Last Updated:October 20, 2025, 07:10 IST
Bihar Chunav AIMIM Candidate List : बिहार विधानसभा चुनाव के लिए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने 25 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है. यह सूची भले सीमांचल केंद्रित दिखाई दे रही हो, लेकिन ओवैसी ने इस बार गोपालगंज, सीवान, मुंगेर और मिथिलांचल जैसे क्षेत्रों में भी अपने प्रत्याशी उतारकर एक बड़ा राजनीतिक सिग्नल दे दिया है.

पटना. वर्ष 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने सीमांचल में पहली बार प्रवेश किया था और 2020 में अमौर से अख्तरुल इमान की जीत के साथ की कुल पांच सीटों पर पार्टी की विजय ने इस क्षेत्र में पार्टी की पकड़ को मजबूत किया. अब 2025 में ओवैसी ने अपने पुराने चेहरों (जैसे अख्तरुल इमान, मुरशिद आलम, तौसीफ आलम) के साथ नए प्रत्याशी उतारकर साफ संदेश दिया है कि वह सीमांचल में खुद को सिर्फ ‘विकल्प’ नहीं बल्कि ‘विकल्प का नेतृत्व’ करने वाला चेहरा बनाना चाहते हैं. एआईएमआईएम ने अमौर, बहादुरगंज, जोकीहाट, ठाकुरगंज, बैसी और किशनगंज जैसे सीमांचल के 10 से अधिक क्षेत्रों में एआईएमआईएम ने उम्मीदवार उतारे हैं. दरअसल, इन सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की हिस्सेदारी 55% से 70% तक है और यही ओवैसी की सबसे बड़ी ताकत रही है. ओवैसी का यह कदम न सिर्फ महागठबंधन के मुस्लिम-यादव समीकरण को चुनौती देता हुआ प्रतीत हो रहा है, बल्कि एनडीए की सामाजिक संतुलन रणनीति को भी प्रभावित कर सकता है.
गोपालगंज-सीवान पर ओवैसी ने क्यों डाली नजर?
गोपालगंज और सीवान जैसे जिलों में एआईएमआईएम के प्रत्याशी (अनस सलाम और मोहम्मद कैफ) का उतारना इस बार खास रणनीति का हिस्सा है. इन दोनों जिलों में अब तक राजद का पारंपरिक प्रभाव क्षेत्र माना जाता रहा है. राजद का मुस्लिम और यादव वोट बैंक एआईएमआईएम की सियासी धमक से बंट सकता है. बता दें कि पिछले चुनावों में इन क्षेत्रों में औसतन 35% से अधिक मुस्लिम मतदाता रहे हैं. इनमें एआईएमआईएम के प्रचार से 3–5% का झुकाव भी अगर होता है तो महागठबंधन के उम्मीदवारों को नुकसान तय माना जा रहा है. राजद और कांग्रेस दोनों के लिए यह सीधा वोट-कटवा प्रभाव बन सकता है.
मिथिलांचल और मगध में नई पारी की शुरुआत
मिथिलांचल के जाले, दरभंगा ग्रामीण, मधुबनी और गोराबोरम जैसे इलाकों में एआईएमआईएम ने पहली बार अपने प्रत्याशी उतारे हैं. इन सीटों पर पार्टी का संगठन पहले कमजोर था, लेकिन पिछले तीन सालों में छात्र विंग और स्थानीय संगठनों के माध्यम से एआईएमआईएम ने निम्नवर्गीय मुस्लिम और पिछड़े वर्गों में पकड़ मजबूत की है. दरअसल, ओवैसी की रणनीति यहां लंबी है. अभी भले सीट जीतना मुश्किल हो, लेकिन अगर पार्टी 5 से 7% वोट भी हासिल कर लेती है तो भविष्य में वह गठबंधन राजनीति में सौदेबाजी की स्थिति में पहुंच जाएगी.
