संविधान की चिंता या अनादर? चुनाव आयोग पर राहुल गांधी के गंभीर आरोप का मतलब

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Last Updated:August 08, 2025, 16:57 IST

Bihar Chunav: राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए. विपक्ष संविधान की चिंता जताता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट व संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल खड़े करने से भी पीछे नहीं हटता. राजनीतिक टकराव जारी है.

संविधान की चिंता या अनादर? चुनाव आयोग पर राहुल गांधी के गंभीर आरोप का मतलबराहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाकर विपक्ष और संवैधानिक संस्थाओं के टकराव को फिर उभारा. (फाइल फोटो PTI)

Bihar Chunav: नरेंद्र मोदी की सत्ता और संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग पर विपक्ष की नजर हमेशा टेढ़ी रही है. इन्हें कठघरे में खड़ा करने का कोई मौका विपक्ष नहीं छोड़ता. हालांकि विपक्ष संविधान के प्रति अपनी निष्ठा जताने में पीछे नहीं रहता. राहुल गांधी हों या तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव हों या फिर बंगाल की सीएम ममता बनर्जी; सभी संविधान के प्रति निष्ठा तो जताते हैं. लेकिन इसकी उपेक्षा-अवहेलना से भी परहेज नहीं करते.

विपक्षी नेता यह दावा करते नहीं थकते कि उनकी निष्ठा भारत के संविधान में है. वे यह भी आरोप लगाते हैं कि भाजपा संविधान को बदलना चाहती है. विपक्षी नेता संविधान के प्रति अपनी निष्ठा दिखाने के लिए उसकी प्रति साथ लिए घूमते हैं. जोर से विपक्ष शोर मचाता है कि भाजपा की सत्ता नहीं बदली तो देश पर कयामत आ जाएगी. पर विपक्ष के ये नेता संविधान के प्रति कितने निष्ठावान हैं इसकी झलक भी वे समय-समय र दिखा जाते हैं. उनकी पोल-पट्टी उनके आचरण से ही खुल जाती है.

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राहुल गांधी सर्वाधिक चिंतित हैं
कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष (LoP) राहुल गांधी तो संविधान पर खतरे की आशंका से सर्वाधिक चिंतित हैं. वे अपनी हर सभाओं में संविधान की लाल किताब ले जाते हैं. लोकसभा में भी लाल किताब उनके साथ रहती है. वे देश में घूम-घूम कर संविधान के प्रति भाजपा से खतरे के प्रति आगाह करते फिरते हैं. बिहार में संविधान सुरक्षा सम्मेलन कर चुके हैं. फिर बिहार में वे यात्रा करने वाले हैं. पहले 9 अगस्त से उनकी यात्रा प्रस्तावित थी. अपरिहार्य कारण बता कर टाल दी गई है. 15 अगस्त के बाद उनकी यात्रा की बात कही जा रही है. शाहाबाद से सीमांचल तक उनकी यात्रा निर्धारित करने की जानकारी पहले आई थी. जाहिर है वे अपनी यात्रा में दूसरी बातों के अलावा संविधान पर खतरे की बात भी करेंगे. इसलिए कि इसमें उन्हें सफलता का सूत्र नजर आता है. संविधान की चिंता में बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, आम आदमी पार्टी के विलुप्तप्राय हो चुके संयोजक अरविंद केजरीवाल और उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम व समाजवादी नेता अखिलेश यादव भी दुबले होते रहते है.

राहुल गांधी संविधान पर खतरे की आशंका से सर्वाधिक चिंतित हैं. (फोटो PTI)

SC पर विपक्ष को भरोसा नहीं
संविधान को सबसे अधिक ठेंगा भी इन्हीं नेताओं ने दिखाया है. इंदिरा गांधी द्वारा इमरजेंसी में संविधान के प्रावधानों से की गई छेड़छाड़ को छोड़ भी दें तो संवैधानिक प्रावधानों के तहत ही न्यायपालिका को लोकतंत्र का तीसरा स्तंभ कहा जाता है. संविधान के प्रति विपक्षी नेताओं की निष्ठा का आलम यह है कि इन्हें सुप्रीम कोर्ट पर भी भरोसा नहीं. केंद्र में नरेंद्र मोदी की तीसरी बार सरकार बनने के 100 दिनों के अंदर ही सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जाति-जनजाति (SC-ST) को मिले आरक्षण को सब कोटे में बांटा जाए. राहुल गांधी, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी और तेजस्वी यादव ने इसके खिलाफ इतना बवेला मचाया कि मोदी सरकार को इसे लागू करने से मना करना पड़ा. बिहार में गहन मतदाता पुनीक्षण (SIR) के खिलाफ विपक्षी नेता सुप्रीम कोर्ट गए हैं. सुनवाई अभी चल ही रही है. पर सर्वोच्च अदालत पर दबाव डालने के लिए साथ-साथ ये आंदोलन भी चला रहे हैं.

