'बिजली जैसी आवाज, लफ्जों में जादू...',हवा में गूंज रही थी अजान, तभी खून से भर गया रूम नंबर 32, 15 अगस्त को बांग्लादेश में क्या हुआ था?

1 week ago

Bangladesh 15 August: देश में 15 अगस्त को लेकर काफी ज्यादा उत्साह है. स्वतंत्रता सेनानियों की विजय गाथाओं को सुनाने के लिए काफी ज्यादा तैयारियां की जा रही है, हर घर तिरंगा यात्रा की भी शुरुआत हो गई है लेकिन कभी आपने सोचा कि जहां एक तरफ 15 अगस्त भारत की आजादी की अमरकथा को बताता है वहीं दूसरी तरफ भारत के पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में 15 अगस्त को राष्ट्रीय शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है, इसके पीछे की क्या कहानी है आखिर क्यों बांग्लादेश में ऐसा हुआ? मेरी तरह आपके मन में भी तमाम सवाल चल रहे होंगे, आइए विस्तार के साथ जानते हैं कि इसके पीछे की क्या वजह है.

जिस घर से बांग्लादेश की आजादी का ऐलान हुआ, वहीं एक दिन पूरी खामोशी के साथ वह आजादी की आवाज कुचल दी गई. 1975 में 15 अगस्त के उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन की शुरुआत, जब मस्जिदों से अजान की आवाज हवा में गूंज रही थी, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि बांग्लादेश की राजधानी उस दिन इतिहास के सबसे खौफनाक अध्याय में दाखिल होने जा रही है. धानमंडी के 32 नंबर मकान में सब कुछ पहले की तरह शांत था, लेकिन कुछ ही पलों में वहां का हर कमरा, हर दीवार और हर कोना गोलियों की तड़तड़ाहट भरी आवाज और खून के छीटों से भर गया. 

यह घर किसी आम नागरिक का नहीं था, यह बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान का घर था लेकिन, 1975 की वह सुबह इस घर के इतिहास में सबसे काली सुबह बन गई. बंगबंधु का वह घर बांग्लादेश के संघर्ष, आंदोलन और स्वाधीनता का गवाह रहा था उन्होंने 1949 में अवामी लीग की स्थापना की और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के लिए राजनीतिक अधिकारों की लड़ाई शुरू की. 1970 के आम चुनावों में अवामी लीग को पूर्ण बहुमत मिला, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान ने सत्ता हस्तांतरित नहीं की इसके बाद शुरू हुई 1971 की मुक्ति संग्राम की लड़ाई, जिसमें भारत की मदद से पाकिस्तान को हराकर बांग्लादेश ने स्वतंत्रता पाई. 

जनवरी 1972 में बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान देश के पहले प्रधानमंत्री बने लेकिन 1975 तक आते-आते राजनीतिक अस्थिरता, प्रशासनिक चुनौतियों और असंतोष के कारण हालात बिगड़ने लगे और उसी साल जनवरी में उन्होंने राष्ट्रपति पद संभाला इसके बावजूद, बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान किसी शाही महल में नहीं रहते थे.उनका साधारण दो मंजिला घर था, जैसे अन्य आम मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार का होता था, वह उसी में रहते थे लेकिन राष्ट्रपति पद संभालने के सिर्फ 7 महीने बाद ही उन्हें अपनों ने धोखा दे दिया.

बंगबंधु अक्सर कहा करते थे, "मेरी ताकत यह है कि मैं इंसानों से प्यार करता हूं और मेरी कमजोरी यह है कि मैं उन्हें बहुत ज्यादा प्यार करता हूं. कभी आपने ये सोचा कि यही प्यार उनके लिए कमजोरी बन जाएगा, बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना ने कभी कहा था कि मेरे पिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान देशवासियों पर भरोसा करते थे. यह कभी नहीं सोचा कि कोई बंगाली उन्हें गोली मारेगा वे इसी विश्वास के साथ जीते थे कि कोई बंगाली उन्हें कभी भी मारने या किसी तरह से नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं करेगा. 31 अगस्त 2022 को 15 अगस्त के 1975 के नरसंहार के बारे में शेख हसीना ने अपनी बातों को एक सभा के दौरान दोहराया था और कहा, "उनके पिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान कभी यह विश्वास नहीं कर सकते थे कि कोई बंगाली उनकी हत्या कर सकता है.

हालांकि, सैन्य तख्तापलट के दौरान सिर्फ बंगबंधु ही नहीं, बल्कि उनके परिवार के 17 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. उनकी बेटी शेख हसीना और उनकी बहन शेख रेहाना उस समय जर्मनी में थीं, इसीलिए दोनों बच गईं. न तो कोई युद्ध हुआ और न ही कोई हमला हुआ और अपने लोगों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया, ये सब तो बंगबंधु के अपने लोग थे, वही लोग, जिनके लिए बंगबंधु ने जेल की यातनाएं सही थीं और जिनकी आजादी के लिए उन्होंने अपना जीवन लगाया था.

एक बार ब्रिटिश पत्रकार साइरिल डन ने बंगबंधु के बारे में लिखा था कि उनका शारीरिक कद बहुत ऊंचा था और उनकी आवाज गरजती हुई बिजली जैसी थी, उनका करिश्मा लोगों पर जादू कर देता था और उनका साहस और आकर्षण उन्हें इस युग का एक अनोखा महापुरुष बनाता था. बता दें कि 2004 के एक बीबीसी सर्वेक्षण में, बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान को सर्वकालिक महानतम बंगाली चुना गया था. (आईएएनएस)

F&Q
सवाल- बांग्लादेश में राष्ट्रीय शोक दिवस कब मनाया जाता है?
जवाब- बांग्लादेश में राष्ट्रीय शोक दिवस 15 अगस्त को मनाया जाता है.

सवाल- 15 अगस्त को बांग्लादेश में राष्ट्रीय शोक दिवस क्यों मनाया जाता है?
जवाब- 15 अगस्त को बांग्लादेश को आजादी दिलाने वाले नायक बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की हत्या कर दी गई थी, उनके साथ 17 लोगों को मार दिया गया था.

Read Full Article at Source