Last Updated:December 11, 2025, 05:01 IST
लोकसभा में चुनाव आयोग को लेकर विपक्ष के आरोपों पर बहस के बीच रविशंकर प्रसाद ने राहुल गांधी को उनकी दादी इंदिरा गांधी के विवादित निर्णय की याद दिला दी. आपातकाल के दौर में जस्टिस एच.आर. खन्ना को वरिष्ठता के बावजूद दरकिनार कर जूनियर जस्टिस एम.एच. बेग को CJI बनाना न्यायिक इतिहास का काला अध्याय था. चलिए हम आपको इस पूरे किस्से के बारे में बताते हैं.
इंदिरा गांधी ने नियमों को ताक पर रख दिया था. नई दिल्ली. संसद के गलियारों में बहस अक्सर वर्तमान के मुद्दों पर होती है, लेकिन कभी-कभी इतिहास के पन्ने भी खुल जाते हैं. आज लोकसभा में एक बार फिर वही हुआ. चुनाव आयोग की एसआईआर प्रक्रिया जारी है. इसे लेकर विपक्ष लगातार वोट चोरी का आरोप लगा रहा है. इस मुद्दे पर सदन के दौरान लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सरकार पर जमकर निशाना साधा. बस फिर क्या था भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी राहुल को उनकी दादी इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान सीजेआई की नियुक्त से जुड़े विवादित किस्से का जिक्र छेड़ दिया. यह घटना थी न्यायपालिका में वरिष्ठता को दरकिनार कर की गई चीफ जस्टिस की नियुक्ति की, जिसका सीधा संबंध जस्टिस एचआर खन्ना और जस्टिस एमएच बेग से था.
वरिष्ठता की बलि और इंदिरा का डर
यह किस्सा 1970 के दशक का है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सत्ता के शीर्ष पर थीं. न्यायपालिका में परंपरा रही है कि सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज को ही चीफ जस्टिस (CJI) बनाया जाता है. लेकिन 1977 में जब चीफ जस्टिस एएन रे रिटायर होने वाले थे, तब इस परंपरा को ताक पर रख दिया गया. सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज जस्टिस एचआर खन्ना थे. जस्टिस खन्ना वह शख्स थे जिन्होंने आपातकाल के दौरान प्रसिद्ध एडीएम जबलपुर केस में केंद्र सरकार के खिलाफ जाकर असहमति भरा फैसला दिया था. उन्होंने निडर होकर कहा था कि जीवन के अधिकार को आपातकाल में भी छीना नहीं जा सकता. उनका यह फैसला इंदिरा गांधी सरकार के लिए एक बड़ा झटका था. जस्टिस खन्ना की इस न्यायिक निष्पक्षता और साहस की कीमत उन्हें चुकानी पड़ी. इंदिरा गांधी ने उन्हें दरकिनार करते हुए, उनसे जूनियर जस्टिस एमएच बेग को देश का नया चीफ जस्टिस नियुक्त कर दिया था. यह नियुक्ति न्यायिक इतिहास में सबसे विवादास्पद फैसलों में से एक मानी जाती है.
क्या था एडीएम जबलपुर केस जिससे इंदिरा थी नाराज?
एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला केस (1976) भारतीय न्यायिक इतिहास में ‘बंदी प्रत्यक्षीकरण मामला’ के नाम से कुख्यात है. यह केस आपातकाल (1975-77) के दौरान नागरिकों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मूल अधिकार (अनुच्छेद 21) को चुनौती दिए जाने से संबंधित था. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने 4:1 के बहुमत से यह फैसला दिया था कि आपातकाल के दौरान सरकार द्वारा गिरफ्तारी या हिरासत के खिलाफ कोई भी नागरिक अदालत नहीं जा सकता. जस्टिस एच.आर. खन्ना ने अकेले असहमति जताते हुए कहा था कि जीवन का अधिकार छीना नहीं जा सकता. यह फैसला न्यायिक स्वतंत्रता के पतन के तौर पर देखा जाता है.
