नेक्स्ट जेन न्यूक्लियर प्लांट क्या हैं? पावर गेम में कैसे बोलेगी भारत की तूती?

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Last Updated:December 07, 2025, 11:09 IST

India Next Generation Nuclear Power Plant: भारत के नेक्स्ट जेनरेशन के न्यूक्लियर रिएक्टर की तैयारी में जुट गया है. संसद के इस शीतकालीन सत्र में बिल भी लाए जा सकते हैं. भारत के पहले न्यूक्लियर पावर प्लांट तारापुर में 2033 तक BSMR-200 और SMR-55 तैयार करने की कोशिश की जा रही है. चलिए जानते हैं क्या होता है नेक्स्ट जेनरेशन न्यूक्लियर पावर प्लांट.

नेक्स्ट जेन न्यूक्लियर प्लांट क्या हैं? पावर गेम में कैसे बोलेगी भारत की तूती?भारत नेक्स्ट जेनरेशन के न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने जा रहा है. (फाइल फोटो)

What is India Next Generation Nuclear Power Plant: भारत ने अपनी न्यूक्लियर एनर्जी में बड़ा खेल करने जा रहा है. अब कम लागत में लंबे समय तक ज्यादा क्षमता में बिजली का उत्पादन किया जाएगा. भारत सरकार ने नेक्स्ट जेनरेशन के न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने की तैयारी की जा रही है. देश के पहले न्यूक्लियर पावर प्लांट महाराष्ट्र के तारापुर में ही अब नेक्स्ट जेनरेशन के दो सबसे आधुनिक रिएक्टर लगाए जाएंगे. 200 मेगावाट (BSMR-200) और 55 मेगावाट का स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR-55). परमाणु ऊर्जा मिशन के तहत भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) में इन दोनों का डिजाइन तैयार किया जा रहा है. दोनों के पहले यूनिट तारापुर में ही बनेंगे. साल 2033 तक 5 स्वदेशी SMR बनाने की तैयारी है.

क्यों हैं ये रिएक्टर बेहद खास? इन्हें ‘नेक्स्ट जेनरेशन’ या ‘जेनरेशन-IV’ न्यूक्लियर रिएक्टर कहा जा रहा है. ये पुराने रिएक्टरों की तुलना में ये कई गुना सुरक्षित, छोटे, सस्ते और तेजी से बनने वाले होते हैं. इन्हें फैक्ट्री में पूरा तैयार करके साइट पर सिर्फ असेंबल करना पड़ता है. इनकी निर्माण में 3-4 साल ही लगते हैं. इनकी सबसे बड़ी खूबी पैसिव सेफ्टी सिस्टम वाला है. अगर बिजली जाए, कंट्रोल रूम फेल हो जाए, तब भी ये अपने आप ठंडे होकर सुरक्षित हो जाते हैं. कोई मेल्टडाउन का खतरा नहीं रहता है. ये कम ईंधन खर्च करते हैं और बहुत कम रेडियोएक्टिव कचरा पैदा करते हैं. दुनिया में अमेरिका, रूस, चीन और कनाडा जैसे देश पहले से SMR बना रहे हैं, अब भारत भी इस क्लब में शामिल हो जाएगा.

कैसे बदल जाएगा पूरा पावर गेम?

BSMR-200 और SMR-55 को खासतौर पर उन उद्योगों के लिए डिजाइन किया गया है- जैसे स्टील, एल्यूमीनियम, सीमेंट, रिफाइनरी. इन्हें फैक्ट्री के अंदर ही कैप्टिव प्लांट के रूप में लगाया जा सकता है. पुराने कोयले वाले प्लांट बंद होने के बाद उनकी जगह ये ले सकते हैं. दूर-दराज के इलाके, आइलैंड या माइनिंग साइट्स जहां ग्रिड नहीं पहुंचता, वहां भी ये बिजली देंगे. इसके अलावा विशाखापत्तनम BARC कैंपस में 5 मेगावाट का हाई टेम्परेचर गैस कूल्ड रिएक्टर बनेगा जो हाइड्रोजन बनाएगा, जिसका ट्रांसपोर्ट और इंडस्ट्री में इस्तेमाल होगा.

