Last Updated:May 06, 2025, 09:03 IST
Caste Census and BJP-Congress: प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने जाति जनगणना का फैसला किया है, इससे बीजेपी और कांग्रेस में असंतोष है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे उठाया था, लेकिन अब दोनों दलों के भीतर मतभेद हैं...और पढ़ें

कांग्रेस पार्टी जाति जनगणना के फैसले को अपनी उपलब्धि बता करी है.
हाइलाइट्स
प्रधानमंत्री मोदी ने जाति जनगणना का फैसला किया.कांग्रेस और बीजेपी के भीतर इस फैसले से असंतोष.जाति जनगणना से अगड़ी जातियों की ताकत कम हो सकती है.Caste Census and BJP-Congress: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अचानक से देश में जाति जनगणना कराने का फैसला कर सबको चौंका दिया है. सरकार का यह फैसला देश में सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर बड़ा बदलाव ला सकता है, लेकिन इसने सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस पार्टी दोनों के अंदर ही बेचैनी पैदा कर दी है. दोनों दलों के नेताओं में इस फैसले को लेकर अलग-अलग राय सामने आ रही हैं और कई नेता सवाल भी उठा रहे हैं. खासकर अगड़ी जातियों के नेताओं में इस बात की चिंता है कि इससे उनकी राजनीतिक ताकत कम हो सकती है.
इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने इसको लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट छापी है. इस रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के इस फैसले से कांग्रेस पार्टी के भीतर की ज्वालामुखी फट गई है. कांग्रेस लंबे समय से जाति जनगणना की मांग कर रही थी. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और इसे बीजेपी पर दबाव बनाने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया. लेकिन अब जब सरकार ने यह फैसला ले लिया है तो दोनों दलों में अंदरूनी मतभेद सामने आने लगे हैं.
कांग्रेस के अंदर भूचाल
कांग्रेस की हाल में हुई वर्किंग कमेटी की एक बैठक में अगड़ी जाति के नेता शामिल नहीं हुए. सूत्रों के मुताबिक ये नेता जाति जनगणना के पक्ष में नहीं हैं. उनका कहना है कि उन्हें डर है कि अगर जाति के आंकड़े सामने आए तो उनकी आबादी की तुलना में उनकी सियासी ताकत ज्यादा होने की बात उजागर हो जाएगी, जिससे उनका प्रभाव कम हो सकता है. तेलंगाना और बिहार में हाल ही में हुई जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट से पता चलता है कि गैर-पिछड़ी जातियां को इनमें अन्य जातियां या सामान्य वर्ग की कैटगरी में रखा गया है. इन राज्यों में इनकी आबादी सिर्फ 15 फीसदी हैं.
जाति सर्वेक्षण की इन रिपोर्टों के मुताबिक अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की आबादी काफी है. अगर राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसे ही आंकड़े आते हैं, तो ऊपरी जातियों का प्रभाव कम हो सकता है. कांग्रेस के एक नेता ने चेतावनी दी कि राहुल गांधी को वीपी सिंह का उदाहरण याद रखना चाहिए. वीपी सिंह ने मंडल कमीशन लागू किया लेकिन ओबीसी समुदाय ने उन्हें कभी अपना नेता नहीं माना क्योंकि वे राजपूत थे.
भाजपा के भीतर भी कुछ नेता इस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं.
बीजेपी में असंतोष
बीजेपी में भी इस फैसले को लेकर असंतोष है. पार्टी ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि वह उस साल जाति जनगणना नहीं करेगी. अब इस फैसले को लेकर बीजेपी के कुछ नेता सवाल उठा रहे हैं. उनका कहना है कि पार्टी हमेशा से हिंदू एकता की बात करती रही है और जातिगत भेदभाव को खत्म करने की वकालत करती रही है. ऐसे में जाति जनगणना का समर्थन करना पार्टी की विचारधारा के खिलाफ लगता है. उत्तर प्रदेश के एक बीजेपी नेता ने नाराजगी जताते हुए कहा कि हमसे कहा जाता है कि वैश्विक नेतृत्व और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की बात करें. ‘एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे नारे दें, देश को तोड़ने वाली साजिशों का विरोध करें. लेकिन अब हमें जाति जनगणना का समर्थन करना पड़ रहा है.
अगड़ी जातियों की चिंता
बीजेपी के कुछ नेताओं को लगता है कि अगड़ी जातियों जैसे आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में रेड्डी, हिंदी क्षेत्रों में ब्राह्मण, ठाकुर या राजपूत और केरल में नायर अपनी आबादी के हिसाब से ज्यादा सियासी ताकत रखती हैं. अगर जाति जनगणना के बाद यह ताकत कम हुई तो इन समुदायों में नाराजगी बढ़ सकती है. पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि सरकार को इस तरह का फैसला लेने से पहले पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं से बातचीत करनी चाहिए थी. उनका कहना है कि पहले भी बीजेपी को तीन कृषि कानून वापस लेने पड़े थे, क्योंकि पार्टी ने किसानों की नाराजगी का अंदाजा नहीं लगाया था. इसी तरह वक्फ (संशोधन) बिल को लेकर भी अल्पसंख्यक समुदायों में गलतफहमी फैल गई, क्योंकि सरकार और पार्टी उन्हें समझाने में नाकाम रही.
कई नेताओं का कहना है कि पहले बातचीत होनी चाहिए फिर कानून बनाना चाहिए. एक नेता ने कहा कि पहले बात करिए फिर कानून बनाइए. कुछ बीजेपी नेताओं को यह भी डर है कि कांग्रेस का यह आरोप सच साबित हो सकता है कि बीजेपी उनके विचारों को कॉपी कर रही है. उनका कहना है कि बीजेपी को आर्थिक सशक्तिकरण पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन यह फैसला वामपंथी और कांग्रेस की सामाजिक नीतियों को अपनाने जैसा लग रहा है.
हालांकि, बीजेपी के एक वर्ग मानता है कि यह फैसला सही समय पर लिया गया है. खासकर बिहार चुनाव से कुछ महीने पहले इस घोषणा से पार्टी को फायदा हो सकता है. उनका कहना है कि इससे पिछड़े हिंदू वोटर बीजेपी के पक्ष में आ सकते हैं. बीजेपी पहले ही ओबीसी समुदाय को सियासी ताकत दे चुकी है, जिसमें खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ओबीसी समुदाय से आते हैं.