पटना. वर्ष 1996 में नीतीश कुमार ने संसद में चारा घोटाले और बिहार की बदहाली को लेकर लालू प्रसाद और रामविलास पासवान का नाम लेते हुए एच. डी. देवगौड़ा के नेतृत्व वाली तत्कालीन केंद्र सरकार पर जोरदार तंज कसा था. उन्होंने केंद्र की संयुक्त मोर्चा सरकार (जून 1996 से अप्रैल 1997 तक) पर लालू यादव और रामविलास पासवान को लेकर ‘बैलेंसिंग एक्ट’ का आरोप लगाया था. नीतीश कुमार का साफ कहना था कि इस तरह की संतुलनकारी राजनीति (बैलेंसिंग पॉलिटिक्स) के कारण बिहार की समस्याएं बढ़ीं. जानकार बताते हैं कि नीतीश कुमार का यह बयान उनके लालू यादव से अलगाव और समता पार्टी के गठन के बाद सियासी सुशासन का एजेंडा पेश करने का हिस्सा था, जिसने बिहार की सियासत में नया मोड़ लाया और बाद के दौर में सत्ता परिवर्तन की परिणति हुई. आइये जानते हैं कि यह किस्सा क्या था और इसका सियासी संदर्भ क्या था.
बिहार की बदहाली और जंगलराज
26 अगस्त 1996 की बात है जब केंद्र में संयुक्त मोर्चा (United Front) की सरकार (1 जून 1996 से 21 अप्रैल 1997 तक) थी, जिसके प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा थे. यह गठबंधन जनता दल, वाम दलों और क्षेत्रीय दलों जैसे- लालू प्रसाद यादव की जनता दल (बिहार) और रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (बाद में गठित) जैसे नेताओं के समर्थन पर टिकी थी. नीतीश कुमार उस दौर में भी बिहार के विकास को लेकर सवाल उठाते रहते थे. एक समय जब वह संसद में बोल रहे थे तो उनको टोकाटोकी पसंद नहीं आई और उन्होंने इस गठबंधन की रणनीति को ‘बैलेंसिंग एक्ट’ करार दिया. दरअसल, तत्कालीन केंद्र सरकार कथित तौर पर लालू यादव और रामविलास पासवान जैसे नेताओं के सामाजिक और सियासी समीकरणों को साधने में लगी थी, इसलिए उस दौर में चारा घोटाला की गंभीरता को नजरअंदाज करने के आरोप लग रहे थे. इसी बात पर नीतीश कुमार ने सदन में जोरदार अंदाज में हमला बोला जहां से उनका सियासी कद ऊंचा होता गया.
केंद्र की गठबंधन नीति पर सवाल
वर्ष 1996 में लोकसभा में नीतीश कुमार ने तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का नाम लेते हुए तत्कालीन केंद्र सरकार पर जोरदार हमला बोला था. चारा घोटाले की पृष्ठभूमि में नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार के लिए कहा, “आप बीच में तराजू लेकर एक पलड़े पर लालू जी और एक पलड़े पर पासवान जी को बिठाकर कब तक ये बैलेंसिंग एक्ट करना चाहते हैं? आज बिहार की जो समस्या है, यह आपके चलते है.” नीतीश कुमार यह बयान केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाला था, लेकिन लालू यादव के नेतृत्व वाली जनता दल सरकार और उनके सहयोगी रामविलास पासवान पर सीधा निशाना था. नीतीश कुमार ने लालू पर भ्रष्टाचार और जंगलराज का आरोप लगाते हुए बिहार की बदहाली का जिम्मेदार ठहराया था.
बयान प्रधानमंत्री पर, मगर निशाना!
नीतीश कुमार का ‘आप’ कहकर इशारा सीधे तौर पर केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री देवेगौड़ा की ओर था. वह केंद्र की उस रणनीति पर सवाल उठा रहे थे, जो लालू और पासवान जैसे नेताओं पर निर्भर थी. तब भी नीतीश कुमार का मुख्य निशाना लालू यादव थे, जिन्हें वह बिहार की समस्याओं का मूल कारण मानते थे. चारा घोटाले ने लालू की छवि को धक्का पहुंचाया था और नीतीश ने इसे भुनाने की कोशिश की. रामविलास पासवान उस समय लालू यादव के सहयोगी थे और केंद्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे. नीतीश कुमार ने रामविलास पासवान को भी निशाने पर लिया था, क्योंकि वह लालू के साथ मिलकर बिहार की सियासत में प्रभावशाली थे.