प्राइवेट प्लेयर भी होंगे शामिल

सरकार पहली बार निजी क्षेत्र को बड़े स्तर पर शामिल कर रही है. BSMR-220 (200 MW का ही एडवांस वर्जन) के लिए न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCIL) ने प्राइवेट कंपनियों से प्रस्ताव मांगे हैं. ऐसी संभावना है कि संसद के इसी शीतकालीन सत्र में ही एटॉमिक एनर्जी एक्ट-1962 में संशोधन लाया जाए, ताकि निजी कंपनियां भी न्यूक्लियर प्लांट लगा सकें. बजट 2025-26 में SMR के लिए 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान है, जिसमें BSMR-200 के लिए 5,960 करोड़, दो SMR-55 यूनिट के लिए 7,000 करोड़ और हाई टेम्परेचर रिएक्टर के लिए 320 करोड़ रुपये अलग से रखे गए हैं.

नेट जीरो का लक्ष्य

2033 तक पांच स्वदेशी SMR और 2070 तक नेट-जीरो का लक्ष्य दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं. यानी कि जैसे ही कोयला छोड़कर हम ग्रीन एनर्जी की ओर जाएंगे, तब बेसलोड पावर (24×7 स्थिर बिजली) सिर्फ न्यूक्लियर ही दे सकता है. सौर-हवा दिन-रात नहीं चलते, लेकिन ये छोटे रिएक्टर चलते रहेंगे. तारापुर में बनने वाले ये दो रिएक्टर भारत की उस नई शुरुआत का प्रतीक हैं जहां न्यूक्लियर एनर्जी पर सिर्फ सरकारी नहीं, बल्कि निजी क्षेत्र और इंडस्ट्री का भी अधिकार होगा.

अगली पीढ़ी के न्यूक्लियर रिएक्टर क्या होते हैं?

अगली पीढ़ी के न्यूक्लियर रिएक्टर (Generation-IV या Advanced Reactors) मौजूदा रिएक्टरों से पूरी तरह अलग और क्रांतिकारी तकनीक हैं. ये मुख्य रूप से स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) होते हैं, जिन्हें फैक्ट्री में पूरा तैयार करके ट्रक से साइट पर ले जाया जाता है. भारत भी नेक्स्ट जेनरेशन की दो न्यूक्लियर रिएक्टर BSMR-200, SMR-55 तैयार कर रहा है. ये रिएक्टर 2033 तक तारापुर में तैयार होने की संभावना है.

इनकी प्रमुख विशेषताएं-

पैसिव सेफ्टी सिस्टम- अगर बिजली चली जाए या कंट्रोल रूम फेल हो जाए, तब भी गुरुत्वाकर्षण और प्राकृतिक संवहन से अपने आप ठंडा हो जाता है. बताया जा रहा है कि इसका मेल्टडाउन होना नामुमकिन है, जिससे विकिरण होने की संभावना कम हो जाती है. छोटा आकार, तेज निर्माण: इनका आकार 5 MW से 300 MW तक का होता है. इसे जोड़-जोड़ कर बड़े आकार तक खड़ा किया जा सकता है. जहां पुराने रिएक्टर को तैयार करने में सालों-साल लग जाते थे, इनको तैयार करने मात्र 3 से 4 साल लगते हैं और इनको बनाने में भी लागत बहुत कम आती है. बहुत कम कचरा: पुराने रिएक्टरों की तुलना में नेक्स्ट जेन से 90% तक कम रेडियोएक्टिव कचरा निकलता है. लंबी उम्र: छोटे आकार होने की वजह से इनकी उम्र भी बढ़ जाती है. ये 60-80 साल तक चलते हैं. उपयोग: स्टील-अल्युमिनियम फैक्ट्री में कैप्टिव प्लांट, हाइड्रोजन उत्पादन, दूरदराज इलाकों और पुराने कोल प्लांट की जगह ले सकते हैं. ये रिएक्टर भारत के नेट-जीरो 2070 लक्ष्य की रीढ़ बनने वाले हैं.

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Deep Raj Deepak

दीप राज दीपक 2022 में न्यूज़18 से जुड़े. वर्तमान में होम पेज पर कार्यरत. राजनीति और समसामयिक मामलों, सामाजिक, विज्ञान, शोध और वायरल खबरों में रुचि. क्रिकेट और मनोरंजन जगत की खबरों में भी दिलचस्पी. बनारस हिंदू व...और पढ़ें

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New Delhi,Delhi

First Published :

December 07, 2025, 11:09 IST

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