Last Updated:May 06, 2025, 16:50 IST
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने ओबीसी आरक्षण पर सुनवाई के दौरान कहा कि आरक्षण का मामला रेलवे की तरह हो गया है, जो लोग डिब्बे में हैं, वे दूसरों को प्रवेश नहीं देना चाहते.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने आरक्षण पर बड़ा बयान दिया है.
हाइलाइट्स
जस्टिस सूर्यकांत ने आरक्षण को ट्रेन के डिब्बे से तुलना की.महाराष्ट्र में ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई.सुप्रीम कोर्ट ने 4 हफ्तों में चुनाव अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया.आरक्षण पर सुनवाई के बीच सुप्रीम कोर्ट के जज और भावी सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत ने कड़ी टिप्पणी की. उन्होंने कहा, इस देश में आरक्षण का मामला एक रेलवे की तरह हो गया है. जो लोग डिब्बे में प्रवेश कर चुके हैं, वे किसी और को प्रवेश नहीं देना चाहते. यही पूरा खेल है. उन्होंने यह टिप्पणी महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण से संबंधित सुनवाई के दौरान की.
सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दे रहे थे कि राज्य में राजनीतिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान की जानी चाहिए. शंकरनारायणन ने कहा कि महाराष्ट्र के बंथिया आयोग ने ओबीसी को आरक्षण दिया था बिना यह साबित किए कि वे राजनीतिक रूप से पिछड़े हैं. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, मुद्दा यह है कि इस देश में आरक्षण का मामला एक रेलवे की तरह हो गया है. जो लोग डिब्बे में प्रवेश कर चुके हैं, वे किसी और को प्रवेश नहीं देना चाहते. यही पूरा खेल है. यही याचिकाकर्ता का भी खेल है. राज्यों को अधिक वर्गों की पहचान करनी चाहिए ताकि वे आरक्षण के किसी भी लाभ से वंचित न हों, और यह वर्गीकरण किसी एक परिवार या समूह तक सीमित नहीं होना चाहिए.
अगले सीजेआई होंगे
जस्टिस सूर्यकांत 24 नवंबर 2025 से 9 फरवरी 2027 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा देंगे. वे जस्टिस बीआर गवई की जगह लेंगे, जो 14 मई को सीजेआई बनने वाले हैं. जस्टिस गवई ने पहले भी इसी संदर्भ का उपयोग किया था. उन्होंने कहा था कि पिछड़े वर्गों के सब क्लासिफिकेशन का विरोध करने वालों का रवैया उन व्यक्तियों की तरह है जो सीटें सुरक्षित करने के बाद दूसरों को ट्रेन के डिब्बे में प्रवेश नहीं करने देते. वे सदियों तक दूसरे समुदायों को हाशिये पर धकेले रखना चाहते हैं.
सुप्रीम कोर्ट का क्या निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग को 4 हफ्तों के भीतर स्थानीय निकाय चुनावों की अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया है. दो-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र में लंबे समय से लंबित स्थानीय निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण के मुद्दे के कारण और अधिक विलंबित नहीं हो सकते. ओबीसी समुदायों को 2022 की रिपोर्ट से पहले राज्य में मौजूद आरक्षण दिया जाएगा. महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव 2016-17 में हुए थे, और देरी का मुख्य कारण ओबीसी उम्मीदवारों के कोटे पर कानूनी लड़ाई थी.
पहले क्या था आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा ओबीसी के लिए 27% कोटा लागू करने के लिए जारी एक अध्यादेश को रद्द कर दिया था. उसने स्थानीय निकायों में पिछड़ेपन के प्रभावों की जांच के लिए एक समर्पित आयोग की स्थापना का निर्देश दिया था और कहा था कि एससी, एसटी और ओबीसी के लिए कुल आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिए. 2022 में, सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों में ओबीसी आरक्षण से संबंधित मामले में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था, जिसका मतलब था कि उस समय ओबीसी कोटा लागू नहीं किया जा सकता था.
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