लखीसराय. बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा आज भाजपा के शीर्ष सवर्ण नेताओं में गिने जाते हैं. उनका कद गिरिराज सिंह और ललन सिंह जैसे नेताओं की मौजूदगी के बावजूद लगातार मजबूत हुआ है. वे न तो किसी बड़े विवाद में रहे हैं और न ही कभी गलत कारणों से सुर्खियों में आए. राजनीति के जानकारों की नजर में 2025 का विधानसभा चुनाव उनके लिए मौका है – खुद को न सिर्फ लखीसराय का, बल्कि पूरे बिहार के सवर्ण समाज का केंद्रीय चेहरा साबित करने का. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर विजय सिन्हा एक और बार जीत दर्ज करते हैं तो वे एनडीए में ऐसे सवर्ण नेता के रूप में उभरेंगे जिनकी अनदेखी मुश्किल होगी.
भूमिहारों का गढ़ और सियासी रणभूमि
लखीसराय विधानसभा सीट पर भूमिहार, कुर्मी और पासवान समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं. भूमिहारों की आबादी यहां सबसे अधिक है और यही वजह है कि दोनों प्रमुख उम्मीदवार- भाजपा से विजय कुमार सिन्हा और कांग्रेस से अमरेश कुमार अनीस इसी समुदाय से आते हैं. तीसरे उम्मीदवार जनसुराज पार्टी के सूरज कुमार भी भूमिहार हैं जिससे यहां का मुकाबला जातीय तौर पर और दिलचस्प हो गया है. यहां यह भी बता दें कि 2020 के चुनाव में विजय सिन्हा ने कांग्रेस प्रत्याशी अमरेश अनीस को लगभग 6 प्रतिशत वोट के अंतर से हराया था. इस बार भी वही आमने-सामने हैं. फर्क बस इतना है कि अब विजय सिन्हा राज्य के डिप्टी सीएम हैं और उनकी पहुंच पहले से कहीं अधिक व्यापक है.
मुकाबला एनडीए बनाम महागठबंधन, पर…
दरअसल, यह एक बड़ी सच्चाई है कि राजद के जातिगत समीकरण की मजबूती के बावजूद इस क्षेत्र में भाजपा की गहरी पैठ है और लखीसराय में भाजपा की ऐतिहासिक पकड़ किसी से छिपी नहीं. 2010 से अब तक भाजपा इस सीट पर अजेय रही है. इस बार भी मुकाबला एनडीए बनाम महागठबंधन का है. महागठबंधन यादव-मुस्लिम समीकरण पर भरोसा कर रहा है, जबकि एनडीए को सवर्ण, कुर्मी और पासवान वोट बैंक का मजबूत साथ मिलने की उम्मीद है.
भूमिहार बनाम भूमिहार, एनडीए बनाम महागठबंधन
| वर्ष | विजेता | पार्टी वोट शेयर | प्रतिद्वंदी | पार्टी वोट शेयर |
| 2010 | विजय कुमार सिन्हा | भाजपा/54.0 % | फूलैना सिंह | राजद/13.0 % |
| 2015 | विजय कुमार सिन्हा | भाजपा/40.8 % | रामानंद मंडल | जदयू /37.3 % |
| 2020 | विजय कुमार सिन्हा | भाजपा/38.2 % | अमरेश कुमार अनीस | कांग्रेस/32.8 % |
एनडीए में भूमिहारों का बढ़ा प्रतिनिधित्व
बता दें कि बिहार चुनाव 2025 में एनडीए ने कुल 32 भूमिहार उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं जिनमें भाजपा के 16, जदयू के 9, एलजेपी (रामविलास) के 4, हम के 2 और आरएलएम के 1 प्रत्याशी शामिल हैं. इसके मुकाबले महागठबंधन ने कुल 16 भूमिहार उम्मीदवार दिए हैं-कांग्रेस के 8, राजद के 6 और वाम दलों ने दो भूमिहार प्रत्याशी दिए हैं. इन आंकड़ों से साफ है कि भाजपा इस चुनाव में भूमिहारों पर बड़ा दांव खेल रही है. ऐसे में लखीसराय से विजय सिन्हा की जीत न सिर्फ उनकी व्यक्तिगत सफलता होगी, बल्कि पार्टी की इस सामाजिक रणनीति की भी पुष्टि मानी जाएगी.
