भगवान जगन्नाथ से क्यों डरे अंग्रेज, मंदिर की जासूसी में मूर्ति सांस लेते मिली

4 hours ago

ओडिशा के पुरी में 27 जून को महाप्रभु जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है. तब ऐसा लगता है कि पुरी में जनसैलाब उमड़ आया हो. विधि विधान पूजा के बाद भगवान जगन्नाथ को नंदी घोष रथ, देवी सुभद्रा को दर्पदलन और बलभद्र को तालध्वज रथ पर बिठाकर यात्रा में निकालते हैं. 1800 के दशक में, अंग्रेज़ महाप्रभु जगन्नाथ को सिर्फ़ भगवान के रूप में नहीं देखते थे. वो उन्हें शक्ति के रूप में देखते थे. उनसे डरते भी थे. मंदिर में आने वाले लाखों लोगों की ताकत उन्हें भयभीत कर देती थी.

एक्स पर रणविजय सिंह ने एक थ्रेड में ईस्ट इंडिया कंपनी के उन वाकयों का जिक्र किया, जिसमें अंग्रेजों ने इस मंदिर के रहस्यों को पता लगाने के लिए जासूसी की. बाद में कुछ ऐसा हुआ कि वो भगवान जगन्नाथ से डरकर दूर ही हो गए. कई अंग्रेज अफसरों ने इसका जिक्र किया. जिसमें लेफ्टिनेंट स्टर्लिंग की डायरी को खासतौर पर संदर्भ बनाया जाता है.

अंग्रेजों ने चुपचाप मंदिर के अंदर की जासूसी कराई

अंग्रेजों के लिए पुरी सिर्फ़ एक मंदिर नगरी नहीं थी. यह जन ऊर्जा का केंद्र था. जगन्नाथ की पूजा से कहीं ज़्यादा उनकी आज्ञा का पालन किया जाता था. कोई भी औपनिवेशिक कानून यहां नहीं चलता था. ब्रिटिश एजेंटों को तीर्थयात्रियों और शोधकर्ताओं के वेश में भेजा गया. उनका काम जासूसी करना, नक्शा बनाना और मंदिर के रहस्यों को उजागर करना था. उन्होंने इसे खुफिया जानकारी कहा. स्थानीय लोगों को जब ये बात मालूम हुई तो वह इससे नाराज हो उठे.

ईस्ट इंडिया कंपनी के लेफ्टिनेंट स्टर्लिंग ने पुरी के मंदिर के रहस्य को लेकर एक गुप्त डायरी लिखी, जो रहस्यमय तरीके से गायब भी हो गई.

लेफ्टिनेंट स्टर्लिंग ने गुप्त डायरी लिखी

लेफ्टिनेंट स्टर्लिंग, ऐसे ही एक अधिकारी थे, जिन्होंने इस बारे में एक गुप्त डायरी लिखी थी. इसमें ये बताया जाता है कि उन्होंने मंदिर के बारे में कई रहस्यमयी बातें लिखीं थीं. उन्होंने मूर्ति की आंखों, गर्भगृह के पास असंभव सन्नाटे और जगन्नाथ के जीवित होने के बारे में लिखा.

उन्हें महसूस हुआ कि भगवान की मूर्ति सांस लेती है, देखती है

स्टर्लिंग ने लिखा, “लोग भगवान के बारे में जिस तरह से बात करते हैं, उसमें कुछ ऐसा है जो बेचैन कर देता है, मानो वो जीवित मूर्ति हो, ऐसा लगता है कि जैसे वो अब भी सांस ले रहे हों.” स्टर्लिंग गया तो वहां जासूसी करने के लिए था. अहंकार उसके अंदर कूट कूटकर भरा था. अंग्रेज होने का भी अहंकार था. लेकिन वहां जाते ही खत्म होने लगा. उसकी जगह खौफ और डर ने ले ली.

जब अंग्रेज मंदिर के अंदर जासूसी करने गए तो गर्मगृह के आसपास के सन्नाटे से वो डर गए. भगवान की मूर्ति उन्हें सांस लेती हुई. एक अंग्रेज डर से चिल्लाने लगा कि मूर्ति की आंखें उसे देख रही हैं.

एक अंग्रेज पागल हो गया तो दूसरा चिल्लाने लगा

अंग्रेज जानना चाहते थे कि ब्रह्म पदार्थ क्या है, जो भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर माना जाता है, कुछ लोगों की मान्यताओं ये उनका धड़कता हुआ दिल है. कुछ इसे अंतरिक्ष से आया अवशेष मानते हैं. कुछ लोग रहस्य से दूसरों ने फुसफुसाते हुए इसके बारे में बताते हैं कि मूर्ति के अंदर रहने वाला ब्रह्म पदार्थ जीवित पदार्थ की ही तरह धड़कता है. किवदंतियां ये हैं कि जिसने भी इसे छुआ, वह लंबे समय तक जीवित नहीं रहा. इस जासूसी आपरेशन के दौरान एक अधिकारी को तेज बुखार हो गया. दूसरा पागल हो गया. वो चिल्लाने लगा कि भगवान की आंखें अंधेरे में भी उसे देख रही हैं.

अंग्रेज गर्भगृह में जाने से कतराने लगे

स्थानीय लोगों का मानना ​​था कि महाप्रभु जगन्नाथ खुद की रक्षा करते हैं. हालत ये हो गई कि अंग्रेज सैनिक और अफसर गर्भगृह में जाने से कतराने लगे. एक अधिकारी ने उन्हें “जीवित भगवान” कहना शुरू कर दिया.

