कंबोडिया की सेना चूहे पालती है. यूक्रेन की सेना भी उन्हें रिक्रूट करती है. बेल्जियम से लेकर दुनिया के कई देश इन अफ्रीकी चूहों को सेना में शामिल करते हैं. इजरायल में चूहों से एयरपोर्ट पर खास काम कराते हैं. तो भारत के अर्द्ध सैन्य बल मधुमक्खियों को ट्रेंड करके उनसे घुसपैठियों को दूर रखने का खास टास्क कराते हैं.
क्या आपको मालूम है कि कई देशों की सेनाओं में शामिल किए जाने वाले ये चूहे आखिर करते क्या हैं. क्यों सेना में इनकी डिमांड बढ़ रही है. इन्हें किस काम के लिए ट्रेंड किया जाता है. चलिए हम आपको बताते हैं कि ये क्या काम करते हैं. किसलिए ट्रेंड किए जाते हैं. दरअसल ये चूहे विस्फोटकों और लैंडमाइन्स का पता लगाने के लिए प्रशिक्षित किए जाते हैं. जिस चूहे को इस काम में सबसे बेहतर माना जाता है, उसे अफ्रीकी विशाल पाउच चूहे के रूप में जानते हैं. अंग्रेजी में इन्हें अफ्रीकन जाएंट पाउच्ड रैट्स (African Giant Pouched Rats) कहते हैं. इन्हें “हेरोरैट्स” (HeroRATs) भी कहा जातैा है.
चूहे तुरंत विस्फोटक सूंध लेते हैं
दरअसल ट्रेंड किए गए ये चूहे अपनी तेज सूंघने की क्षमता से टीएनटी जैसे जैसे विस्फोटक पदार्थों को ढूंढ लेते हैं. इतने हल्के होते हैं कि लैंडमाइन्स पर चलने से विस्फोट नहीं होता. ये बताते हैं कि माइंस कैसी हैं, इनसे कोई खतरा है या नहीं. चूहे माइन डिटेक्शन में काफी तेज पाए गए हैं.
ये अफ्रीकी विशालकाय पाउच वाले चूहे हैं जिन्हें African Giant Pouched Rats कहते हैं इन्हें “हेरोरैट्स” भी कहा जाता है. ये लैंडमाइंस का पता लगाने में एक्सपर्ट होते हैं. ( News18 AI)
अफ्रीकी विशाल चूहों को किया जाता है ट्रेंड
अफ्रीकन जाएंट पाउच्ड रैट 30 मिनट में टेनिस कोर्ट के आकार के क्षेत्र को स्कैन कर सकता है, जबकि इंसान अगर यही काम करे तो कई दिन लग जाएंगे. कंबोडिया, मोज़ाम्बिक, अंगोला जैसे युद्धग्रस्त देशों में बारूदी सुरंगें आज भी एक बड़ा खतरा हैं. इनका पता लगाने के लिए इन देशों में अफ्रीकी विशाल थैलीदार चूहों यानि गैंबियन पाउच्ड रेट्स (Gambian pouched rats) को प्रशिक्षित किया जाता है.
कैसे होते हैं ये अफ्रीकी विशालकाय पाउच चूहे
ये आकार में दूसरे चूहों से बड़े होते हैं. इनका शरीर 25-45 सेंटीमीटर का होता है. पूंछ करीब 30-50 सेंटीमीटर लंबी. वजन एक से डेढ़ किलो होता है. चूंकि इनके गालों में पाउच जैसी थैली होती है, लिहाजा उनका नाम जायंट पाउच रैट होता है, इसी पाउच में ये भोजन जमा करते हैं. ट्रेनिंग के बाद ये बढ़िया काम करते हैं. मनुष्यों के साथ ये हिल मिल जाते हैं. ये फल, सब्जियां, कीड़े और छोटे जीवों को खाते हैं. टीबी बीमारी की पहचान में भी इनकी मदद ली जाती है.
कहा जाता है कि ये TNT जैसे रसायनों की 0.01% मात्रा भी सूंघ सकते हैं. धातु डिटेक्टरों के विपरीत ये प्लास्टिक माइन्स भी ढूंढ लेते हैं. एक चूहा 30 मिनट में 1000 वर्गमीटर क्षेत्र स्कैन कर सकता है. ये रात में जगते हैं और अंधेरे में काम करने में सक्षम होते हैं.
लैंडमाइंस का काम करते हुए अफ्रीकन जाएंट पाउच रैट (News18 AI)
ये चूहे बुद्धिमान भी होते हैं
इन चूहों की असाधारण गंध सूंघने की क्षमता, छोटा आकार, और बुद्धिमत्ता उन्हें इस काम के लिए आदर्श बनाती है. इन्हें ट्रेनिंग के बाद काफी भरोसेमंद और स्मार्ट माना जाता है. रूसी सेना ने भी चूहों को बारूदी सुरंगों का पता लगाने के लिए प्रशिक्षित किया है.
