Last Updated:October 24, 2025, 18:06 IST
Karpoori Thakur: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार विधानसभा चुनाव के प्रचार के सिलसिले में आज यानी 24 अक्टूबर को समस्तीपुर में थे, जो पूर्व मुख्यमंत्री और जननायक कर्पूरी ठाकुर का गृहजनपद है. इस मौके पर पीएम मोदी ने कर्पूरी ठाकुर को याद किया.
कर्पूरी ठाकुर जननायक यानी जनता के नेता के रूप में जाने जाते थे.Karpoori Thakur: बिहार विधानसभा चुनाव में कुछ ही सप्ताह बाकी हैं. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार (24 अक्टूबर) को समस्तीपुर में एक चुनावी रैली को संबोधित किया. यह रैली बिहार के प्रमुख समाजवादी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के गृह जिले में आयोजित की गयी. प्रधानमंत्री मोदी ने कर्पूरी ठाकुर की जन्मस्थली कर्पूरीग्राम का दौरा भी किया और अपने भाषण में कई बार उनका उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि कर्पूरी ठाकुर जैसे नेता के कारण ही मैं और मुख्यमंत्री नीतीश जी जैसे पिछड़े और गरीब परिवारों से आने वाले लोग आज इस मंच पर उपस्थित हैं. कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर पीएम मोदी का समस्तीपुर में रैली करना अपने आप में एक संकेत है. चूंकि बिहार में भाजपा के पास कोई बड़ा जननेता नहीं रहा है, इसलिए उसे राजद के प्रभुत्व से पहले के नेताओं की विरासत का सहारा लेना होगा.
सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने में कर्पूरी ठाकुर के योगदान का उल्लेख करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि सरकार को पिछले साल उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल और नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) जैसी क्षेत्रीय पार्टियां भी लंबे समय से उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिलाने के लिए अभियान चला रही थीं. लेकिन कर्पूरी ठाकुर आज भी राजनीति को क्यों प्रभावित करते हैं और भाजपा द्वारा इस नेता का समर्थन करने के पीछे क्या कारण है?
लोकप्रिय और जनता के नेता
कर्पूरी ठाकुर (1924-1988) जननायक यानी जनता के नेता के रूप में जाने जाते थे. यह उपाधि उनकी व्यापक लोकप्रियता को दर्शाती थी. हालांकि उनका राजनीतिक जीवन विरोधाभासों से भरा रहा. हालांकि वह खुद अल्पसंख्यक नाई जाति से होने के बावजूद अपने समय में बिहार में पिछड़ी जाति के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरने में सफल रहे. लेकिन उनके द्वारा प्रशिक्षित नेताओं – संख्यात्मक रूप से मजबूत जातियों (यादवों में लालू प्रसाद, दलितों में रामविलास पासवान) के उदय ने बाद में उनकी स्थिति को छीन लिया. कर्पूरी ठाकुर 1970 के दशक में दो बार अल्पावधि के लिए मुख्यमंत्री रहे. उस समय राज्य में राजनीतिक सत्ता मुख्यतः उच्च जाति के नेताओं के बीच केंद्रित थी.
स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया
कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर के पितौंझिया (जिसे अब कर्पूरीग्राम के नाम से जाना जाता है) गांव में हुआ था. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और इसके लिए जेल भी गए. स्वतंत्र भारत में वह 1952 में विधायक चुने गए. वब 1988 में अपनी मृत्यु तक विधायक रहे. वह एक बार 1977 में सांसद बने और एक बार 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के प्रति सहानुभूति लहर के बीच विधानसभा चुनाव हार गए थे. कर्पूरी ठाकुर दिसंबर 1970 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के साथ राज्य के मुख्यमंत्री बने, लेकिन छह महीने बाद ही उनकी सरकार गिर गई. जून 1977 में वह फिर से इस पद पर आसीन हुए, लेकिन लगभग दो साल बाद ही सत्ता से बाहर हो गए. जैसे-जैसे बिहार में सामाजिक न्याय के नए नेताओं की एक नई पीढ़ी शक्तिशाली होती गई, ठाकुर धीरे-धीरे अपनी जमीन खोते गए.
