स्‍पेस स्‍टेशन की दूरी 400 KM, कैप्‍सूल की स्‍पीड 27000 KMPH, फिर देरी क्‍यों

4 hours ago

Last Updated:June 26, 2025, 10:50 IST

Shubhanshu Shukla : इंडियन एयरफोर्स के ग्रुप कैप्‍टन और एस्‍ट्रोनॉट शुभांशु शुक्‍ला नासा के Axiom-4 मिशन के साथ इंटरनेशनल स्‍पेस स्‍टेशन के लिए रवाना हुए. उनके साथ तीन अन्‍य स्‍ट्रोनॉट हैं. नासा के फ...और पढ़ें

स्‍पेस स्‍टेशन की दूरी 400 KM, कैप्‍सूल की स्‍पीड 27000 KMPH, फिर देरी क्‍यों

शुभम शुक्‍ला के फाल्‍कन-9 ड्रैगन कैप्‍सूल की आईएसएस के साथ डॉकिंग होनी है.

हाइलाइट्स

नासा के फाल्‍कन-9 ड्रैगन कैप्‍सूल की 28 घंटे बाद ISS पर होगी डॉकिंगकैप्‍सूल की स्‍पीड 27000 किलोमीटर से ज्‍यादा, फिर भी लगेगा ज्‍यादा समयभारत के ग्रुप कैप्‍टन शुभांशु शुक्‍ला भी हैं सवार, बनेगा नया इतिहास

Shubhanshu Shukla : महीनों की तैयारी और कुछ हफ्तों की देरी के बाद एस्‍ट्रोनॉट और इंडियन एयरफोर्स के ग्रुप कैप्‍टन अन्‍य साथियों के साथ नासा के कैनेडी स्‍पेस सेंटर से 25 जून 2025 को सफलतापूर्व इंटरनेशनल स्‍पेस स्‍टेशन (ISS) के लिए रवाना हो गए. चार दशक के लंबे इंतजार के बाद कोई भारतीय स्‍पेस स्‍टेशन के लिए रवाना हुआ है, ऐसे में देश की 140 करोड़ लोगों की नजरें शुभांशु पर टिकी हैं. नासा के स्‍पेसक्राफ्ट ने 25 जून को दोपहर 12 बजे उड़ान भरी थी, लेकिन इसके गुरुवार शाम साढ़े चार बजे स्‍पेस स्‍टेशन पहुंचने की संभावना है. ड्रैगन कैप्‍सूल तकरीबन 28 घंटे के बाद ISS पहुंचेगा. दिलचस्‍प बात यह है कि धरती से ISS की दूरी 400 किलोमीटर है, जबकि फाल्‍कन-9 ड्रैगन की स्‍पीड 27000 किलोमीटर प्रति घंटे की है. अब सवाल उठता है कि नासा के स्‍पेसक्राफ्ट को स्‍पेस स्‍टेशन तक पहुंचने में इतना वक्‍त क्‍यों लगेगा?

दरअसल, कोई भी स्‍पेसक्राफ्ट या वस्‍तु पृथ्‍वी के वायुमंडल से बाहर निकलता है तो उसकी स्‍पीड सामान्‍य नहीं रह पाती है. हमारे वायुमंडल से नकिलते ही दो तरह की स्थितियों का सामना करना पड़ता है. पहला, गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force) खत्‍म हो जाता है और दूसरा यह कि निर्वात यानी वैक्‍यूम की स्थिति पैदा हो जाती है. बता दें कि धरती के वायुमंडल से बाहर होने पर न तो गुरुत्‍वाकर्षण बल रहता है और न ही हवा. ऐसे में किसी भी ऑब्‍जेक्‍ट की गति वह नहीं रह जाती है जो पृथ्‍वी के वायुमंडल में रहती है. ऐसे में पृथ्‍वी के वायुमंडल से बाहर जाते ही स्‍पेसक्राफ्ट की गति पर असर पड़ता है और वह कम होती जाती है. यही वजह है कि स्‍पेस स्‍टेशन पहुंचने में नासा के फाल्‍कन-9 ड्रैगन स्‍पेसक्राफ्ट को 28 घंटे से भी ज्‍यादा का वक्‍त लगेगा. गौरतलब है कि कैप्‍सूल की रफ्तार 27000 किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्‍यादा है, जब‍कि धरती से आईएसएस की दूरी महज 400 किलोमीटर है.

2000 से अधिक के उड़ान का अनुभव

नासा के एक्सिओम-4 मिशन का हिस्‍सा बने इंडियन एयरफोर्स के ग्रुप कैप्‍टन शुभम शुक्‍ला का स्‍पेस मिशन के लिए यूं ही चयन नहीं हुआ है. लखनऊ में जन्मे 39 साल के शुभांशु शुक्ला को जून 2006 में भारतीय वायुसेना में कमीशन मिला था. उन्होंने अभी तक 2,000 घंटे से अधिक का उड़ान अनुभव हासिल किया है. शुभांशु सुखोई-30 एमके 1, मिग-21, मिग-29, जगुआर, हॉक, डॉर्नियर और एएन-32 जैसे कई फाइटर जेट को उड़ा चुके हैं. ऐसे में वह अनुभवी पायलट हैं.

शुभांशु किनसे हैं प्रभावित

साल 2020 में शुभांशु को इसरो के गगनयान मिशन के लिए चुना गया था. यह भारत की पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान परियोजना है. चार साल बाद उनकी अंतरिक्ष यात्रा ने एक नया मोड़ लिया है. शुभांशु ने बताया कि भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री विंग कमांडर राकेश शर्मा 1984 में अंतरिक्ष गए थे. मैं उनके बारे में स्कूल की किताबों में पढ़ता था और उनके अनुभवों को सुनकर बहुत प्रभावित होता था. अपनी इस यात्रा को लेकर उन्होंने कहा, ‘शुरुआत में मेरा सपना सिर्फ उड़ान भरना था, लेकिन अंतरिक्ष यात्री बनने की राह बाद में खुली. मैं खुद को बेहद भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे जीवनभर उड़ान भरने का अवसर मिला और फिर मुझे अंतरिक्ष यात्री बनने का आवेदन करने का मौका मिला और आज मैं यहां हूं.’

Manish Kumar

बिहार, उत्‍तर प्रदेश और दिल्‍ली से प्रारंभिक के साथ उच्‍च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्‍ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्‍लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें

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