3 सनियर जजों को इंदिरा ने किया था दरकिनार
जस्टिस एम.एच. बेग जब 1977 में चीफ जस्टिस (CJI) नियुक्त किए गए तब वह वरिष्ठता क्रम में चौथे नंबर पर थे. उन्हें नियुक्त करने के लिए उनसे ऊपर के तीन सीनियर जजों को दरकिनार किया गया था
1. जस्टिस एच.आर. खन्ना (सबसे सीनियर)
2. जस्टिस वाई.वी. चंद्रचूड़
3. जस्टिस पी.एन. भगवती
4. जस्टिस एम.एच. बेग
जस्टिस खन्ना ने तुरंत दे दिया था इस्तीफा
इस तरह, जस्टिस बेग उस समय वरिष्ठता क्रम में चौथे नंबर पर थे, जब इंदिरा गांधी ने परंपरा तोड़कर उन्हें देश का चीफ जस्टिस बनाया. जस्टिस एम.एच. बेग इन तीनों जजों से जूनियर थे, लेकिन इंदिरा गांधी ने जस्टिस खन्ना को दंडित करने और न्यायपालिका में अपना पक्ष मजबूत करने के उद्देश्य से परंपरा और वरिष्ठता दोनों को दरकिनार करते हुए जस्टिस बेग को चीफ जस्टिस नियुक्त किया था. जस्टिस खन्ना ने इस घटनाक्रम के बाद तुरंत ही इस्तीफा दे दिया था. बाद में जस्टिस बेग के रिटायर होने पर जस्टिस वाई.वी. चंद्रचूड़ चीफ जस्टिस बने और भारतीय न्यायिक इतिहास में सबसे लंबे समय तक इस पद पर रहे. उनके बाद जस्टिस पी.एन. भगवती भी CJI बने.
राहुल के बयान पर रविशंकर प्रसाद का पलटवार
आज लोकसभा में दौरान राहुल गांधी ने संविधान खतरे में होने का अपना पुराना राग अलापा. राहुल गांधी के बयान के बाद रविशंकर प्रसाद अपनी बात रखने के लिए उठे और उन्होंने सीधे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर निशाना साधा. रविशंकर प्रसाद ने याद दिलाया कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सम्मान करना कांग्रेस की पुरानी परंपरा नहीं रही है. उन्होंने कहा, “आज ये हमें संविधान की बातें सिखा रहे हैं, लेकिन क्या राहुल गांधी को याद है कि उनकी दादी, इंदिरा गांधी ने कैसे अपनी सत्ता बचाने और अपने पक्ष में मनपसंद फैसले लेने के लिए जस्टिस खन्ना जैसे ईमानदार जज को दरकिनार कर दिया था?”
‘जस्टिस बेग की ताजपोशी न्यायिक इतिहास का काला अध्याय’
उन्होंने स्पष्ट किया कि उस समय सरकार की मंशा साफ थी कि ऐसे जज को CJI बनाया जाए जो सत्ता के इशारे पर काम करे. उन्होंने जस्टिस बेग की ताजपोशी को न्यायिक इतिहास का काला अध्याय करार दिया. रविशंकर प्रसाद ने राहुल गांधी से आग्रह किया कि उन्हें इतिहास पढ़ना चाहिए, जब उनकी पार्टी ने संस्थाओं को कमजोर करने का काम किया था. यह राजनीतिक दांव-पेंच सदन में एक बार फिर गरमाहट लेकर आया. इस घटना ने यह साबित कर दिया कि भारतीय राजनीति में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संस्थागत स्वायत्तता पर हुए पुराने हमले आज भी राजनीतिक बहस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बने हुए हैं, जिसे सत्ता पक्ष विपक्ष को घेरने के लिए अक्सर इस्तेमाल करता है.
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पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
First Published :
December 11, 2025, 05:01 IST

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