नई दिल्ली (Research on Gen Z). कॉर्पोरेट की सीढ़ियां चढ़ना अब ‘कूल’ नहीं रहा! एक समय था जब ऊंचा पद, केबिन और मैनेजर का टैग हर युवा का सपना होता था, लेकिन अब जनरेशन ज़ी (Gen Z) ने इस सपने को ‘तनाव भरा झांसा’ बताकर सिरे से नकार दिया है. एक चौंकाने वाली रिसर्च बताती है कि 52% युवा जानबूझकर लीडरशिप और मिडिल मैनेजमेंट की जिम्मेदारियों से दूरी बना रहे हैं. क्यों? क्योंकि उनके लिए सफलता अब सिर्फ मोटी सैलरी या बॉस की कुर्सी नहीं है, बल्कि ‘खुशी, आजादी और सुकून’ है.
Gen Z ने कॉर्पोरेट जगत को साफ संदेश दे दिया है: प्रमोशन का लालच देकर मानसिक शांति नहीं छीन सकते! यह बदलाव सिर्फ एक नौकरी का फैसला नहीं है, यह उस पुराने वर्क कल्चर के खिलाफ एक शांत विद्रोह है, जहां कर्मचारी को सिर्फ ‘ओवरवर्क मशीन’ समझा जाता था. अब वक्त आ गया है कि बॉस समझ लें, यह नई पीढ़ी स्मार्ट वर्क करेगी, ओवरवर्क नहीं. मैनेजर बनने का मतलब अक्सर 24 घंटे की ऑन-कॉल ड्यूटी, ऑफिस पॉलिटिक्स का दलदल और तनाव का डबल डोज होता है. Gen Z युवा इससे दूर रहना चाहते हैं.
रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा
रिक्रूटमेंट फर्म Robert Walters की रिसर्च के अनुसार, युवा देख रहे हैं कि मैनेजर को जिम्मेदारी तो पहाड़ जितनी मिलती है, लेकिन उस तनाव के सामने सैलरी में इजाफा ‘मूंगफली’ जैसा होता है. उनका मानना है कि इतनी सी सैलरी के लिए जिंदगी को जहन्नुम बनाना गलत है. वे ऐसी जगह काम करना पसंद करते हैं जहां उन्हें क्रिएटिविटी, फ्लेक्सिबिलिटी और मेंटल हेल्थ को प्राथमिकता देने की अनुमति हो. यह पीढ़ी ‘बॉस’ और ‘कर्मचारी’ वाले पुराने ढर्रे को तोड़कर ऐसा कल्चर बनाना चाहती है, जहां सब मिलकर काम करें.
बदल गए सफलता के मायने
पुरानी पीढ़ियों के विपरीत, Gen Z के लिए सफलता अब ऊंचे पद या प्रमोशन से नहीं मापी जाती है. वे मैनेजर बनने की प्रक्रिया को प्रमोशन की जगह सीमित (Restricting) महसूस करते हैं. उनके लिए जीवन में सबसे जरूरी है खुश रहना, पर्सनल फ्रीडम और अपने पैशन को समय देना. यह नई परिभाषा उन्हें स्ट्रेसफुल मैनेजमेंट की भूमिकाओं से दूर रखती है.
भारत में ’24 घंटे की ड्यूटी’ का बोझ
भारतीय वर्क कल्चर में मैनेजर्स से उम्मीद की जाती है कि वे लगभग हर समय कॉल या मेसेज का जवाब दें. इसका मतलब है कि उन्हें 22-24 घंटे एक्टिव रहना होगा. Gen Z इसे वर्क लाइफ बैलेंस पर सीधा हमला मानते हैं. वे अपनी व्यक्तिगत सीमाओं को लेकर स्पष्ट हैं और ना कहना बखूबी जानते हैं. वे ऐसी नौकरी नहीं चाहते, जहां सिर्फ काम ही उनकी पूरी जिंदगी बन जाए.
‘पीनट्स’ सैलरी और डबल स्ट्रेस का फॉर्मूला
Gen Z का मानना है कि आज के मैनेजर्स यानी उनकी पिछली पीढ़ी के लोग भारी तनाव में जी रहे हैं. ओवर वर्क की तुलना में उनकी सैलरी कुछ नहीं है. वे काम ज्यादा करते हैं, फिर भी उनकी और जेन जी युवाओं की सैलरी में खास फर्क नहीं है. उनका मानना है कि ज्यादा तनाव और थोड़ी-सी बढ़ी हुई सैलरी का फॉर्मूला प्रैक्टिकल नहीं है. वे स्मार्ट वर्क को प्राथमिकता देते हैं और बेकार के ओवरवर्क से बचना चाहते हैं.
ऑफिस पॉलिटिक्स और ‘ड्रामा’ से दूरी
मैनेजर की भूमिका में लोगों को अक्सर गॉसिप, ऑफिस पॉलिटिक्स और टीम के इंटरनल इश्यूज से निपटना शामिल है. Gen Z को ये चीजें ‘ड्रामा’ और समय की बर्बादी लगती हैं. वे ईमानदारी और खुली बातचीत पर आधारित सरल और ट्रांसपेरेंट वर्क स्पेस पसंद करते हैं, न कि मैनेजमेंट के साथ आने वाले कॉम्प्लेक्स सोशल इक्वेशंस में फंसना.
क्रिएटिविटी और फ्लेक्सिबिलिटी का महत्व
युवा पीढ़ी फ्लेक्सिबिलिटी और क्रिएटिविटी को बहुत महत्व देती है. वे अपने काम करने का तरीका खुद तय करना चाहते हैं. मैनेजर के रोल में अक्सर उन्हें सख्त नियमों और डेडलाइन्स के एक बंधे हुए ढांचे का पालन करना पड़ता है, जो उनकी क्रिएटिविटी को सीमित करता है. इसलिए वे ऐसे रोल्स चुनते हैं जो उन्हें ज्यादा स्वतंत्रता प्रदान कर सकें.

2 hours ago
