राजेंद्र प्रसाद ने क्यों बंद करा दिए राष्ट्रपति भवन के 330 कमरे, खोले केवल 10

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3 दिसंबर को भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्मदिन होता है. उनकी सादगी और फिजूलखर्ची नहीं करने के कई किस्से कहे जाते रहे हैं. वो जब राष्ट्रपति भवन में रहने गए तो अपने तरीके से इस शीर्ष भवन को बिल्कुल बदल दिया. उन्होंने इस विशाल भवन के 330 कमरे तुरंत बंद करा दिये. आखिर क्या थी उसकी वजह. वह करीब 12 सालों तक राष्ट्रपति भवन में रहे, तब तक ये कमरे बंद ही रहे. और काफी हद तक उसके बाद भी. फिर आखिर उसे खोला किसने.

जब 26 जनवरी 1950 को भारत गणतंत्र बना तो राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बनाए गए. तो वह 340 कमरों वाले विशाल भवन में नहीं जाना चाहते थे. उन्होंने इसमें आने से मना ही कर दिया था. उन्हें इसके लिए मनाया गया. मनाने वालों में सरदार वल्लभ भाई पटेल से लेकर कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता थे. खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें समझाया कि क्यों उन्हें राष्ट्रपति भवन में जाकर रहना चाहिए.

सबसे पहले भवन का नाम बदला

राजेंद्र प्रसाद के इस भवन में आने से पहले ब्रिटिश राज में यहां कई वायसराय रहे. फिर देश के पहले गर्वनर जनरल सी राजगोपालाचारी भी यहां रहे. राजेंद्र प्रसाद बेमन से यहां रहने जरूर आए लेकिन आते ही उन्होंने इसका नाम बदल दिया. जब वह इस भवन में शिफ्ट हुए तो उन्होंने पहला काम भी इसका नाम बदलकर किया. इसका नाम तब राष्ट्रपति भवन हो गया, जो अब तक है.

(courtesy rashtrapati bhavan)

पहले वह इसमें नहीं रहना चाहते थे

330 एकड़ में फैला हुआ ये भवन चार मंजिलों वाला है. राजेंद्र प्रसाद आजादी से पहले और आजादी के बाद भी इस भवन और परिसर को विलासिता वाली जगह मानते आए थे. अब उन्हें ही इसमें जाना था. अपनी विनम्रता, सादगी और भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ाव को दिखाते हुए प्रतीकात्मक संकेत के रूप में उन्होंने वायसराय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) में नहीं रहने का फैसला किया. वह राष्ट्रपति भवन जैसे आलीशान महल में रहने के बजाय एक साधारण घर में रहना चाहते थे. इसकी कई वजहें भी थीं.

हिचकिचाते हुए रहने आए

डॉ. राजेंद्र प्रसाद को लग रहा था राष्ट्रपति भवन में रहकर वे जनता से दूर हो जाएंगे. उन्हें ये भी लगता था कि राष्ट्रपति भवन का रखरखाव बहुत ज्यादा खर्चीला है. लिहाजा वहां जो संसाधन लगाए जा रहे हैं या जो पैसा खर्च किया जा रहा है, उसका उपयोग कहीं और हो. जब उन्हें बताया गया कि राष्ट्रपति भवन का अपना सेरेमोनियल महत्व है, क्योंकि ये देश के शीर्ष पद बैठे शख्स का आवास है, जिससे भारत की गरिमा जुड़ी है. सुरक्षा के लिहाज से भी ये जरूरी है. तब राजेंद्र प्रसाद हिचकिचाते हुए 26 जनवरी 1950 को इस भवन में रहने के लिए गए.

(courtesy rashtrapati bhavan)

10 कमरे खोले, दो का ही इस्तेमाल राष्ट्रपति करते थे

उन्होंने राष्ट्रपति भवन में जाते ही इसके 330 कमरे बंद करा दिये. केवल 10 कमरों को इस्तेमाल में लिया गया. दो कमरे उन्होंने अपने पास रखे. बाकि आठ कमरे विदेशी अतिथियों के लिए रखे गए. उन्होंने कोशिश की कि इस मशहूर भवन की अंग्रेजियत को खत्म कर दें. जब तक वह राष्ट्रपति रहे तब तक राष्ट्रपति भवन के 330 कमरे बंद ही रहे. बस कुछ कुछ महीनों पर इसकी झाड़ पोंछ कर ली जाती थी.

