अमेरिका सामरिक तकनीक के मामले में दुनिया के सबसे ताकतवर देश में शुमार है. दुनिया के तकरीबन 200 देशों के साथ उसके सामरिक रिश्ते हैं. अमेरिकी आर्म्स एक्सपोर्ट कंट्रोल एक्ट और फॉरेन असिस्टेंस एक्ट के तहत ये सारे मिलिट्री सेल और सर्विस को अंजाम दिया जाता है. इसके ही तहत फॉरेन मिलिट्री सेल्स सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. भारत भी उन 200 देशों में शामिल है, जिसके साथ अमेरिका की सामरिक साझेदारी है. चाहे अमेरिका में डेमोक्रेट सरकार हो या रिपब्लिकन की. इस क्षेत्र में सभी की नीतियां लगभग एक सी हैं. अमेरिकी डिफेंस सेक्टर को बढ़ाना ये सबसे पहली प्राथमिकता में से एक है. साल 2008 के बाद से डिफेंस ट्रेड परवान चढ़ना शुरू हुआ और साल 2016 में अमेरिका ने भारत को मेजर डिफेंस पार्टनर के तौर पर मान्यता दी.
ट्रंप सरकार की नजर और डिफेंस डील
भारतीय सेना इस वक्त के सबसे बड़े डील को फाइनल करने की तैयारी कर रही है, जिसमें भारतीय वायुसेना के लिए 114 MRFA (मल्टी रोल फाइटर एयरक्राफ्ट) की ख़रीद की जानी है. इस रेस में रूस की सुखोई 35 और मिग 35, फ़्रांस का रफाल, अमेरिका के F-21, F-18, स्वीडन की ग्रिपेन और यूरोप का यूरोफाइटर टाइफून शामिल है. हालांकि, अभी खरीद प्रक्रिया शुरू होनी है.
हाल ही में भारतीय वायुसेना की तरफ़ से आयोजित किए गए मल्टी नेशनल वायु सैना अभ्यास के दौरान सभी दावेदार अपने एयरक्राफ्ट को लेकर आए और भारतीय वायुसेना के सामने अपनी दावेदारी को पेश किया. अमेरिका लगातार भारत को इस डील के लिए खास तौर पर F-16 का एडवांस वर्जन स्टेट ऑफ आर्ट कैपेबिलिटी वाले F-21 फाइटिंग फाल्कन को पुश कर रहा है.
इस डील पर अमेरिका की भी नज़र है और माना जा रहा है कि ट्रंप प्रशासन इस डील को क्रैक करने की कोशिश करेगा. इसके अलावा भारत के तेजस मार्क 1A प्रोग्राम के लिए इंजन की डील अमेरिकी इंजन निर्माता कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक (GE) के साथ साल 2021 में तय हो गई. इस डील के तहत कुल 99 F404 इंजन की सप्लाई भारत को होनी है, जो कि तेजस मार्क 1A प्रोग्राम के लिए है. लेकिन इसकी डिलिवरी अब तक नहीं हो सकी, जिसके चलते तेजस का प्रोग्राम आगे बढ़ नहीं रहा है. माना जा रहा है कि ट्रंप के आने के बाद इस डिलिवरी में तेजी आएगी और भारतीय वायुसेना के लिए स्वदेशी तेजस मार्क 1A का प्रोडक्शन समय पर हो सकेगा.
हाल ही में भारत ने 3 बिलियन डॉलर की लागत से 31 आर्म्ड ड्रोन MQ-9B सी गार्डियन और स्काई गार्डियन की डील अमेरिका से की है, जिसकी डिलीवरी ट्रंप प्रशासन के दौरान शुरू होगी. ये ड्रोन भारत में ही असेंबल किए जाएंगे. ड्रोन बनाने वाली अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक भारत में ग्लोबल मेंटेनेंस, रिपेयर और ओवरऑल (MRO) फैसिलिटी भी बनाएगी.
इसके अलावा मोदी और बाइडन के बीच न्यूक्लियर एनर्जी में भी दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने को लेकर बात हुई थी. साथ ही नेक्स्ट जेनेरेशन स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर टेक्नोलॉजी को साथ मिलकर विकसित करने पर भी बात हुई और माना जा रहा है कि ये भी ट्रंप प्रशासन के दौरान परवान चढ़ सकती है. इसके अलावा अमेरिका की GE एरोस्पेस और भारत की HAL के बीच भारत में ही GE F-414 जेट इंजन बनाने के लिए प्रक्रिया आगे बढ़ने और निगोसिएशन की प्रक्रिया चल रही है और इस ऐतिहासिक जॉइंट प्रोडक्शन और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की प्रक्रिया में ट्रंप और तेजी ला सकते हैं. GE-F-414 इंजन भारतीय वायुसेना के तेजस मार्क 2 में लगाए जाने हैं. तो ट्रंप प्रशासन की कोशिश होगी की भारतीय सेना 500 से ज्यादा इन्फेंट्री कॉम्बैट वेहिकल की ख़रीद की तैयारी में है इसे हासिल किया जा सके. इस सौदे के लिए अमेरिकी स्ट्रायकर ICV प्रमुख दावेदार है.
भारतीय सेना में अमेरिकी हथियार
साल 2000 से साल 2023 के बीच हुए आर्म्स डील की बात करें तो इसकी एक लंबी फेहरिस्त है. जिसमें भारतीय वायुसेना के लिए 28 अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर, 1354 AGM-114 हेलफायर एंटी टैंक मिसाइल, स्ट्रिंगर पोर्टेबल सर्फेस टू सर्फेस एयर मिसाइल, कॉम्बैट हेलीकॉप्टर रडार, 15 चिनूक हैवी लिफ्ट हेलीकॉप्टर, 13 C-130 सुपर हरक्यूलिस, 11 C-17 ग्लोबमास्टर सहित कई और. नौसेना के लिए जलाश्व “एंफीबियस ट्रांसपोर्ट डॉक, 24 रोमियो हेलीकॉप्टर, 12 P8i एयरक्राफ्ट, एंटी सबमरीन वॉरफेयर टॉरपीडो, हारपून एंटी शिप मिसाइल, सी किंग हेलीकॉप्टर, नेवल गैस टर्बाइन शामिल है. इसके अलावा भारतीय थलसेना के लिए M-777 हॉवित्जर, आर्टिलरी शेल शामिल हैं.
ट्रंप का ट्रंप कार्ड
भारत के साथ सैन्य रिश्तों के अलावा ट्रंप ने पाकिस्तान की भी चूड़ी कसने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी. ट्रंप सरकार ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 300 मिलियन डॉलर की मदद को रोक दी थी. वहीं रूस के साथ हुए S 400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम को लेकर भारत और अमेरिका के बीच तनातनी बनी थी और CAATSA क़ानून का हवाला देकर अमेरिका भारत पर दबाव बनाने की कोशिश ज़रूर की थी, लेकिन कोई प्रतिबंध नहीं लगाया था. ये कानून भी ट्रंप प्रशासन की तरफ से पास किया था, जिसके तहत रूस के साथ सैन्य संबंध रखने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाने की बात है. यही नहीं ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद ही चीन को इंडोपैसेफिक में घेरने के लिए QUAD को फिर से एक्टिव किया था. बहरहाल अमेरिकी फर्स्ट की पॉलिसी पर चलने वाले डॉनल्ड ट्रंप का ये कार्यकाल कैसा होगा इस पर सबकी नजर होगी.
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FIRST PUBLISHED :
November 6, 2024, 17:23 IST