चुनाव आयोग पर हमेशा संदेह
चुनाव आयोग भी संवैधानिक संस्था है. पर उस पर इन विपक्षी नेताओं को मोदी सरकार बनने के बाद से ही संदेह है. कभी EVM पर सवाल उठाते हैं. कभी फर्जी वोटरों का मुद्दा उठाते हैं. यह जानते हुए कि EVM की परिकल्पना भी कांग्रेस की ही थी. हद तो तब हो गई जब तेजस्वी यादव के दो इपिक नंबर होने पर चुनाव आयोग ने जवाब मांगा. वे आयोग को ठेंगा दिखा रहे हैं. पहले नोटिस का जवाब नहीं मिला तो चुनाव आयोग ने दूसरा नोटिस दिया है. दो जगह नाम होने पर जब चुनाव आयोग ने एक नाम काट दिया तो उसके लिए तेजस्वी ने तामझाम से प्रेस कान्फ्रेंस बुला कर आयोग पर अंगुली उठाने में संकोच नहीं किया. हालांकि कुछ ही देर में चुनाव आयोग ने उनकी शंका का समाधान करते हुए उन्हें बेनकाब कर दिया. अब चुनाव आयोग कह रहा कि दूसरा वोटर कार्ड सरेंडर कर दें तो उन्हें इसकी परवाह नहीं.

ममता बार-बार देती हैं चुनौती
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी तो कई बार जाहिर कर चुकी हैं कि उन्हें भारतीय संविधान से कुछ नहीं लेना-देना. वे विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति का पारंपरिक और संवैधानिक अधिकार राज्यपाल से छीनने के लिए लड़ जाती हैं तो कभी सीबीआई जैसी दूसरी केंद्रीय जांच एजेंसियों का बंगाल में प्रवेश रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट चली जाती हैं. भाजपा विरोधी पार्टियों के शासन वाले सीएम और कांग्रेस के लीडर इस मुद्दे पर उनका साथ देते हैं. अब ममता चुनाव आयोग से भिड़ गई हैं. चुनाव आयोग ने राज्य चुनाव आयोग के 4 कर्मचारियों को सस्पेंड किया है तो ममता उसे मानने से इनकार कर रहीं. ममता कहती हैं कि उनको सस्पेंड नहीं करूंगी. वे उनके कर्मचारी हैं. इसलिए उनकी रक्षा करना उनका दायित्व है. ममता को SIR पर एतराज है. NRC, CAA पर भी आपत्ति है. वे पहले कह चुकी हैं कि बंगाल में कोई बांग्लादेशी नहीं. हालांकि 2005 तक वे ही कहती थीं कि बंगाल में वैसे भी वोटर हैं, जिनके नाम बांग्लादेश में भी दर्ज हैं. अब उनके इनकार का अर्थ समझ सकते हैं.

झारखंड में गृह मंत्रालय लाचार
झारखंड के पुलिस महानिदेशक (DGP) अनुराग गुप्ता को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हटाने का निर्देश दिया. झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में बनी हेमंत सोरेन की गठबंधन सरकार ने आदेश मानने से इनकार कर दिया है. मामला सर्वोच्च अदालत में है. अनुराग गुप्ता की नियुक्ति के लिए राज्य सरकारर ने विशेष नियुक्ति निययमावली बनाई. यह टकराव अब भी करार है. मामला सुप्रीम कोर्ट में है.

ओमप्रकाश अश्क

प्रभात खबर, हिंदुस्तान और राष्ट्रीय सहारा में संपादक रहे. खांटी भोजपुरी अंचल सीवान के मूल निवासी अश्क जी को बिहार, बंगाल, असम और झारखंड के अखबारों में चार दशक तक हिंदी पत्रकारिता के बाद भी भोजपुरी के मिठास ने ब...और पढ़ें

प्रभात खबर, हिंदुस्तान और राष्ट्रीय सहारा में संपादक रहे. खांटी भोजपुरी अंचल सीवान के मूल निवासी अश्क जी को बिहार, बंगाल, असम और झारखंड के अखबारों में चार दशक तक हिंदी पत्रकारिता के बाद भी भोजपुरी के मिठास ने ब...

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First Published :

August 08, 2025, 16:57 IST

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