'भगवान कृष्ण क्या सोच रहे होंगे', सिब्बल की दलील पर SC को ऐसा क्यों कहना पड़ा?

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Last Updated:December 06, 2025, 19:46 IST

इस्कॉन मुंबई और इस्कॉन बेंगलुरु के बीच बेंगलुरु मंदिर के मालिकाना हक के कानूनी विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने कई राउंड की मुकदमेबाजी से परेशान होकर कहा कि भगवान कृष्ण इस सबके बारे में क्या सोच रहे होंगे. कोर्ट एक रिव्‍यू पिटीशन पर सुनवाई कर रहा है. मुंबई पक्ष मंदिर पर अपनी मूल संस्था होने का दावा कर रहा है जबकि बेंगलुरु इस्कॉन खुद को एक स्वतंत्र इकाई बताता है. कोर्ट ने नोटिस जारी कर मामले की अगली सुनवाई जनवरी में तय की है. सिब्‍बल मुंबई इस्‍कॉन का केस लड़ रहे हैं.

'भगवान कृष्ण क्या सोच रहे होंगे', सिब्बल की दलील पर SC को ऐसा क्यों कहना पड़ा?सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई कर रहा है.

देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने न्यायाधीशों को भी परेशान कर दिया. मामला ISKCON से जुड़ा है लेकिन यह धर्म या आस्था का नहीं बल्कि संपत्ति के मालिकाना हक का मामला है. इस्कॉन की मुंबई इकाई और बेंगलुरु इकाई के बीच यह कानूनी लड़ाई सालों से चली आ रही है, जिसके तहत दोनों पक्ष बेंगलुरु के हरे कृष्ण मंदिर पर अपना दावा पेश कर रहे हैं. मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस एमएम सुंदरेश, सतीश चंद्र शर्मा और पीके मिश्रा की बेंच ने बार-बार हो रहे मुकदमों पर टिप्पणी करते हुए हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, “भगवान कृष्ण इसपर क्या सोच रहे होंगे?” वरिष्‍ठ वकील कपिल सिब्‍बल मुंबई इस्‍कॉन की तरफ से केस लड़ रहे हैं.

बेंगलुरु मंदिर के मालिकाना हक पर जंग
यह पूरा विवाद बेंगलुरु के हरे कृष्ण मंदिर के मालिकाना हक को लेकर है. इस्कॉन मुंबई बनाम इस्कॉन बेंगलुरु मामले में सुप्रीम कोर्ट की एक तीन-सदस्यीय पीठ मुंबई इस्कॉन द्वारा दायर रिव्‍यू पिटीशन पर सुनवाई कर रही थी. ये याचिकाएं शीर्ष अदालत के मई 2025 के उस फैसले की समीक्षा के लिए दायर की गई हैं जिसने इस्कॉन बेंगलुरु को एक स्वतंत्र कानूनी इकाई और मंदिर का मालिक माना था.

अदालती फैसलों का उलझाव
16 मई को आए फैसले में कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि इस्कॉन बेंगलुरु कर्नाटक सोसाइटीज़ रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1960 के तहत एक अलग कानूनी इकाई है. कोर्ट ने यह भी माना कि यह मुंबई इस्कॉन की केवल एक शाखा नहीं है. कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया जबकि साल 2011 के कर्नाटक हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया था जो मुंबई इस्कॉन के पक्ष में आया था.

बेंचों का मतभेद और सुनवाई
इस फैसले से नाखुश होकर इस्कॉन मुंबई ने फिर से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और रिव्‍यू पिटीशन दायर की. जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस एजी मसीह की एक बेंच ने पिछले महीने 8 नवंबर को इसपर विभाजित फैसला सुनाया. जस्टिस मसीह ने याचिकाएं खारिज कर दीं जबकि जस्टिस माहेश्वरी ने उन्हें स्वीकार कर लिया. इस मतभेद के कारण मामला मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा गया जिन्होंने सुनवाई के लिए नई तीन-जजों वाली बेंच का गठन किया.

हमारा है, उन्होंने ले लिया: सिब्‍बल
3 दिसंबर की सुनवाई के दौरान मुंबई इस्कॉन के वकील ने दलील दी कि पिछले फैसले में कई न्यायिक स्वीकृतियों पर ध्यान नहीं दिया गया. उन्होंने दावा किया कि मुंबई इस्कॉन ही पेरेट संस्था है और बेंगलुरु इस्कॉन सिर्फ इसकी सहायक इकाई थी इसलिए वह मंदिर के मालिकाना हक पर दावा नहीं कर सकते. वहीं, बेंगलुरु इस्कॉन के वकील ने कहा कि उन्होंने अक्षय पात्र योजना शुरू की है और दो अरब भोजन परोसे जा रहे हैं. इसी बीच मुंबई पक्ष के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, “बेंगलुरु इस्‍कॉन ने कुछ ऐसा ले लिया है जो हमारा है.” सुनवाई खत्म होते समय पीठ ने मजाकिया लहजे में कहा, “जाहिर है, दोनों पक्षों को यह भी लगता है कि कुछ भी उनका नहीं है बल्कि सब कुछ भगवान कृष्ण का है.” कोर्ट ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया और अगली सुनवाई जनवरी के तीसरे सप्ताह के लिए तय की.

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Sandeep Gupta

पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें

First Published :

December 06, 2025, 19:42 IST

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