पटना. गोवा में आयोजित होने वाले ‘टेल्स ऑफ कामसूत्र फेस्टिवल’ को लेकर हुए विवाद ने एक बार फिर दुनिया के सबसे चर्चित ग्रंथ कामसूत्र और इसके रचयिता महर्षि वात्स्यायन को सुर्खियों में ला दिया है. कार्यक्रम भले ही रद्द हो गया हो, लेकिन इससे उठे सवालों ने एक बार फिर यह जानने की उत्सुकता बढ़ा दी है कि आखिर कामसूत्र किसने लिखा, किस समय लिखा और उसके पीछे क्या उद्देश्य था. इस पृष्ठभूमि में महर्षि वात्स्यायन का जीवन जानना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है.
इतिहासकारों के अनुसार, महर्षि वात्स्यायन का जीवनकाल ईसा की दूसरी से तीसरी शताब्दी के बीच माना जाता है. वे किस वर्ष जन्मे, इसके पक्के प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन शोधकर्ताओं का अनुमान है कि वे गुप्तकाल के दौरान जीवित थे, जब भारत कला, साहित्य, दर्शन और विज्ञान के स्वर्ण युग से गुजर रहा था. यही काल समाज, परिवार और दांपत्य संबंधों को लेकर कई शास्त्रों के निर्माण का भी समय था.
वात्स्यायन कहां जन्मे थे? अलग-अलग मत और कारण
वात्स्यायन के जन्मस्थान को लेकर भी अलग-अलग मत मिलते हैं. अनेकों मतों के अनुसार वे पाटलिपुत्र (पटना) क्षेत्र से भी जुड़े रहे तो कई विद्वान मानते हैं कि उनका जन्म कान्यकुब्ज (आज का कन्नौज, उत्तर प्रदेश) में हुआ.हालांकि, कोई अंतिम प्रमाण नहीं है, पर यह तय है कि वे उत्तर भारत के बौद्धिक और सांस्कृतिक केंद्रों में रहे, जहां शिक्षा और शास्त्र लेखन का वातावरण था.
नालंदा, तक्षशिला और उत्तर भारत के बौद्धिक केंद्रों से नाता
कई विद्वानों का स्पष्ट मत है कि उनका जन्म स्थान प्राचीन पाटलिपुत्र यानी आज का पटना (बिहार) था. कुछ शोधकर्ता उन्हें गया या नालंदा के आसपास का भी बताते हैं, क्योंकि उस समय मगध क्षेत्र ज्ञान-विज्ञान का सबसे बड़ा केंद्र था. वे वात्स्यायन गोत्र के ब्राह्मण थे. उनके पिता का नाम चंडक और माता का नाम सालंकायनी था. यह बात 19वीं सदी के प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान रामचंद्र काशिकर ने अपने शोध में लिखी है.
गोवा के ‘टेल्स ऑफ कामसूत्र फेस्टिवल’ विवाद के बीच महर्षि वात्स्यायन और कामसूत्र की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि जानें
ज्ञान और तप का जीवन, वाराणसी और पाटलिपुत्र में प्रवास
बचपन से ही वात्स्यायन बहुत प्रतिभाशाली थे. उनकी शिक्षा-दीक्षा नालंदा और तक्षशिला जैसे बड़े केंद्रों में हुई. वे वेद, वेदांग, दर्शन, अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र, संगीत, नृत्य, चित्रकला- हर विषय में पारंगत थे. बाद में बनारस (वाराणसी) में लंबे समय तक रहे और वहीं तपस्या की. कहा जाता है कि उन्होंने जीवन के चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष.. पर गहरा चिंतन किया था.
कामसूत्र क्यों लिखा गया? गलत धारणाओं से मुक्त करने का प्रयास
महर्षि वात्स्यायन ने अपनी शिक्षा दर्शन, अध्यात्म, नैतिकता और व्यवहार विज्ञान से संबंधित गुरुकुल परंपरा में प्राप्त की. वात्स्यायन ने कामसूत्र की रचना 30-35 साल की उम्र में पूरी की. बाद में उन्होंने लंबे समय तक पाटलिपुत्र और वाराणसी जैसे नगरों में प्रवास किया, जहां वे विद्वानों, दार्शनिकों और शास्त्रकारों के संपर्क में रहे. इन्हीं बौद्धिक वातावरणों ने उन्हें मानव संबंधों, दांपत्य जीवन, मनोविज्ञान और सामाजिक संरचना पर गहराई से अध्ययन करने का अवसर दिया.
कामसूत्र में जीवन के तीन पुरुषार्थों का संतुलन
कई लोग कामसूत्र ग्रंथ को सिर्फ ‘यौन शिक्षा’ से जोड़ते हैं, लेकिन वात्स्यायन का उद्देश्य इससे कहीं व्यापक था. उन्होंने कामसूत्र की शुरुआत में ही लिखा है कि यह ग्रंथ धर्म, अर्थ और काम-इन तीन पुरुषार्थों के संतुलन की शिक्षा देता है. कामसूत्र में प्रेम, विवाह, परिवार, सामाजिक आचार, स्त्री-पुरुष की मनोवृत्तियां, संबंधों की मर्यादाएं और गृहस्थ जीवन के नियमों पर विस्तृत चर्चा मिलती है.
