Last Updated:August 11, 2025, 10:45 IST
India Defence News: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तकरीबन 17 महीने पहले जवनों के फाइनेंशियल हित से जुड़े प्रस्ताव को हरी झंडी दी थी, पर यह फाइल अभी भी धूल फांक रही है. इससे सबसे ज्यादा ट्रेनिंग करने वाले जवानों ...और पढ़ें

नई दिल्ली. सैन्य प्रशिक्षण के दौरान गंभीर रूप से घायल होकर सेवा में शामिल होने से पहले ही मेडिकल डिस्चार्ज झेलने वाले अफसर कैडेटों को राहत देने का प्रस्ताव पिछले 17 महीने से पावर कॉरिडोर में अटका हुआ है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मार्च 2024 में इस प्रस्ताव को मंज़ूरी दी थी, जिससे इन कैडेटों को दी जाने वाली मासिक एक्स-ग्रेशिया राशि में कम से कम 50% की बढ़ोतरी होनी थी. फाइल को अंतिम क्लियरेंस नहीं मिलने के चलते अभी तक जवानों को इसका फायदा नहीं मिल सका है.
करीब ₹11.43 करोड़ सालाना अतिरिक्त खर्च वाले इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बावजूद रक्षा मंत्रालय और वित्त मंत्रालय के बीच फाइल अटकी हुई है. प्रस्ताव में सर्विस एलिमेंट को कैडेटों के चौथे वर्ष के स्टाइपेंड (करीब ₹54,000 मासिक) का 50% मानकर गणना करने की बात कही गई है. इससे यह हिस्सा ₹9,000 से बढ़कर लगभग ₹28,000 हो जाएगा. वर्तमान में 100% विकलांगता पर कुल राशि (अटेंडेंट भत्ता सहित) लगभग ₹40,000 प्रति माह है.
लंबा इंतजार
1974 से लेकर अब तक कई सिफारिशों और बैठकों के बावजूद न तो पेंशन का दर्जा मिला, न ही पूर्व-सैनिक का.
1996: मासिक एक्स-ग्रेशिया लागू, पेंशन का दर्जा नहीं.
2006: पूर्व-सैनिक का दर्जा केवल सैनिकों को.
2014: 7वें वेतन आयोग ने कैडेटों के लिए पेंशन मांग खारिज की.
2015-2022: कई बार समाधान के करीब पहुंचे प्रयास, लेकिन तकनीकी आपत्तियों से अटके.
क्या है मामला
वर्तमान व्यवस्था में कमीशन प्राप्त अफसरों को मेडिकल डिस्चार्ज पर डिसएबिलिटी पेंशन मिलती है, जिसमें सर्विस और डिसएबिलिटी एलिमेंट दोनों शामिल होते हैं. लेकिन, प्रशिक्षण के दौरान विकलांग हुए अफसर कैडेटों को यह लाभ नहीं, बल्कि मासिक एक्स-ग्रेशिया दिया जाता है. सर्विस एलिमेंट का कैलकुलेशन न्यूनतम केंद्रीय सरकारी वेतन के आधार पर होती है, न कि स्टाइपेंड के आधार पर.
प्रभावित कैडेटों की स्थिति
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के अनुसार, साल 1985 से अब तक लगभग 500 कैडेट राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए), भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) और अन्य सैन्य संस्थानों से मेडिकल डिस्चार्ज हो चुके हैं. अधिकतर की उम्र चोट लगने के समय 17-23 वर्ष के बीच थी. कई लोग लकवे, रीढ़ की हड्डी या मस्तिष्क की गंभीर चोटों के कारण जीवन भर व्हीलचेयर या बिस्तर पर निर्भर हैं. पूर्व एनडीए कैडेट कहते हैं कि सरकार के लिए यह पहला कदम होगा कि नाम बदलकर डिसएबिलिटी पेंशन किया जाए और इन्हें पूर्व-सैनिक का दर्जा मिले. इससे इन कैडेटों को ईसीएचएस के तहत मुफ्त इलाज और पुनर्वास योजनाओं तक पहुंच मिलेगी.
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
August 11, 2025, 10:45 IST