क्यों डरावना होता है युद्ध का एयर रेड सायरन, कितनी देर तक कैसे आती है आवाज

5 hours ago

ठीक 206 साल पहले फ्रांस में सायरन का आविष्कार हुआ था. जब ये बजता है तो लोगों की रूह कांप जाती है. इसकी आवाज वाकई डरावनी तो होती है, साथ ही ये डराता भी है. युद्ध में सायरन भी दो तरह के बजते हैं. एक तब जब हमला होने वाला होता है, तब कई किलोमीटर तक इसकी डरावनी आवाज सुनाई पड़ती है. इसके बाद इसकी एक अलग आवाज और आती है, तब जब खतरा टल जाता है, ये सायरन अलग तरह से बजता है.

युद्ध के सायरन यानि एयर रेड सायरन की आवाज कैसी होती है. जिसने इसे सुना हो, वो जानता है कि इसके बजते ही दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं. कई लोग इसकी आवाज सुनते ही घबरा जाते हैं, पसीना आ जाता है. कई लोगों को इसकी आवाज से दिल बैठा हुआ लगता है. इसकी आवाज़ बहुत तेज़ और डरावनी होती है.

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युद्ध हमले के एयर रेड सायरन की आवाज़ ऊपर-नीचे होती रहती है. यानी एकदम तेज़ फिर धीमी, फिर तेज़. कमजोर दिल वाले इससे डर जाते हैं. (News18 AI)

कैसी होती है युद्ध हमले के सायरन की आवाज
युद्ध हमले के एयर रेड सायरन की आवाज़ ऊपर-नीचे होती रहती है. यानी एकदम तेज़ फिर धीमी, फिर तेज़. इसे wailing sound कहा जाता है यानि डरावनी आवाज. इसके आवाज़ की लहरें सुनने वाले को अंदाज हो जाता है कि ये कोई सामान्य सायरन नहीं है. अगर इसे लिखा जाए तो इस आवाज की आवृति कम और ज्यादा में ऐसी होगी.

“ooooOOOooooOOOooooOOOoooo…” (लगातार ऊपर-नीचे जाती आवाज़)

ये आवाज तीन मिनट तक बजती रहती है. ये आवाज़ मशीनी और भयभीत करने वाली होती है, जिसे दूर से ही सुना जा सकता है. इसका मकसद लोगों को तुरंत सचेत करना होता है कि दुश्मन के विमान या मिसाइल हमले का खतरा है. चूंकि ये सायरन युद्ध, बमबारी और विनाश की याद दिलाता है, जिससे लोगों में आतंक फैल जाता है.

क्या सायरन सुन हार्ट अटैक से मौत हुई है?
हां, कुछ मामलों में तनाव और डर के कारण दिल का दौरा पड़ने से मौत की खबरें आई हैं, खासकर बुजुर्ग या दिल के मरीजों में. इजरायल-हमास युद्ध (2023) में कुछ वृद्ध लोगों के हार्ट अटैक से मरने की खबरें आईं, जब अचानक सायरन बजा. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भी कुछ लोगों की मौत सायरन के डर से हुई थी. इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव इतना गहरा होता है कि यहां तक कि ड्रिल या अभ्यास के समय भी लोगों में घबराहट हो जाती है.

भारत में 1971 में ये आवाज सुनने वाले कहते हैं कि ये आवाज ऐसी होती थी कि डर और खौफ से रोएं खड़े जाते थे दिल की धड़कन तेज हो जाती थी.

युद्ध के समय दो तरह के सायरन बजते हैं, वो क्या हैं
हां युद्ध के समय दो तरह के सायरन बजते हैं. हमले को अलर्ट करने वाला सायरन डरावना तेज आवाज वाला होता है तो ऊपर नीचे होकर बजता है. ये कई किलोमीटर तक सुनाई देता है. इसे तीन मिनट तक बजाया जाता है.

