Last Updated:September 28, 2025, 12:03 IST
Bihar Chunav 2025: असदुद्दीन ओवैसी की सीमांचल न्याय यात्रा ने बिहार की राजनीति में नई हलचल मचा दी है. मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र को अपना राजनीतिक गढ़ बनाने के बाद ओवैसी अब पूरे बिहार में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. उनका मकसद सिर्फ सीमांचल तक सिमटना नहीं, बल्कि पार्टी को विस्तार देना है और केंद्रित क्षेत्रों में अपनी पार्टी को विकल्प के रूप में खड़ा करना है. जानकारों की नजर में अब यह लगभग साफ है कि AIMIM अब बिहार की राजनीति में लंबी पारी खेलने की तैयारी कर चुकी है.

पटना. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सीमांचल न्याय यात्रा निकालकर बिहार की राजनीति में अपनी नई रणनीति का इशारा दे दिया है. सीमांचल में किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया की मुस्लिम बहुल सीटों पर पकड़ मजबूत करने के बाद ओवैसी अब अन्य इलाकों में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहते हैं. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि उनका अगला फोकस सीमांचल से निकलकर पूरे बिहार पर केंद्रित करने का है. जानकार बता रहे हैं कि सीमांचल की हुंकार अब बिहार की राजनीति में AIMIM अब लंबी यात्रा की योजना बना चुकी है और इसके लिए कमर भी कस ली है.असदुद्दीन ओवैसी की रणनीति सीमांचल से बाहर निकलकर बिहार की पूरी राजनीति पर पकड़ मजबूत करने की है. ऐसे में सवाल है कि सीमांचल के अतिरिक्त बिहार के वो कौन-कौन से क्षेत्र हैं जहां एआईएमआईएम अपने कैंडिडेट उतार सकती है और क्यों?
सीमांचल से सियासी सफर की शुरुआत
बता दें कि असदुद्दीन ओवैसी ने हमेशा सीमांचल को AIMIM की राजनीतिक प्रयोगशाला माना है. इसकी वजह भी है पुख्ता है, क्योंकि यहां मुस्लिम आबादी अधिक है और पिछड़े वर्गों की बड़ी संख्या भी मौजूद है. यही कारण है कि सीमांचल की कई सीटों पर AIMIM पहले भी अच्छा प्रदर्शन कर चुकी है. इस बार सीमांचल न्याय यात्रा ने पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों में नई ऊर्जा भरी है. वहीं, अब ओवैसी अब अपनी पार्टी का फैलाव चाहती है और इसके लिए पार्टी ने रणनीति भी बना रखी है.
सीमांचल से पूरे बिहार में विस्तार की रणनीति
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि AIMIM सीमांचल से निकलकर अब उन इलाकों की तलाश कर रही है जहां मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं. साथ ही पार्टी उन सीटों पर भी नजर रखे हुए है जहां दलित और पिछड़े वर्ग की आबादी का असर है. दरअसल, ओवैसी जानते हैं कि केवल एक क्षेत्र पर टिके रहना लंबे समय की राजनीति के लिए पर्याप्त नहीं है. ऐसे में सासाराम, चंपारण और गोपालगंज जैसे क्षेत्र भी हैं जहां जातीय और धार्मिक समीकरण AIMIM के पक्ष में संभावनाएं दिखा रहे हैं.
दलित-मुस्लिम समीकरण की बना रहे नीति
सासाराम क्षेत्र AIMIM के लिए आकर्षक है क्योंकि यहां मुस्लिम आबादी के साथ बड़ी दलित जनसंख्या भी है. यहां परंपरागत रूप से कांग्रेस और अन्य दलों का प्रभाव रहा है, लेकिन स्थानीय असंतोष और समीकरण AIMIM को मौका दे सकते हैं. पूर्वी और पश्चिमी चंपारण दोनों ही AIMIM की निगाह में हैं. यहां मुस्लिम वोटों के साथ-साथ प्रवासी मजदूर परिवारों का बड़ा असर है. अक्सर इन वर्गों को मुख्यधारा की राजनीति में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलता और ऐसे में AIMIM उन्हें अपना आधार बना सकती है.
गठजोड़ की संभावनाओं का इलाका
वहीं, गोपालगंज में मुस्लिम और यादव वोटों का अच्छा अनुपात है. यहां AIMIM अगर स्थानीय छोटे दलों से तालमेल कर लेती है तो उसे सीट निकालने में आसानी हो सकती है. ओवैसी के लिए यह क्षेत्र इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां से निकली सफलता उत्तर बिहार की राजनीति को नई दिशा दे सकती है. यही कारण है कि असदुद्दीन ओवैसी ने सीमांचल से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू कर अब बिहार के अन्य हिस्सों पर ध्यान केंद्रित किया है. सासाराम, चंपारण और गोपालगंज जैसे क्षेत्रों में मुस्लिम और पिछड़े वर्गों की बड़ी संख्या AIMIM के लिए अवसर का दरवाजा खोल सकती है.
मुस्लिम बहुल जिलों में फोकस करेंगे ओवैसी
Census 2011 के आंकड़ों के अनुसार, बिहार की कुल आबादी में मुस्लिमों का हिस्सा 17.70% है. हिंदू आबादी राज्य की कुल आबादी का 81.99% है. सासाराम, चंपारण (पूर्वी और पश्चिमी), पटना, दरभंगा, मधुबनी और गोपालगंज जिलों में मुस्लिम आबादी इतनी है जो निर्णायक है. सासाराम (टाउन) में ही लगभग 26% मुस्लिम आबादी है. दरभंगा में 22 %, पश्चिमी चंपारण में 22%, पूर्वी चंपारण में 19 %, मधुबनी जिला में 18.25% प्रतिशत आबादी है.
सीमांचल के साथ ही मिथिलांचल पर नजर
सीमांचल के चार जिलों के साथ ही सासाराम, चंपारण और गोपालगंज के अतिरिक्त AIMIM की नजर दरभंगा, मधुबनी और पटना की कुछ शहरी सीटों पर भी है. यहां उच्च शिक्षा संस्थान और बड़ी मुस्लिम आबादी AIMIM को अवसर प्रदान करते हैं. साथ ही, शहरी इलाकों में युवा और पहली बार वोट डालने वाले मतदाता AIMIM के लिए नई जमीन साबित हो सकते हैं. उनकी रणनीति अब बिहार के अन्य संवेदनशील और मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में विस्तार की है. जाहिर है कि असदुद्दीन ओवैसी की रणनीति साफ है-सीमांचल से आगे निकलकर पूरे बिहार में AIMIM को विकल्प के रूप में स्थापित करना.
ऐसा हुआ तो AIMIM बन सकती है बड़ी ताकत
असदुद्दीन ओवैसी की सीमांचल न्याय यात्रा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि AIMIM सिर्फ सीमांचल तक सीमित रहने वाली पार्टी नहीं है. ओवैसी मुस्लिम और दलित-पिछड़े वर्गों के समीकरण को साधकर AIMIM नई संभावनाओं को तलाश रही है. यदि यह प्रयोग सफल हुआ तो बिहार की सियासी तस्वीर बदल सकती है और ओवैसी खुद को राज्य की राजनीति में एक निर्णायक खिलाड़ी के तौर पर स्थापित कर सकते हैं. अगर आने वाले चुनाव में AIMIM इन क्षेत्रों में मजबूत उपस्थिति दर्ज करती है तो यह न केवल बिहार की राजनीति का समीकरण बदल सकता है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी AIMIM को एक बड़ी ताकत बना सकता है.
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें
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Patna,Patna,Bihar
First Published :
September 28, 2025, 12:03 IST