इजरायली चूहे क्या करते हैं
इजरायली सेना ने इन चूहों को हवाई अड्डों पर विस्फोटक सूंघने के लिए प्रशिक्षित किया है. इज़राइल और कुछ अन्य देशों की सुरक्षा एजेंसियां चूहों को हवाई अड्डों और बंदरगाहों पर सामान की जांच के लिए उपयोग करती हैं. वैसे कुछ साल पहले ईरान ने “सूइसाइड चूहों” को प्रशिक्षित करने का दावा किया था, जो दुश्मन के बेस में घुसकर विस्फोट कर सकें. हालांकि ये दावा विवादास्पद तो रहा ही, साथ ही इसका कोई सबूत भी नहीं मिल सका.
यूक्रेन भी लेता है उनसे काम
यूक्रेन में सेना चूहों को ट्रेंड करके उनका काम लैंडमाइन डिटेक्शन में करती है. यह क्षमता उन्हें कुत्तों के समान बनाती है. चूहों का छोटा आकार उन्हें उन तंग और खतरनाक जगहों पर काम करने में सक्षम बनाता है, खासकर उन जगहों पर, जहां बड़े जानवर या इंसान नहीं पहुंच सकते. प्रशिक्षण के बाद ये चूहे कई वर्षों तक सेवा दे सकते हैं. अफ्रीकी विशाल थैलीदार चूहों की औसत आयु 6-8 वर्ष होती है. इस दौरान वो लगातार काम कर सकते हैं.
अफ्रीकन जाएंट पाउच रैट काफी बुद्धिमान होते हैं और लैंडमाइंस ट्रेनिंग के बाद एक्सपर्ट हो जाते हैं. (News18 AI)
आसान रखरखाव और सस्ते होते हैं ये
एक प्रशिक्षित कुत्ते की तुलना में चूहों को पालना और प्रशिक्षित करना कहीं अधिक किफायती है. उनका हल्का वजन और छोटी कद-काठी उन्हें खतरनाक क्षेत्रों में सुरक्षित बनाती है. उनकी गंध पहचानने की क्षमता बहुत सटीक होती है.
वैसे चूहों का इस्तेमाल आपदा राहत कामों में भी होता है. भूकंप या अन्य प्राकृतिक आपदाओं के बाद, जब लोग मलबे में फंसे होते हैं, चूहों को प्रशिक्षित किया जाता है कि वो जीवित लोगों की गंध को पहचानते हुए दरारों से होते हुए उन तक पहुंच सकें.
भारत कैसे करता है मधुमक्खियों का इस्तेमाल
भारत में सेना द्वारा मधुमक्खियों का इस्तेमाल अवैध घुसपैठ रोकने में किया जा रहा है. आप चकित होंगे ऐसा कैसे होता होगा. भारत-बांग्लादेश सीमा पर सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने अवैध घुसपैठ और तस्करी को रोकने के लिए एक अनोखी रणनीति अपनाई है. BSF की 32वीं बटालियन ने पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में सीमा पर ‘एपियरी’ (मधुमक्खी पालन के डिब्बे) fence पर टांगने शुरू किये हैं. इन डिब्बों में मधुमक्खियों के छत्ते होते हैं, जिससे सीमा के उस हिस्से से गुजरने की कोशिश करने वाले घुसपैठिए और तस्कर डरने लगे हैं, क्योंकि मधुमक्खियां तुरंत उन पर हमला कर देती हैं. उनके डंक से वो डरने लगे हैं.
मधुमक्खी पालन के डिब्बे कंटीली बाड़ के पास या उन पर टांगे जाते हैं. आसपास फूलदार पौधे लगाए जाते हैं ताकि मधुमक्खियों को प्राकृतिक आवास और भोजन मिलता रहे. जब कोई इन तारों को काटकर घुसने की कोशिश करता है, तो मधुमक्खियां हमला कर देती हैं, जिससे घुसपैठिए और तस्कर डरकर दूर रहते हैं. BSF जवानों को बाकायदा मधुमक्खी पालन (beekeeping) की ट्रेनिंग दी जा रही है।
अमेरिका और नाटो देश समुद्री डॉल्फ़िन और सील को ट्रेंड करते हैं
अमेरिकी नौसेना “नेवी मरीन मैमल प्रोग्राम” चलाती है, जिसमें डॉल्फ़िन और कैलिफ़ोर्निया सील को प्रशिक्षित किया जाता है. ये पानी के नीचे माइन्स और विस्फोटकों का पता लगाते हैं. रूस और कई देश तो डॉल्फिन के जरिए जासूसी कराते रहे हैं.