महाभारत में कौन थे बड़े पियक्कड़, शकुनि से दुर्योधन तक करते थे खूब मदिरा सेवन

1 month ago

महाभारत के दौर में शराब खासी लोकप्रिय थी. कौरव खासकर इसका खूब सेवन करते थे. शकुनि और दुर्योधन के बारे में कहा जाता है कि वो ना केवल ज्यादा शराब पीते थे बल्कि इसके बाद साजिशें भी रचते थे. पांडव भी इसके शौकीन थे लेकिन सीमित तौर पर. महाभारत और इससे जुड़े ग्रंथों में इसका उल्लेख किया गया है. कर्ण को भी इसका बड़ा शौकीन बताया गया.

महाभारत में शराब (सुरा) का उल्लेख मिलता है, विशेषकर सभाओं और मदिरापान के प्रसंगों में. उस दौर में मदिरा चावल, गेहूं, जौ या फलों से बनाई जाती थी. इसी की एक किस्म मैरेय थी, जो मीठी और मादक पेय हुआ करती थी, इसे शहद और फलों के रस से बनाया जाता था, आसव नाम की मदिरा को अनाज या फलों से तैयार किया जाता था. हालांकि वैदिक काल में पवित्र माने जाने वाले पेय सोमरस का प्रचलन महाभारत तक कम हो गया था.

कुछ प्रसंग यहां बताना जरूरी होगा. आगे उसके बारे में विस्तार से बताएंगे. द्रौपदी के स्वयंवर में शराब परोसी गई थी. शकुनि और दुर्योधन मदिरापान करते थे, जिससे उनकी चालाकी और अहंकार बढ़ता था. कर्ण को भी शराब पीने का शौक था, जैसा कि उसके और शल्य के संवादों में कहा गया है.

शकुनि सबसे बड़ा पियक्कड़, दुर्योधन भी कम नहीं

महाभारत में शराब यानि सुरा का उल्लेख कई जगहों पर हुआ है. कुछ पात्र नियमित रूप से मदिरापान करते थे.शकुनि को महाभारत का सबसे बड़ा शराबप्रेमी माना जा सकता है. वह चालाक भी था. अक्सर मदिरा के नशे में दुर्योधन को गलत सलाह देता था. उसने शराब के नशे में ही पासे के जुए (द्यूत क्रीड़ा) की योजना बनाई, जिसमें द्रौपदी का चीरहरण हुआ. दुर्योधन भी शराब पीता था. मदिरा के प्रभाव में अहंकारी निर्णय लेता था. द्रौपदी के अपमान का प्रसंग भी शराब के नशे में ही हुआ था, जब दुर्योधन ने उसे “दासी” कहकर भरी सभा में लज्जित किया.

कर्ण भी था शराब का शौकीन

कर्ण को भी शराब पीने का शौक था. शल्य के साथ महाभारत युद्ध के दौरान उसने लंबी बातचीत में इसका उल्लेख किया. जिसमें शराब का जिक्र आता है. कर्ण नशे में शल्य से कहता है कि वह अर्जुन को मारकर पांडवों का अहंकार चूर कर देगा, लेकिन शल्य उसकी बातों को नशे की बड़बोली मानता है.  एक प्रसंग में, कर्ण नशे में द्रौपदी का उपहास करता है. कहता है कि पांडवों ने उसे जुए में हार दिया, इसलिए वह दासी है.

क्या पांडव शराब पीते थे

महाभारत के प्रमुख पात्रों में पांडवों के बारे में सामान्य धारणा यह है कि वे धर्म-नियमों का पालन करने वाले थे, लेकिन कुछ प्रसंगों से पता चलता है कि वे भी सुरा (शराब) का सेवन करते थे, हालांकि यह उनकी नियमित आदत नहीं थी. युधिष्ठिर को धर्मराज कहा जाता था, लेकिन द्यूत क्रीड़ा (जुआ) के समय वह शराब के प्रभाव में थे, जिसके कारण उन्होंने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया. (महाभारत, सभापर्व, अध्याय 45-72 -द्यूत-पर्व)

महाभारत, सभापर्व में उल्लेख है कि शकुनि ने युधिष्ठिर को मदिरा पिलाकर जुए में फंसाया था. युधिष्ठिर ने बाद में स्वीकार किया कि “मद्यपान और द्यूत क्रीड़ा दोनों ही मनुष्य के लिए विनाशकारी हैं.”

