं करता, तो चुनाव आयोग भारत सरकार (केंद्र) से प्रशासनिक सहयोग की मांग कर सकता है. सार्वजनिक तौर पर राज्य सरकार को “उल्लंघनकर्ता” घोषित कर सकता है.

सवाल – वर्ष 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे एक मामले में क्या फैसला दिया था?

– 1993 में टीएन शेषण चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त थे. तब सुप्रीम कोर्ट ने माना कि चुनाव आयोग को चुनाव प्रक्रिया के संचालन और नियंत्रण का पूर्णाधिकार है, जिसमें अफसरों की नियुक्ति और हटाना भी शामिल है.

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