राजेंद्र प्रसाद का मानना था कि इतने बड़े भवन में सभी कमरे खुला रखने से अनावश्यक खर्च और जटिलता बढ़ती है. इसलिए उन्होंने कई कमरे सुरक्षा और रख-रखाव के लिए बंद करवा दिए. यह निर्णय उस समय की सरकारी बचत नीति और सादगी की आदत के अनुरूप था.

कुछ इतिहासकारों के अनुसार, ये भी कहा जाता है कि राजेंद्र प्रसाद चाहते थे कि राष्ट्रपति भवन का उपयोग सादा और सरकारी कामकाज पर केंद्रित हो, उसमें ‘महल जैसी भव्यता’ में नहीं हो.

किचन का धोकर शुद्धिकरण किया गया

वह शाकाहार के जबरदस्त आग्रही थे. पहले यहां के किचन में मांसाहार नियमित तौर पर बनता था. उन्होंने इस पर पाबंदी लगा दी. किचन को खूब धोया गया, शुद्धिकरण हुआ. फिर इसमें शाकाहार बनना शुरू हुआ. उन्होंने कुर्सी मेज पर बैठकर खाने से मना कर दिया. वह चौकी पर पालथी लगाकर भोजन करते थे.

राधाकृष्णन के समय भी यही रहा

राजेंद्र प्रसाद के बाद सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन (1962–1967) का राष्ट्रपति बने, तब ये कमरे बंद ही रहे. तब भी राष्ट्रपति भवन की सादगी और आधिकारिक कार्य पर ध्यान देने की परंपरा बनी रही. लेकिन उनके समय में कुछ और कमरे औपचारिक और अंतरराष्ट्रीय कामों के लिए खोले गए. तब भारत में विदेशी दौरे और शासकीय बैठकों का दायरा बढ़ रहा था. लेकिन ये कहना चाहिए कि 330 कमरों में ज्यादातर अब भी बंद ही रहे.

जाकिर हुसैन ने भी कमरे बंद ही रखे

भारत के तीसरे राष्ट्रपति जाकिर हुसैन (1967–1969) बने. उनका व्यक्तित्व भी साधारण और विनम्र था. उनके समय में भी कमरों का उपयोग बेहद व्यवस्थित और सीमित था. राष्ट्रपति भवन में अब भी सभी कमरे नियमित तौर पर इस्तेमाल में नहीं थे, लेकिन उन कमरों को सुरक्षा और स्टाफ के लिए तैयार रखा गया.

पहली बार राष्ट्रपति भवन के ज्यादातर कमरे फखरुद्दीन अली अहमद के राष्ट्रपति बनने के दौरान खोल दिए गए. इनका इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय मेहमानों और सरकारी आयोजनों के लिए कमरों के पूरे इस्तेमाल के लिए होने लगा. 70 और 80 के दशक में ये और खोल दिए गए. आज राष्ट्रपति भवन के सभी कमरे का उपयोग हो रहा है.

राष्ट्रपति भवन की रूम कीपिंग और मेंटेनेंस का काम सीधे तौर पर सरकारी ढांचे और सुरक्षा-प्रशासन के तहत चलता है. ये काम राष्ट्रपति सचिवालय करता है. ये सचिवालय राष्ट्रपति के दैनिक कामों, सरकारी बैठकों, अंतरराष्ट्रीय मेहमानों की व्यवस्था और भवन के रखरखाव की सारी जिम्मेदारी संभालता है. सचिवालय में विशेष अधिकारी और स्टाफ होते हैं जो कमरे और भवन की स्थिति की निगरानी करते हैं.

राष्ट्रपति भवन में साफ-सफाई, फर्नीचर, पर्दे, पेंटिंग्स और फर्श की देखभाल के लिए विशेष स्टाफ तैनात हैं. ये काम मुख्य रूप से संपत्ति और भवन प्रबंधन के तहत आता है. इसमें स्थायी कर्मचारियों के अलावा ठेकेदारों द्वारा नियमित सफाई और मरम्मत काम कराए जाते हैं.

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