आरक्षण नीति को लागू करना
कर्पूरी ठाकुर को कई महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए जाना जाता है. जैसे मैट्रिक परीक्षा के लिए अंग्रेजी को अनिवार्य विषय के रूप में हटाना, शराब पर प्रतिबंध और सरकारी अनुबंधों में बेरोजगार इंजीनियरों के लिए प्रीफ्रेंशियल ट्रीटमेंट. उस समय बेरोजगार इंजीनियर नौकरियों के लिए नियमित रूप से विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. ऐसे ही एक प्रदर्शनकारी नीतीश कुमार भी थे. इसके अलावा उन्होंने आरक्षण प्रणाली लागू की. यह वह अंतिम कदम था जिसका बिहार के साथ-साथ पूरे देश पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा. जून 1970 में बिहार सरकार ने मुंगेरी लाल आयोग का गठन किया, जिसने फरवरी 1976 की अपनी रिपोर्ट में 128 पिछड़े समुदायों को चिह्नित किया, जिनमें से 94 को अति पिछड़ा घोषित किया गया. ठाकुर की जनता पार्टी सरकार ने आयोग की सिफारिशों को लागू किया.
किया गाली-गलौज वाले नारों का सामना
‘कर्पूरी ठाकुर फॉर्मूला’ के तहत 26% आरक्षण का प्रावधान था, जिसमें से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 12%, ओबीसी के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को 8%, महिलाओं को 3% और उच्च जातियों के गरीबों को 3% आरक्षण मिला. यह केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए कोटा लागू करने से बहुत पहले की बात है. जाति जनगणना की मांग के बीच स्तरीकृत आरक्षण की मांग ने जोर पकड़ लिया था. ऐतिहासिक आरक्षण नीति पारित होने के बाद कर्पूरी ठाकुर को सवर्णों की ओर से अपमानजनक और यहां तक कि गाली-गलौज वाले नारों का सामना करना पड़ा, जो सीधे उनकी जाति को निशाना बना रहे थे. ऐसा ही एक नारा था, ‘कर्पूरी कर पूरा, छोड़ गद्दी, धर उस्तरा (अपना काम पूरा करो, कर्पूरी जी. कुर्सी से उतरो, उस्तरा पकड़ो). जो उनकी जाति के पारंपरिक पेशे नाई को लेकर था.
आज की राजनीति में उनकी विरासत
जैसे-जैसे मंडल-कमंडल की राजनीति तेज होती जा रही है, हिंदू वोटों को एकजुट करने के प्रयासों के खिलाफ पिछड़े समूहों में जातिगत पहचान का दावा बढ़ रहा है. बिहार में सभी राजनीतिक खिलाड़ी कर्पूरी ठाकुर की विरासत पर दावा कर रहे हैं. कर्पूरी ठाकुर संख्या की दृष्टि से कम पिछड़ी जाति से थे, फिर भी उन्होंने लोकप्रियता हासिल की. इस मामले में एनडीए नीतीश के साथ सीधी तुलना करने की कोशिश कर रही है, जो कम आबादी वाली कुर्मी जाति से हैं. कुछ लोगों ने इसकी विडंबना की ओर इशारा किया है. क्योंकि नीतीश की पीढ़ी के नेताओं ने ही कर्पूरी ठाकुर को दरकिनार कर दिया था.
हद दर्जे के ईमानदार
ध्यान देने वाली बात यह है कि कर्पूरी ठाकुर के कार्यकाल के दौरान उन पर व्यक्तिगत भ्रष्टाचार या ‘अराजकता’ का कोई आरोप नहीं लगा. हालांकि उनकी नीतियां ध्रुवीकरणकारी थीं, लेकिन कर्पूरी ठाकुर व्यक्तिगत रूप से अपनी साफ-सुथरी छवि के लिए सम्मानित थे. उनके बारे में एक प्रचलित किस्सा यह है कि 1952 में जब वह पहली बार विधायक बने तो उन्हें ऑस्ट्रिया जाने वाले एक आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल के लिए चुना गया. उनके पास कोट नहीं था और उन्हें एक दोस्त से फटा हुआ कोट उधार लेना पड़ा था. जब युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप टीटो की नजर उस कोट पर पड़ी तो उन्होंने कर्पूरी ठाकुर को एक नया कोट उपहार में दिया. 1988 में जब कर्पूरी ठाकुर का निधन हुआ, तब उनका घर एक झोपड़ी से ज्यादा कुछ नहीं था.
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
October 24, 2025, 18:06 IST

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