जनसुराज की एंट्री और समीकरणों में बदलाव
जनसुराज पार्टी के सूरज कुमार की मौजूदगी ने मुकाबले में एक दिलचस्प मोड़ जोड़ा है. वे भी भूमिहार हैं, लेकिन उनका प्रभाव सीमित माना जा रहा है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि उनकी मौजूदगी से कांग्रेस प्रत्याशी को ज्यादा नुकसान हो सकता है, क्योंकि कुछ नाराज़ सवर्ण वोट अब भाजपा की ओर लौट सकते हैं. जनसुराज पिछड़े वर्गों में भी धीरे-धीरे पैठ बना रहा है, जिससे महागठबंधन के पारंपरिक यादव-मुस्लिम-ओबीसी वोट बैंक में सेंध लगने की संभावना है.
स्थानीय मुद्दे और विकास का कार्ड
विजय सिन्हा के चुनाव प्रचार का केंद्र स्थानीय मुद्दे हैं-रोजगार, महिला सुरक्षा, अपराध नियंत्रण और बाढ़ से राहत. पिछले पांच वर्षों में लखीसराय में सड़क, बिजली और शिक्षा के क्षेत्र में कई विकास परियोजनाएं पूरी हुई हैं. उनकी प्रचार रणनीति ‘सीधी बातचीत’पर आधारित है. उन्होंने घर-घर जाकर मतदाताओं से संवाद किया जो उनकी मजबूत ग्राउंड कनेक्टिविटी को साफ-साफ बताता है. नामांकन के दिन दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी जैसे दिग्गज नेताओं की मौजूदगी ने यह संदेश दिया कि भाजपा विजय सिन्हा की सीट को लेकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती.
लखीसराय में विजय कुमार सिन्हा का जनसंपर्क अभियान. वर्ष 2025 चुनाव में भाजपा की रणनीति और जातीय समीकरण पर फोकस.
जातीय गणित और लखीसराय का वोटिंग पैटर्न
लखीसराय में कुल 3,81,603 वोटर हैं, जिनमें पुरुष 2,03,635 और महिलाएं 1,77,968 हैं. 468 बूथों वाले इस क्षेत्र में भूमिहार और कुर्मी मतदाता निर्णायक हैं. यादव-मुस्लिम वोटर महागठबंधन के पारंपरिक समर्थक हैं, लेकिन उनका एकजुट रहना चुनौती बना हुआ है. वहीं, एनडीए को कुर्मी और पासवान वोटों के जुड़ने से फायदा मिल सकता है. यह वही समीकरण है जिसने पिछले तीन चुनावों में विजय सिन्हा को अजेय बनाए रखा.
चौके की ओर ‘विजय’ या चुनौती की डगर?
लखीसराय के मैदान में विजय सिन्हा फिलहाल सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं. लेकिन, हकीकत यह भी है कि इस बार चुनौती सिर्फ विपक्ष से नहीं, बल्कि जनता की अपेक्षाओं से भी है. राजनीति के जानकार कहते हैं कि अगर वे चौथी बार जीत दर्ज करते हैं तो उनका कद सिर्फ लखीसराय तक सीमित नहीं रहेगा- वे बिहार की राजनीति में ‘सवर्ण चेहरा’ बनकर उभर सकते हैं जो भविष्य में एनडीए के किसी भी सत्ता समीकरण का हिस्सा बने बिना नहीं रहेगा.
‘विजय’ से बिहार में सवर्ण नेतृत्व को बढ़ावा!
जानकारों की नज में लखीसराय का यह चुनाव एक व्यक्ति की जीत या हार से कहीं आगे की कहानी कहता है, यह बिहार की राजनीति में सवर्ण बनाम सामाजिक न्याय के नए संतुलन की परीक्षा भी है. विजय कुमार सिन्हा के सामने चुनौती सिर्फ सीट बचाने की नहीं, बल्कि आने वाले समय में अपनी सियासी विरासत को और मजबूत करने की है. अगर वे जीत की चौथी पारी खेल जाते हैं तो यह जीत भाजपा के लिए नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में सवर्ण नेतृत्व की नई इबारत साबित होगी.

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