भीम को भोजन और मदिरा का शौकीन बताया गया है. विराट पर्व में जब भीम ने कीचक का वध किया, तब उसने कीचक के महल में रखी शराब भी पी थी.

कुछ संस्करणों में उल्लेख है कि भीम ने बकासुर राक्षस को मारने से पहले भी मदिरा पी थी. अर्जुन का शराब पीने का सीधा उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन मद्र देश (शल्य का राज्य) में एक रात्रिभोज के दौरान उसे मदिरा परोसी गई. (महाभारत, विराटपर्व, अध्याय 15-23) . विदुर नीति (महाभारत, उद्योगपर्व, अध्याय 33-40) में भी मद्यपान को अधर्म बताया.

अर्जुन जब मद्र देश (शल्य के राज्य) से गुजरते हैं, तो उन्हें मदिरा सहित भोजन परोसा जाता है, लेकिन वे इसे अस्वीकार कर देते हैं. (महाभारत, वनपर्व, अध्याय 36-40 -इंद्रलोक-गमन). पुराणों (भागवत, विष्णु पुराण) में पांडवों को “मद्य-वर्जित” नहीं कहा गया, लेकिन उन्हें संयमी बताया गया.

राजसूय यज्ञ के दौरान भी शराब परोसी गई

पांडवों ने राजसूय यज्ञ के दौरान विशाल भोज का आयोजन किया, जिसमें मदिरा भी परोसी गई. इसी यज्ञ में शिशुपाल का वध हुआ, जब कृष्ण ने उसका सिर काट दिया. शिशुपाल नशे में होने के कारण और भी आक्रामक हो गया था.

महाभारत के राजसूय यज्ञ (सभापर्व, अध्याय 33-40) के दौरान क्षत्रिय राजाओं को सुरा और मैरेय का भरपूर परोसी गयी. सभापर्व 33.12 में कहा गया कि शिशुपाल जैसे राजाओं को विशेष मदिरा दी गई. सामान्य जनता के लिए भी यज्ञस्थल पर सुरा का वितरण हुआ, लेकिन नियंत्रित मात्रा में.

कीचक भी शराब का शौकीन था

मत्स्य देश का ताकतवर सेनापति कीचक शराब का शौकीन था. उसने नशे में ही द्रौपदी (सैरंध्री के रूप में) को छेड़ा था, जिसके बाद भीम ने उसकी हत्या कर दी.

क्या महाभारत में स्त्रियां भी इसका सेवन करती थीं

महाभारत में स्त्रियों द्वारा मदिरापान का सीधा उल्लेख नहीं मिलता. सभापर्व (द्यूत-क्रीड़ा प्रसंग) में द्रौपदी को भरी सभा में बुलाया गया, जहां कौरवों ने मदिरापान किया था, लेकिन द्रौपदी के पीने का कोई उल्लेख नहीं है. राजसूय यज्ञ जैसे महाभारत के बड़े आयोजनों में स्त्रियां शामिल होती थीं, लेकिन मदिरा परोसने का उल्लेख केवल क्षत्रिय पुरुषों तक सीमित है.

महाभारत में अप्सराओं (जैसे उर्वशी, मेनका) द्वारा मदिरा पीने का उल्लेख है, लेकिन ये दिव्य नारियां थीं, सामान्य मानव नहीं. कुछ पुराणों (जैसे देवीभागवत पुराण) में ऋषियों की पत्नियों द्वारा सोमरस पीने का उल्लेख मिलता है, जो एक प्रकार का मादक पेय था. हालांकि, यह वैदिक काल से जुड़ा है, महाभारत काल से नहीं. महाभारत के शांतिपर्व (अध्याय 167) में भीष्म युधिष्ठिर को बताते हैं कि स्त्रियों का मद्यपान समाज में अशुभ माना जाता था. कौटिल्य के अर्थशास्त्र (2.25.1-5) में वेश्याओं द्वारा मदिरा पीने का उल्लेख है, लेकिन साधारण गृहिणियों के लिए इसे निषिद्ध बताया गया. ग्रीक इतिहासकार मेगस्थनीज ने भारत के अपने विवरण में लिखा कि “भारतीय स्त्रियां सुरा नहीं पीतीं” (इंडिका, खंड 10).

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