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए AIMIM के प्रत्याशियों की सूची
विधानसभा क्षेत्र/प्रत्याशी | विधानसभा क्षेत्र/प्रत्याशी |
अमौर — अख्तरुल इमान बलरामपुर — अदिल हसन ढाका — राणा रणजीत सिंह नरकटिया — शमिमुल हक गोपालगंज — अनस सलाम जोकीहाट — मुरशिद आलम बहादुरगंज — तौसीफ आलम ठाकुरगंज — गुलाम हसनैन किशनगंज — वकील शम्स आगाज बैसी — गुलाम सरवर शेरघाटी — शाह ए अली खान नाथनगर — एमडी इस्माइल सीवान — मोहम्मद कैफ | केवटी — अनिसुर रहमान जाले — फैसल रहमान सिकंदरा — मनोज कुमार दास मुंगेर — डॉ. मुनाजिर हसन नवादा — नसीमा खातून मधुबनी — रश्नीद खलील अंसारी दरभंगा ग्रामीण — मोहम्मद जालाल गोराबोरम — अख्तर शाहंशाह कस्बा — शाहनवाज आलम अररिया — मोहम्मद मंजूर आलम बरारी — मतीउर रहमान शेरशाहबादी कोचाधामन — सरवर आलम |
महागठबंधन पर असर, मुस्लिम नेतृत्व की चुनौती
एआईएमआईएम की यह सूची राजद-कांग्रेस गठबंधन के लिए सीधा सिरदर्द है. 2020 में ओवैसी ने सीमांचल की पांच सीटें जीती थीं, हालांकि बाद में चार विधायक आरजेडी में चले गए, लेकिन वह घटना यह साबित कर चुकी थी कि ओवैसी की एंट्री से मुस्लिम मतदाता का एक हिस्सा ‘पहचान आधारित राजनीति’ की ओर झुक सकता है. अब कांग्रेस और राजद दोनों के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट रखने के लिए स्थानीय स्तर पर मजबूत प्रचार करें. राजद को डर यह भी है कि ओवैसी के उम्मीदवारों की मौजूदगी से यादव वोटों का ध्रुवीकरण एनडीए की ओर हो सकता है.
ओवासी का एक्शन, एनडीए के लिए परोक्ष फायदा
भले ओवैसी एनडीए का विरोध करते रहे हैं, लेकिन इस बार एआईएमआईएम के मैदान में उतरने से एनडीए को अप्रत्यक्ष लाभ मिल सकता है. सीमांचल और उत्तर बिहार के कई क्षेत्रों में मुस्लिम वोटों का बंटवारा एनडीए उम्मीदवारों के लिए राहत का कारण बन सकता है. नीतीश कुमार की जेडीयू पहले से ही अतिपिछड़ा वर्ग और महिलाओं के समर्थन पर भरोसा कर रही है, ऐसे में एआईएमआईएम का मैदान में उतरना महागठबंधन के वोट शेयर को सीधे प्रभावित करेगा.
ओवैसी का ‘लॉन्ग गेम’ और बिहार की नई सियासत
असदुद्दीन ओवैसी की यह सूची केवल उम्मीदवारों की घोषणा नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में एक वैकल्पिक मुस्लिम नेतृत्व को स्थायी बनाने की रणनीति है. सीमांचल से शुरू होकर अब पार्टी उत्तर बिहार, मिथिलांचल और मगध तक फैलाने की कोशिश में है. भले इस चुनाव में एआईएमआईएम को ज्यादा सीटें न मिलें, लेकिन अगर पार्टी 5-6 सीटों पर मजबूत प्रदर्शन कर लेती है तो 2025 के नतीजों के बाद ओवैसी की भूमिका ‘किंगमेकर’ के रूप में उभर सकती है.
‘मुस्लिम-यादव’ वोटबैंक में सेंध की कोशिश
बहरहाल, जानकारों की नजर में असदुद्दीन ओवैसी का लक्ष्य सिर्फ सीमांचल नहीं, बल्कि बिहार के मुस्लिम नेतृत्व की खाली जगह भरना है. एआईएमआईएम का प्रवेश महागठबंधन के लिए संकट और एनडीए के लिए सुविधा बन सकता है. ऐसा इसलिए कि सीमांचल से लेकर मिथिलांचल तक यह मुकाबला अब तीन-कोणीय होने जा रहा है और इसका असर पूरे बिहार के समीकरणों पर पड़ेगा.
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें
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First Published :
October 20, 2025, 07:10 IST