रॉबर्ट क्लाइव और ईस्ट इंडिया कंपनी के अफसरों ने अपनी डायरियों में भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाओं को “रहस्यमयी” और “अनियंत्रित” बताया.

लेफ्टिनेंट स्टर्लिंग की गुप्त डायरी गायब हो गई

लेफ्टिनेंट स्टर्लिंग की मूल डायरी गायब हो गई. हालांकि कहा जाता है कि ये लंदन में एक निजी संग्रह में एक दुर्लभ प्रति मौजूद है. कुछ लोगों का कहना है कि इसमें ब्रिटिश लोगों के लिए बहुत परेशान करने वाली बातें हैं. इसे आज भी सीलबंद करके रखा गया है.

वैसे हकीकत ये जरूर है कि तब अंग्रेजों को डर था कि मंदिर की यह अपार लोकप्रियता और संगठन शक्ति उनके औपनिवेशिक शासन के खिलाफ विद्रोह का कारण बन सकती है.

कुछ X पर पोस्ट पर दावा किया गया कि अंग्रेज जासूसों ने पुरी में मंदिर की गतिविधियों पर नजर रखी, लेकिन वे वहां की आध्यात्मिक और सामाजिक शक्ति से प्रभावित होकर वापस लौटे. कुछ अंग्रेज अधिकारियों जैसे कि रॉबर्ट क्लाइव या अन्य ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों ने अपनी डायरियों में भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाओं को “रहस्यमयी” और “अनियंत्रित” बताया, जो उनके औपनिवेशिक शासन के लिए चुनौतीपूर्ण थीं.

जगन्नाथ मंदिर की वार्षिक रथ यात्रा अंग्रेजों को हमेशा डराती थी, वो इसे संगठित जन आंदोलन की तरह देखते थे.

पाइका विद्रोह से भी डर गए अंग्रेज

ओडिशा में पाइका विद्रोह एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसमें स्थानीय योद्धाओं (पाइकों) ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया. यह विद्रोह जगन्नाथ मंदिर के प्रभाव क्षेत्र में हुआ. अंग्रेजों को डर था कि मंदिर की लोकप्रियता इस तरह के विद्रोह को और बढ़ावा दे सकती थी. जगन्नाथ मंदिर की वार्षिक रथ यात्रा में लाखों लोग शामिल होते थे, जो अंग्रेजों के लिए एक संगठित जन आंदोलन की तरह दिखता था. वह इसे अपने शासन के लिए संभावित खतरे के रूप में देखते थे.

जब अंग्रेजों ने मंदिर पर कब्जे की कोशिश की

1803 में अंग्रेजों ने ओडिशा पर कब्जा किया, तो उन्होंने मंदिर के प्रशासन को नियंत्रित करने की कोशिश की. हालांकि स्थानीय पुजारियों और भक्तों के विरोध के कारण उन्हें पीछे हटना पड़ा. यह घटना उनके लिए एक सबक थी कि मंदिर की धार्मिक और सामाजिक शक्ति को दबाना आसान नहीं है.

अंग्रेज मंदिर की रथ यात्रा जैसे आयोजन और इसके रहस्यमयी अनुष्ठानों को कभी नहीं समझ पाए. उन्हें ये भी कभी नहीं समझ में आया कि मूर्तियों में मौजूद ये “ब्रह्म पदार्थ” क्या है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में एक पवित्र “ब्रह्म पदार्थ” होता है, जिसे कृष्ण का धड़कता हुआ दिल माना जाता है.

क्या है ब्रह्म पदार्थ का रहस्य यानि भगवान का धड़कता हुआ दिल

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में एक पवित्र “ब्रह्म पदार्थ” होता है, जिसे श्रीकृष्ण का हृदय माना जाता है. यह मूर्ति हर 12-19 वर्षों में नवकलेवर (मूर्ति परिवर्तन) के दौरान बदली जाती है. इस प्रक्रिया को अत्यंत गोपनीय रखा जाता है. अंग्रेजों की उत्सुकता इस रहस्य को जानने की हो सकती थी, लेकिन मंदिर के पुजारी और स्थानीय समुदाय इसके प्रति बहुत संवेदनशील थे, जिससे अंग्रेजों का प्रवेश या हस्तक्षेप मुश्किल था.

हिंदू परंपरा और विशेष रूप से जगन्नाथ मंदिर के अनुष्ठानों के अनुसार, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा की मूर्तियों में एक पवित्र “ब्रह्म पदार्थ” होता है. इसे श्रीकृष्ण का हृदय या एक आध्यात्मिक सार माना जाता है, जो मूर्तियों को जीवंत और पवित्र बनाता है. यह पदार्थ अत्यंत गोपनीय होता है. केवल विशिष्ट पुजारी ही इसके बारे में जानते हैं.

जब पुरानी मूर्तियों से इस ब्रह्म पदार्थ को नई मूर्तियों में स्थानांतरित किया जाता है तो ये प्रक्रिया बहुत गोपनीय होती है. इसे केवल चुनिंदा पुजारी (दैतापति) अंधेरे में और सख्त गोपनीयता के साथ करते हैं. इस दौरान पुजारियों की आंखें भी ढकी होती हैं. ये माना जाता है कि यह पदार्थ एक पवित्र और रहस्यमयी वस्तु है.
पुराणों में कहा गया है कि भगवान कृष्ण का हृदय अमर है।.

ब्रह्म पदार्थ की प्रकृति के बारे में कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हुआ है, क्योंकि मंदिर के अनुष्ठान बाहरी लोगों के लिए बंद हैं. यह संभव है कि ब्रह्म पदार्थ कोई प्रतीकात्मक वस्तु हो, जिसे आध्यात्मिक महत्व दिया गया है.

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