राष्ट्रपति गार्ड्स के घोड़ों की कहानी बनारस महाराजा से कैसे जुड़ी, कैसे नामकरण

2 days ago

हाइलाइट्स

तब बनारस के महाराजा चेत सिंह ने दिए थे आला दर्जे के 50 घोड़ेइस पलटन में कई ऐसे घोड़े जिनकी कीमत महंगी कारों से कम नहीं इन घोड़ों के नाम खास तरीके से रखे जाते हैं और कभी रिपीट नहीं होते

18वीं लोकसभा के पहले सत्र के पहले दिन जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अभिभाषण के लिए संसद के नए भवन पहुंची तो उनकी कार के साथ 100 घुड़सवार अंगरक्षकों की टोली भी थी, जिनके लंबे, चौड़े, ताकतवर और सुंदर घोड़े देखते बनते थे. इसमें कुछ घोड़े दुनिया की बेहतरीन नस्ल वाले थे, जिनकी कीमत किसी महंगी कार से कम नहीं. इन अंगरक्षकों की टोली को प्रेसीडेंट बॉडीगार्ड्स कहते हैं. इनके घोड़ों पर रहने की भी एक कहानी है, जो बनारस के महाराजा चेतसिंह से जुड़ी हुई है. सबसे खास बात ये भी है कि इन घोड़ों के नाम भी खास तरह से रखे जाते हैं.

कहा जाता है करीब 250 साल पहले बनारस से राजा ने ब्रिटिश वायसराय वारेन हेस्टिंग को 50 आला घोड़े दिए थे. गवर्नर-जनरल के अंगरक्षक की स्थापना सितंबर 1773 में गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने मुगल हॉर्स के 50 सैनिकों से की थी, जिसे स्थानीय सरदारों ने 1760 में खड़ा किया था. जब बनारस के महाराजा ने 50 घोड़े दिए तो इस इकाई की ताकत 100 हो गई.

आजादी के बाद भारतीय राष्ट्रपति को वायसराय हाउस मिला, जिसे हम अब राष्ट्रपति भवन कहते हैं. 26 जनवरी 1950 को जब भारत गणतंत्र बना तो रेजिमेंट का नाम बदलकर प्रेसिडेंट्स बॉडीगार्ड कर दिया गया. राष्ट्रपति की प्रेसीडेंट बॉडीगार्ड्स की टीम 100 हृष्ट-पुष्ट सुंदर घोड़ों पर सवार होकर उनके साथ चलती है.

ये हैं दुनिया के सबसे महंगे घोड़े
हालांकि इन घोड़ों की सवारी आसान नहीं होती. ये घोड़े भी इस टोली में कहां से आते हैं, उसकी भी एक प्रक्रिया है. इसमें कुछ घोड़े तो निहायत बेहतरीन विदेशी नस्ल के हैं, जिन्हें दुनिया के बेहतरीन घोड़ों में गिना जाता है. इन्हें हनोवरियन नस्ल कहते हैं. इस टुकड़ी कुछ संख्या उन घोड़ों की भी है. ये दुनिया के सबसे महंगे घोड़े कहे जाते हैं.

प्रेसीडेंट्स बॉडीगार्ड्स में इन घोड़ों में बाकी घोड़ों अर्ध-नस्ल के हैं. ज्यादातर घोड़े सेना के रिमाउंट वेटनरी कोर की सहारनपुर और हेमपुर ईकाई से आते हैं. इनके स्वास्थ्य की देखरेख रिमाउंट वेटनरी कोर ही करती है, जो दुनिया की सबसे बड़ी पशुपालन कोर है.

राष्ट्रपति का अंगरक्षक बनने के बाद रेजिमेंट के एक सैनिक को घोड़ों की सवारी करने में 2 साल लग जाते हैं, क्योंकि घोड़ों के प्रशिक्षण में कई अलग-अलग आयाम शामिल होते हैं. इन घोड़ों की नाल का काम बहुत ही अहम होता है, हर महीने तारीख के हिसाब से इसका खास ख्याल रखा जाता है.

इन्हें मिलता है अधिकारी का रैंक और सम्मान
राष्ट्रपति के ये अंगरक्षक घोड़े इतने खास होते हैं कि कई मौकों पर इन्हें सेना के उच्च पदस्थ अधिकारियों के बराबर सम्मान दिया जाता है. इसमें एक घोड़े विराट को तो योग्यता और उत्कृष्ट सेवा के लिए सम्मान भी मिल चुका है. भारत के प्रधान मंत्री ने भी गणतंत्र दिवस समारोह के बाद विराट की सेवाओं की तारीफ की थी.

250 सालों में कभी किसी घो़ड़े का नाम रिपीट नहीं हुआ
इन घोड़ों के नाम रखने की परंपरा और भी खास है. ये घोड़े 250 सालों से बटालियन में हैं लेकिन कभी किसी घोड़े के नाम को रिपीट नहीं किया गया. ये सुनने में भले आसान लगे लेकिन बहुत मुश्किल है. हर घोड़े का नाम बहुत सोचविचार कर रखा जाता है. इसमें उस घोड़े की खासियतें, उसके पिता का नाम भी शामिल किया जाता है.

क्यों नहीं चलाई जा सकती इन पर चाबुक
एक खास बात और राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड घोड़ों पर कभी चाबुक नहीं चलाई सकती. इसकी खास वजह ये भी है कि ये सभी घोड़े मामूली घोड़े नहीं होते. इनकी भी रैंक और सम्मान होता है. इसलिए इन पर चाबुक चलाना करीब करीब मना ही होता है. जिस तरह सेना में जवानों और अफसरों की सुबह परेड और दूसरे कामों से शुरू होती है, उसी तरह राष्ट्रपति बॉडीगार्ड्स की सुबह अपने घोड़ों के साथ घुड़दौड़ और कड़ी ट्रेनिंग के साथ शुरू होती है.

Tags: President Draupadi Murmu, President of India, Rashtrapati bhawan

FIRST PUBLISHED :

June 28, 2024, 18:17 IST

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