दूसरा सायरन तब युद्ध में बजता है जब सबकुछ ठीक हो जाता है. इसमें एक सपाट आवाज एक मिनट तक बजाई जाती है, इस आवाज में कोई ऊपर नीचे नहीं होता. ये आवाज भी काफी दूर तक सुनाई पड़ती है. इसका मतलब ये होता है सब सामान्य है, अब बाहर आ सकते हैं.

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एंबुलेंस और फायर ब्रिगेड के सायरन सामान्य होते हैं, इनकी आवाज एक जैसी रहती है. ऊपर – नीचे नहीं होती. (News18ai)

युद्ध के सायरन से नार्मल सायरन किस तरह अलग होते हैं
सामान्य सायरन में एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड की आवाज होती है, जो एक जैसी रहती है. ये 500 मीटर से एक किलोमीटर तक सुनाई दे सकती है. इसका मकसद लोगों का ध्यान खींचना और रास्ता खाली कराना होता है

फैक्ट्री का सायरन कैसा होता है
फैक्ट्री के सायरन, युद्ध या एयर रेड सायरन से अलग होते हैं. उनके मकसद, आवाज़ और पैटर्न सब अलग होते हैं. ये भी एक अलार्म सिस्टम होता है. ये काम शुरू होने के समय, लंच, टीब्रेक और शिफ्ट बदलने के समय बजता है या फिर इमरजेंसी (आग, गैस लीकेज, मशीन फेल) जैसी स्थिति में कर्मचारियों को सूचना देने के लिए बजाया जाता है.
इसकी आवाज़ तेज़, सीधी और लगातार होती है. इसमें कोई ऊपर-नीचे पैटर्न नहीं होता. इमरजेंसी सायरन तेज़ और लगातार बजता रहता है जब तक खतरा टल न जाए.

क्या एयर रेड सायरन किसी मशीन से बजाया जाता है
हां, एयर रेड सायरन के लिए बाकायदा एक बड़ी और शक्तिशाली सायरन मशीन होती है. ये एक बड़ी बिजली से चलने वाली सायरन मशीन होती है. .
ये लोहे की बनी भारी मशीन होती है. गोल या हॉर्न जैसी डिज़ाइन होती है. कई सायरन मशीनें आज भी पुराने रेलवे स्टेशनों, मिलिट्री एरिया में या नगर निगम की छतों पर लगी मिल जाती हैंये आमतौर पर रेलवे स्टेशन के पास, पुलिस स्टेशन, मिलिट्री कैंप और एयरबेस के आसपास लगाए जाते हैं. कहीं कहीं बड़े-बड़े टावरों और सरकारी इमारतों की छत पर और शहर के मुख्य चौराहों पर लगाए जाते हैं. पहले इनकी एक जगह तय होती थी ताकि पूरे शहर में एक साथ बज सकें.

सायरन का आविष्कार किसने किया?
इसका आविष्कार फ्रांस के चार्ल्स काग्नार्ड डी ला टूर ने 1819 में किया. उन्होंने सबसे पहला मैकेनिकल सायरन बनाया, जो हवा के दबाव से तेज़ और लगातार आवाज़ निकाल सकता था. इसे शुरुआत में लेबोरेटरी और फैक्ट्री में चेतावनी देने के लिए इस्तेमाल किया गया. युद्ध सायरन का कॉन्सेप्ट बाद में तैयार हुआ. इसका इस्तेमाल सबसे पहले प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान हुआ.
ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका और सोवियत रूस ने दूसरे विश्व युद्ध में भारी संख्या में इलेक्ट्रिक एयर रेड सायरन लगाए. तब इनकी आवाज़ 8-10 किलोमीटर तक सुनाई देती थी.

भारत में एयर रेड सायरन कब आया?
भारत में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान (1942-43) ब्रिटिश सरकार ने कोलकाता, मुंबई और चेन्नई (तब मद्रास) में सबसे पहले एयर रेड सायरन लगाए, क्योंकि जापान ने कोलकाता और अंडमान पर हमला किया था. उसके बाद 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में पूरे देश में इनका इस्तेमाल किया गया.

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