जब खुद से रिश्ता बनाओगे, तभी दुनिया से जुड़ाव होगा

5 hours ago

अपने आप को जरा देखिए. क्या आप हमेशा अपने आप से सहमत रहे हैं? कल आपके कुछ विचार थे, आज विचार दूसरे हो सकते हैं. यह जरूरी नहीं कि जो विचार आज आपके हैं वे आपके पाँच साल पुराने विचारों के अनुकूल हों. जब आप अपने से ही सहमत नहीं हैं, तो फिर दूसरों के साथ ऐसा क्यों नहीं हो सकता?

जिस किसी से आपका मतभेद है वह सिर्फ आपके पुराने या नये आत्मस्वरूप की ही प्रतिलिपि हैं. आपके विचारों और भावनाओं में जो पैटर्न है उस पर एक नजर डालने की आवश्यकता है, उनमें एक लय है. और चेतना में भी एक लय है. हमें अपने भीतर इन सभी लय के बीच एक सामंजस्य लाने की जरूरत है और इसी को आध्यात्मिकता कहा जाता है.

आध्यात्मिकता कल्पना की उड़ान नहीं है, वह अपने अस्तित्व को देखना है. क्या हम अच्छी तरह से अपने शरीर को जानते हैं? जब आप किसी को देखते हैं, आप उनके भौतिक रूप को देखते हैं, लेकिन क्या आपने अपने शरीर का अनुभव किया है? अपने शरीर, श्वास, मन, भावनाओं और जीवन के स्रोत को अनुभव करना ही ध्यान है. जीवन ऊर्जा का अनुभव करना और उसके प्रति सजग रहना ही ध्यान है और यह बिना किसी प्रयत्न के होता है.

मन और शरीर पूर्णत: विपरीत नियमों से चलते हैं. शरीर के स्तर पर कुछ पाने के लिए प्रयत्न चाहिए, श्रम चाहिए. आप अपनी मांसपेशियों को हृष्ट -पुष्ट तभी बना सकते हैं जब आप कसरत करते हैं. पर मन के दायरे में कुछ पाने के लिए विश्राम कुंजी है, प्रयत्न छोड़ने की आवश्यकता है. आप प्रयत्न कर के याद नहीं कर पाते. जिस पल आप विश्राम में होते हो, अचानक वह बात याद आ जाती है. रचनात्मकता, बुद्धिमत्ता और स्मृति – यह गुण हमारे भीतर अनायास आ जाते हैं.

तुम कैसे सुनते हो? ध्वनि आकर आपके कान के पर्दों पर पड़ती है, लेकिन अगर ध्यान कहीं और है, तो क्या आप सुन सकते हो? आप मन के माध्यम से सुन रहे होते हो. जब आप सुन रहे होते हैं, तब आप या तो किसी बात पर सहमत रहते हैं या असहमत रहते हैं. जिस वृत्ति के द्वारा हम हाँ या नहीं कह रहे होते हैं उसे ही बुद्धि कहा गया है.

वह एक ही चेतना है जो कि मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार के रूप में कार्य करती है. हमारे प्राचीन लोगों ने इन चार विभिन्न वृत्तियों को अंत:करण चतुष्टय बोला है.

इसी तरह, यदि तुम अपनी स्मृति के स्वभाव को देखोगे तो तुम पाओगे कि जो कुछ नकारात्मक होता है उसे वह पकड़ कर रखती है. आप किसी के द्वारा दी गयी दस प्रशंसा भूल जाते हैं , लेकिन उनके द्वारा दिया एक अपमान मन में टिका रहता है.

इस प्रवृत्ति को पलटने की जरूरत है, और मन की नकारात्मक पकड़ने की प्रवृत्ति को उलट कर किसी सकारात्मक दिशा की ओर ले जाने की प्रक्रिया को ही योग कहा जाता है. योग तुम्हें फिर से एक बच्चे की तरह बना देता है. यह न केवल आपके स्वभाव को पुनर्जीवित करता है, यह आपके दिल और दिमाग को ताज़ा व तेजस्वी रखता है. योग बोध, निरीक्षण और अभिव्यक्ति में सुधार लाता है.

पारस्परिक संबंधों को बनाए रखने के लिए आपको पहले अपने आप के साथ एक रिश्ता बनाना है. आपका अपने साथ जो संबंध है वह आपकी पूर्णता को दर्शाता है. दूसरा, अनौपचारिक रहने पर पारस्परिक संबंध मजबूत रहते हैं, क्योंकि फिर गलतियों के लिए जगह रहती है. तुम किसी रिश्ते या परिस्थिति को पूरी तरह दोषहीन होने की उम्मीद नहीं कर सकते.

आज दुनिया के साथ एक सबसे बड़ी समस्या भावनात्मक अस्थिरता है. हम जब अपने आसपास एक अनौपचारिक दृष्टिकोण और सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाते हैं, तब हम दरारों को भर देते हैं. हम अपनी परिस्थिति के मालिक बन जाते हैं जिससॆ हमारे आसपास हो रही घटनाओं के बारे में हम असहाय नहीं महसूस करते हैं.

जीवन में कोई बना बनाया फार्मूला नहीं है. जब आपको लगता है कि आप बहुत ईमानदार हो, सही हो, तो अनजाने में अन्दर से थोड़ा कड़क हो जाते हो. आप दूसरों के प्रति अपनी उंगली उठाकर और असहिष्णु हो जाते हो. जब आप पहचान लेते हो कि आपके अन्दर त्रुटियां हैं, तो आप अन्य व्यक्तियों में त्रुटियों को भी स्वीकार कर सकते हो.

इसलिए कहा जाता है कि ‘नेकी कर कुएँ में डाल’, अच्छा काम करके भूल जाओ. न केवल अवगुण आपके लिये हानिकारक हैं बल्कि सद्गुण भी आपको कठोर, रूखा और गुस्सैल बना सकते हैं. यही कारण है कि अपने दुर्गुण और सद्गुणों दोनों को समर्पित कर देना चाहिए. छोड़ कर विश्राम करो.

यदि आप दो दिन से सोये नहीं, तो आप देखेंगे कि छोटी छोटी बातें आपको परेशान करना शुरू कर देंगी. और अगर आपने अच्छी तरह से विश्राम किया है, तो स्थिति भिन्न हो जाएगी.

ध्यान के द्वारा ही आप नकारात्मक विचारों को पार कर सकते हैं और फिर सकारात्मक विचार सहज रूप से स्वतः ही आ जाएँगे. तनाव के कारण नकारात्मक रवैया हो जाता है. यदि आपकी सोच सकारात्मक है तो आप रचनात्मक हो जाएँगे और और कुछ भी करने में सफल रहेंगे.

अपने भीतर की रिक्तता को भरने के लिए दूसरों पर निर्भर रहना छोड़ दें – ध्यान में बैठिए, विश्राम कीजिए, और अपने भीतर की पूर्णता को महसूस कीजिए. यहीं से सच्चा संबंध जन्म लेता है – पहले स्वयं से, और फिर पूरे जगत से.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

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