राज्यपाल का तरीका गैरकानूनी... सुप्रीम कोर्ट ने स्टालिन को थमाया ब्रह्मास्त्र!

1 week ago

Last Updated:April 08, 2025, 12:25 IST

MK Stalin vs RN Ravi : सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा 10 बिलों को राष्ट्रपति के पास भेजने को 'गैरकानूनी' करार दिया है. इस फैसले से मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को बड़ी जीत मिली है.

राज्यपाल का तरीका गैरकानूनी... सुप्रीम कोर्ट ने स्टालिन को थमाया ब्रह्मास्त्र!

तमिलनाडु के राज्यपाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है.

हाइलाइट्स

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के कदम को गैरकानूनी बताया.एमके स्टालिन को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी जीत मिली.राज्यपाल को विधानसभा के फैसलों का सम्मान करना चाहिए.

तमिलनाडु से जुड़े एक अहम मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. इससे वहां मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को एक तरह से ब्रह्मास्त्र मिल गया है. दरअसल, यह फैसला राज्यपाल आरएन रवि से जुड़ा है. शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यपाल का 10 महत्वपूर्ण बिलों को मंजूरी न देना और उन्हें राष्ट्रपति के पास भेजना ‘गैरकानूनी’ और ‘मनमाना’ था. जस्टिस जेबी परदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने यह साफ किया कि राज्यपाल पहले बिलों को मंजूरी देने से इनकार कर दें और फिर उन्हें राष्ट्रपति के पास भेज दें, ऐसा नहीं कर सकते. कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल का यह कदम गलत था और इसे रद्द किया जाता है.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इन 10 बिलों को लेकर राज्यपाल और राष्ट्रपति ने जो भी कदम उठाए, वे सब कानूनी रूप से अमान्य हैं. कोर्ट ने फैसला दिया कि ये बिल उस तारीख से मंजूर माने जाएंगे, जिस दिन तमिलनाडु विधानसभा ने इन्हें दोबारा पास करके राज्यपाल के पास भेजा था. कोर्ट ने राज्यपाल की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने ईमानदारी से काम नहीं किया. इसका मतलब है कि राज्यपाल ने संविधान के हिसाब से अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई.

10 बिल का मसला
यह मामला तब शुरू हुआ जब तमिलनाडु की सरकार और राज्यपाल के बीच मतभेद बढ़ गए. राज्य विधानसभा ने ये दस बिल पास किए थे, जो राज्य के लिए जरूरी थे. लेकिन राज्यपाल ने इन पर सहमति देने से मना कर दिया और इन्हें राष्ट्रपति के पास भेज दिया. तमिलनाडु सरकार ने इसे संविधान के खिलाफ बताया और सुप्रीम कोर्ट में अपील की. कोर्ट ने सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि राज्यपाल का काम विधानसभा के फैसलों का सम्मान करना है, न कि उन्हें रोकना.

इस फैसले से यह साफ हो गया कि राज्यपाल के पास मनमाने तरीके से बिलों को रोकने या राष्ट्रपति के पास भेजने की ताकत नहीं है. संविधान में राज्यपाल का रोल सीमित है और उन्हें चुनी हुई सरकार के साथ मिलकर काम करना होता है. कोर्ट ने कहा कि जब विधानसभा ने बिल दोबारा पास कर दिया, तो राज्यपाल को उसे मंजूरी देनी चाहिए थी. उनकी जगह राष्ट्रपति को शामिल करना गलत था.

यह फैसला भारत के उन राज्यों के लिए भी अहम है, जहां राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच राजनीतिक मतभेद होते हैं. कई बार केंद्र सरकार से जुड़े राज्यपाल राज्य सरकारों के काम में दखल देते हैं, जिससे विवाद पैदा होता है. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला विधानसभाओं की ताकत को मजबूत करता है और राज्यपालों को उनकी सीमाओं की याद दिलाता है. इससे तमिलनाडु में उन बिलों को लागू करने का रास्ता साफ हो गया, जो पहले अटके हुए थे.

कुल मिलाकर, यह फैसला संविधान के उस सिद्धांत को दोहराता है कि लोकतंत्र में चुने हुए प्रतिनिधियों की आवाज सबसे ऊपर होती है. राज्यपाल को सिर्फ सलाह देने और जरूरी सहायता देने का काम करना चाहिए, न कि सरकार के फैसलों को बेवजह रोकना. तमिलनाडु के लोगों के लिए यह एक बड़ी जीत है, क्योंकि अब उनके हित के कानून जल्द लागू हो सकेंगे.

First Published :

April 08, 2025, 12:08 IST

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