चारा घोटाले का संदर्भ, लालू यादव टारगेट
नीतीश कुमार का यह बयान उस समय आया जब चारा घोटाला उजागर हुआ था. नीतीश ने लालू पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाया और जनता दल से अलग होकर 1994 में समता पार्टी बनाई थी. उनके इस बयान का मकसद केंद्र सरकार की उस सियासी रणनीति को उजागर करने की थी जिसमें सामाजिक समीकरणों को साधने के लिए लालू यादव और रामविलास पासवान सहित अन्य नेताओं का सहारा लिया जाता था. नीतीश ने बिहार की बदहाल कानून-व्यवस्था और आर्थिक स्थिति को लालू की नीतियों का परिणाम बताया।
बिहार की बदहालीपर बिफर पड़े थे नीतीश
दरअसल, 1990 के बाद से बिहार में लालू यादव का शासनकाल था और उस दौर में बिहार ‘जंगलराज’ की बातें होने लगी थीं. हालांकि, तब तक हाईकोर्ट की जंगलराज वाली टिप्पणी नहीं आई थी, लेकिन दबी जुबान से लोग बिहार के तत्कालीन हालात की तुलना जंगलराज जैसे समानार्थी शब्दों से करने लगे थे. उस दौर में लालू प्रसाद यादव की सरकार पर कानून-व्यवस्था के पतन, बेरोजगारी, गरीबी और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप थे. नीतीश कुमार ने अपने बयान में बिहार की इन समस्याओं का जिम्मेदार लालू यादव की नीतियों और केंद्र की निष्क्रियता को ठहराया तो सदन में हंगामा हो गया.
नीतीश ने किस बात पर प्रतिक्रिया दी थी?
बता दें कि चारा घोटाला उस समय राष्ट्रीय सुर्खियों में था. नीतीश कुमार ने लालू यादव पर निशाना साधते हुए उनकी सरकार को भ्रष्ट और अक्षम बताया. उनका कहना था कि लालू यादव की नीतियों ने बिहार को आर्थिक और सामाजिक रूप से बदहाल कर दिया. वहीं, नीतीश कुमार ने तत्कालीन केंद्र सरकार पर बिहार की अनदेखी का आरोप लगाया था.
केंद्र की गठबंधन नीति पर उठाए थे सवाल
दरअसल, संयुक्त मोर्चा सरकार क्षेत्रीय नेताओं पर निर्भर थी. लालू यादव और रामविलास पासवान उस दौर में सामाजिक न्याय और दलित-पिछड़ा वर्ग की राजनीति के बड़े चेहरे थे और केंद्र सरकार के लिए महत्वपूर्ण थे. ऐसे में कई इन नेताओं से संबंधित कई गंभीर मामलों की अनदेखी करने का आरोप नीतीश कुमार ने लगाया था. तब नीतीश कुमार ने केंद्र पर तंज कसते हुए कहा कि वह इन नेताओं के बीच संतुलन बनाकर सत्ता चला रही है, जिससे बिहार की समस्याएं अनदेखी हो रही हैं.
सियासी समीकरणों के खेल में पिछड़ा बिहार
जानकार कहते हैं कि इसका कारण यह था कि तब लालू यादव और रामविलास पासवान बिहार में MY (मुस्लिम-यादव) और दलित वोट बैंक के बड़े नेता थे. नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार पर इन नेताओं के सामाजिक समीकरणों को साधने का आरोप लगाया जिसे उन्होंने ‘तराजू का बैलेंसिंग एक्ट’ कहा. उनका इशारा था कि यह सियासी जोड़-तोड़ बिहार के विकास को नुकसान पहुंचा रहा है.
लालू से अलगाव, नीतीश का सियासी मकसद
यहां यह भी बता दें कि नीतीश कुमार और लालू यादव 1980-90 के दशक में जनता दल में सहयोगी थे. नीतीश कुमार ने 1990 में लालू को मुख्यमंत्री बनवाने में मदद की थी, लेकिन बाद में उनके रिश्ते बिगड़ गए. वर्ष 1994 में नीतीश कुमार ने समता पार्टी बनाई और वह एनडीए का हिस्सा हो गए थे. उनका यह बयान उनके लालू विरोधी रुख को मजबूत करने का हिस्सा था. उस दौर में ही नीतीश कुमार ने इस बयान के जरिए बिहार में सुशासन और विकास का एजेंडा पेश किया. वह लालू यादव के ‘अराजक शासन’ के खिलाफ एक वैकल्पिक नेतृत्व की छवि बनाना चाहते थे.
बिहार की जनता को नीतीश का संदेश
नीतीश कुमार का यह बयान बिहार की जनता को यह बताने का प्रयास था कि लालू और केंद्र की नीतियां उनके हित में नहीं हैं. यह 2005 में उनकी सत्ता में आने की नींव रखने वाला कदम था. नीतीश कुमार के इस बयान ने बिहार में लालू विरोधी खेमे को मजबूत किया और नीतीश कुमार को एक सशक्त विकल्प के रूप में स्थापित किया. इसी दौर में नीतीश कुमार ने 1996 में एनडीए के साथ गठबंधन किया, जो बाद में 2005 में उनकी सत्ता में आने का आधार बना.