Bihar Chunav Result 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने राज्य की राजनीतिक दिशा को एक बार फिर बदल दिया है. सातों बड़े क्षेत्रों में एनडीए ने जिस प्रकार एकतरफा बढ़त बनाई है, उसने न केवल महागठबंधन की रणनीति को धराशायी कर दिया, बल्कि यह संकेत भी दिया है कि बिहार की राजनीति में जनादेश किस ओर झुक चुका है. भोजपुर से लेकर सीमांचल तक, एनडीए की लहर इस चुनाव की सबसे बड़ी कहानी बनकर उभरी है. इन नतीजों ने एक बात साफ कर दी है – तेजस्वी यादव का युवा नेतृत्व और राहुल गांधी का राष्ट्रीय नैरेटिव इस बार बिहार के मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में पूरी तरह असफल रहा. दूसरी ओर एनडीए ने क्षेत्रीय सामाजिक समीकरणों, संगठनात्मक मजबूती और केंद्र-राज्य स्तर की योजनाओं के तालमेल को आधार बनाकर अभूतपूर्व जीत दर्ज की. एनडीए को 202 सीटें मिली हैं, जबकि महागठबंधन महज 35 सीटों पर ही सिमट गया.
भोजपुर क्षेत्र: विपक्ष की लामबंदी की कोशिश काम न आई
भोजपुर के 22 सीटों में से एनडीए ने 19 जीतकर यह दिखा दिया कि यहां गठबंधन की पकड़ अब भी बेहद मजबूत है. दूसरी ओर महागठबंधन सिर्फ 2 सीटों पर सिमटकर रह गया. भोजपुर में यादव-मुस्लिम समीकरणों और जाति-आधारित लामबंदी की कोशिश इस बार कारगर नहीं रही. यह क्षेत्र परंपरागत रूप से जातीय ध्रुवीकरण का केंद्र रहा है, लेकिन इस बार मतदाताओं ने रोजगार, सड़क, सुरक्षा और सरकारी योजनाओं को ज्यादा अहमियत दी. एनडीए का यही ‘गवर्नेंस+इन्फ्रास्ट्रक्चर’ मॉडल यहां भारी पड़ा.
तिरहुत क्षेत्र: एनडीए बल्ले-बल्ले
तिरहुत के आंकड़े बताते हैं कि यह चुनाव महागठबंधन के लिए कितना कठिन रहा. एनडीए की 44 और महागठबंधन की केवल 5 सीटों का अंतर साधारण नहीं है. इस क्षेत्र में भाजपा की संगठनात्मक मजबूती, ईबीसी और महिला वोट बैंक की बड़ी भूमिका रही. कोविड काल के बाद से तिरहुत में माइग्रेशन कम हुआ है, और इसका श्रेय सरकार की योजनाओं(विशेषकर स्वास्थ्य और शिक्षा सुधारों) को दिया जा रहा है. महागठबंधन यहां न तो उम्मीदवार चयन में प्रभावी रहा, न ही वह मुद्दों को अपने पक्ष में मोड़ पाया.
बिहार चुनाव परिणाम- 2025 में तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की जोड़ी पूरी तरह से फेल रही. (फाइल फोटो/PTI)
अंग क्षेत्र (भागलपुर–मुंगेर): विकास नैरेटिव पर एनडीए का कब्जा
अंग क्षेत्र में एनडीए ने 38 में से 34 सीटें हासिल कर चुनाव को एकतरफा बना दिया. यह वह क्षेत्र है जहां विकास का नैरेटिव सबसे अधिक प्रभावी रहा. उद्योग, कृषि, गंगा जल जीवन हरियाली, और सड़क-कनेक्टिविटी – इन सभी पर एनडीए ने मजबूत पकड़ बनाई. महागठबंधन की 4 सीटें दिखाती हैं कि विपक्ष यहां पूरी तरह संघर्षरत है. तेजस्वी यादव की रोजगार राजनीति यहां मध्यम वर्ग और ग्रामीण मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर सकी.
मगध क्षेत्र: विपक्ष का सबसे मजबूत क्षेत्र भी गया हाथ से
47 सीटों वाले मगध क्षेत्र को महागठबंधन अपना सुरक्षित क्षेत्र मानकर चलता रहा था. पर इस बार यहां भी एनडीए ने 38 सीटें जीतकर विपक्ष को बड़ा झटका दिया. महागठबंधन 9 सीटों पर सिमट गया. मगध में जमीन, शिक्षा और रोजगार हमेशा चुनावी मुद्दे रहे हैं, लेकिन इस बार एनडीए ने ‘स्थिरता + विकास’ के फॉर्मूले पर जोर दिया. विपक्ष ने यहां पिछली बार बड़ी सफलता पाई थी, लेकिन इस बार नेतृत्व की अस्पष्टता और आंतरिक कलह भारी पड़ी.
सारण क्षेत्र: सामाजिक न्याय का गढ़ भी टूटा
सारण जिसे लालू प्रसाद यादव का राजनीतिक गढ़ माना जाता है, इस बार भी एनडीए के सामने टिक नहीं पाया. 24 में से 20 सीटें एनडीए की झोली में गईं. यह नतीजा दर्शाता है कि ‘परिवारवाद बनाम विकास’ की बहस यहां निर्णायक बन चुकी है. पिछले दो वर्षों में केंद्र और राज्य की योजनाओं का लाभ महिला और युवा वर्ग तक तेजी से पहुंचा है. वहीं महागठबंधन की रैलियों में भीड़ तो दिखी, पर वे वोट में तब्दील नहीं हो सकी.
मिथिला क्षेत्र: सांस्कृतिक पहचान पर एनडीए को फायदा
मिथिला में एनडीए ने 33 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि महागठबंधन को 6 सीटें मिलीं. मिथिला संस्कृति, भाषा और पहचान से जुड़े मुद्दों को एनडीए ने चुनावी रूप से प्रभावी ढंग से पेश किया. इसके अलावा, सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा का मुद्दा भी महत्वपूर्ण रहा. कांग्रेस और राजद यहां उम्मीदवार चयन में पिछड़ गए. युवा मतदाताओं में भी तेजस्वी की अपील कमजोर होती दिखी, जिसका सीधा लाभ एनडीए को मिला.
सीमांचल: महागठबंधन का मजबूत क्षेत्र भी नहीं बचा
सीमांचल ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र रहा जहां मुकाबला तीन तरफा दिखा. एनडीए ने 14 सीटें, महागठबंधन ने 5 और अन्य दलों ने 5 सीटें जीतीं. यह क्षेत्र मुस्लिम बहुल और राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील माना जाता है. महागठबंधन यहां ज्यादा लाभ उठा सकता था, लेकिन एआईएमआईएम जैसे दलों की मौजूदगी ने उसका वोट बांट दिया. साथ ही एनडीए ने विकास और सीमा सुरक्षा पर फोकस करके मध्यम वर्ग और पहली बार वोट करने वाले युवाओं का समर्थन हासिल किया.

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