कामसूत्र में 7 भाग और 1,250 श्लोक
कामसूत्र में कुल 1,250 श्लोक हैं जो सात अध्यायों में बंटे हैं. पहला अध्याय जीवन के सामान्य नियम बताता है, दूसरे अध्याय में संभोग की 64 कलाओं का जिक्र है, जबकि बाकी अध्यायों में विवाह, पति-पत्नी के कर्तव्य, पर-स्त्री संबंध, वेश्या-व्यवस्था और कामोत्तेजक द्रव्यों तक की बात है. वात्स्यायन स्वयं लिखते हैं-यह ग्रंथ नगर के सभ्य लोगों के लिए है जो धर्म और अर्थ के साथ काम को भी संतुलित करना चाहते हैं.
महर्षि वात्स्यायन का जन्म और कामसूत्र की रचना का स्थान निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि वह प्राचीन भारत के थे और उन्होंने संभवतः पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) या वाराणसी जैसे किसी शहरी केंद्र में कामसूत्र की रचना की थी.
वात्स्यायन का जीवन दर्शन: नैतिकता और संयम
जानकार बताते हैं कि उन्होंने यह किताब इसलिए लिखी क्योंकि उस समय समाज में काम-विज्ञान पर बहुत गलत धारणाएं थीं. लोग या तो इसे पाप मानते थे या छिप-छिपाकर गलत तरीके अपनाते थे. वात्स्यायन ने इसे वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से समझाया. वे पहले के आचार्यों- बभ्रव्य, दत्तक, सुवर्णनाभ, घोटकमुख आदि के ग्रंथों को संक्षिप्त करके एक जगह लाए.
कामसूत्र में संतुलित गृहस्थ जीवन का संदेश
जानकार बताते हैं कि कामसूत्र की रचना के पीछे मूल कारण समाज में फैल रही भ्रमित धारणाएं थीं. वात्स्यायन ने पुराने ग्रंथों और लोक व्यवहार को संकलित करके उसे व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया, ताकि लोग संबंधों को समझें, रिश्तों में संतुलन रखें और जीवन को नष्ट करने वाले अति-आचरणों से बचें. महर्षि वात्स्यायन ने स्वयं लिखा है कि यह ग्रंथ ‘संयमित और नैतिक जीवन’ की शिक्षा देता है.
महर्षि वात्स्यायन व्यक्तिगत जीवन में ब्रह्मचर्य थे
वात्स्यायन ने स्वयं बताया है कि कामसूत्र का मूल स्वरूप नैतिक, दार्शनिक और सामाजिक है, न कि सिर्फ शारीरिक क्रिया तक सीमित. वात्स्यायन ने अपने जीवन को ज्ञान, अध्ययन और शास्त्र लेखन को समर्पित किया. कामसूत्र उनकी अकेली रचना मानी जाती है, लेकिन यह एक ऐसी कृति है जिसने दुनिया भर में भारतीय ज्ञान परंपरा को पहचान दिलाई.
वात्स्यायन की एकांत साधना, केवल अध्ययन-लेखन पर ध्यान
महर्षि वात्स्यायन का पारिवारिक जीवन बहुत कम दर्ज है. उनके माता-पिता या वंश के बारे में कोई ठोस ऐतिहासिक जानकारी उपलब्ध नहीं है. माना जाता है कि वे ब्रह्मचर्य का पालन करते थे और एकांत में अध्ययन और लेखन करते थे. उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि यह ग्रंथ उन्होंने ‘ध्यान की अवस्था’ में तैयार किया, न कि व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर.
वात्स्यायन स्वयं अपने ग्रंथ कामसूत्र में लिखते हैं कि वे वात्स्यायन गोत्र के ब्राह्मण थे और पाटलिपुत्र में रहते हुए यह ग्रंथ रचा. कामसूत्र की रचना तीसरी शताब्दी ईस्वी के आसपास, गुप्त साम्राज्य के उदय के समय मानी जाती है.
यशोधर की टीका ‘जयमंगला’ ने बढ़ाई कामसूत्र की लोकप्रियता
जीवन के अंतिम दिनों में वात्स्यायन बनारस में ही रहे और तपस्या करते हुए समाधि ली. उनके कोई संतान नहीं थी. उनके शिष्यों ने ही कामसूत्र को आगे बढ़ाया. बाद में 11वीं सदी में यशोधर नाम के विद्वान ने इस पर ‘जयमंगला’ टीका लिखी जो आज सबसे प्रामाणिक मानी जाती है. आज जब कामसूत्र के नाम पर गलत धारणाएं बनती हैं, तब महर्षि वात्स्यायन का वास्तविक परिचय समझना और भी जरूरी हो जाता है.
विवादों के बीच भी वात्स्यायन की कृति विश्वभर में सम्मानित
आज जब गोवा में कामसूत्र का नाम लेकर विवाद हुआ तो विद्वान एक स्वर से कहते हैं-वात्स्यायन एक महान दार्शनिक और समाजशास्त्री थे जिन्होंने जीवन के हर पहलू को समझाया. उनका उद्देश्य मानव जीवन को असंतुलन से बचाना था, न कि उसे भटकाना. बिहार के लोग तो गर्व से कहते हैं -कामसूत्र का लेखक हमारा ही था. 1800 साल बाद भी वात्स्यायन का नाम चर्चा में है तो यह अपने आप में साबित करता है कि सच्चा ज्ञान कभी पुराना नहीं होता.
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1 hour ago
