11 साल से आजाद था रेपिस्‍ट, SC में औंधे मुंह गिरी दलील, जज बोले- जेल में डालो

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Last Updated:December 10, 2025, 17:43 IST

सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के दुष्कर्म मामले में आरोपी की उम्र, शादी और कई दलीलों को खारिज करते हुए उसकी सजा बहाल कर दी है. अदालत ने साफ कहा कि नाबालिग से दुष्कर्म जैसे अपराध में न्यूनतम सजा से कम की कोई गुंजाइश नहीं. ‘स्मेग्मा’ वाली दलील भी अदालत ने विज्ञान के आधार पर गलत ठहराई. जन्म प्रमाण पत्र को निर्णायक मानते हुए कोर्ट ने सहमति का तर्क भी खारिज किया. अब आरोपी को चार सप्ताह में आत्मसमर्पण करना होगा.

11 साल से आजाद था रेपिस्‍ट, SC में औंधे मुंह गिरी दलील, जज बोले- जेल में डालोजज ने सख्‍त रुख अख्तियार किया.

नई दिल्ली. 11 साल से आजाद घूम रहा एक दुष्‍कर्मी सुप्रीम कोर्ट में ऐसी दलीलों के साथ पहुंचा जिन्‍हें जजों ने तुरंत खारिज कर दिया. उसने उम्र, सहमति और फॉरेंसिक रिपोर्ट पर सवाल उठाकर सजा कम करने की गुहार लगाई थी. अदालत ने साफ कहा कि ऐसे तर्क कानून में किसी राहत के हकदार नहीं हैं. जजों ने रेप कानून के तहत तय न्यूनतम सजा को दोहराते हुए उसकी सजा बहाल कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि दोषी को तुरंत जेल भेजा जाए. 11 साल बाद पीड़िता के लिए इंसाफ की राह फिर से खुली है।

क्‍या है पूरा मामले?
यह कहानी है 1993 के एक जघन्य अपराध की, जहां 30 साल बाद भी एक दुष्कर्मी को उसकी सज़ा पूरी करने का आदेश दिया गया है. आरोपी ने कोर्ट से उम्र और शादी का हवाला देकर रिहाई मांगी थी लेकिन कोर्ट ने साफ कह दिया कि मासूमियत की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं. जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की बेंच ने कुलदीप सिंह बनाम पंजाब स्‍टेट मामले में आरोपी की अपील खारिज कर दी. आरोपी अब लगभग 50 वर्ष है. उसने कोर्ट से अनुरोध किया था कि उसकी सजा को जेल में काटी गई अवधि तक सीमित कर दिया जाए क्योंकि अब उसकी शादी हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने यह मांग सिरे से खारिज कर दी. फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की:

घटना की तारीख पर, IPC की धारा 376 के तहत न्यूनतम सज़ा सात साल थी, इसलिए कानून में दी गई न्यूनतम सजा से कम करने का कोई तरीका नहीं है.

कोर्ट का यह बयान स्पष्ट करता है कि नाबालिग से दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराधों में कोर्ट न्यूनतम वैधानिक सज़ा से नीचे नहीं जा सकता, भले ही अपीलकर्ता का पारिवारिक या व्यक्तिगत जीवन बदल गया हो.

‘स्मेग्मा’ की दलील भी खारिज
इस मामले में एक बेहद अजीबोगरीब दलील भी सामने आई. आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि मेडिकल जांच के दौरान आरोपी के प्राइवेट पार्ट पर ‘स्मेग्मा’ (Smegma) की मौजूदगी यह साबित करती है कि उसने यौन संबंध नहीं बनाए थे. स्मेग्मा चमड़ी की कोशिकाओं, तेल और नमी से बना एक गाढ़ा पदार्थ होता है जो पुरुषों की फोरस्किन के नीचे जमा हो सकता है. यह दलील दी गई कि इसकी उपस्थिति यौन गतिविधि के अभाव को दर्शाती है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को अमान्य करार दिया. कोर्ट ने ‘मेडिकल ज्यूरिसप्रूडेंस एंड टॉक्सिकोलॉजी’ का हवाला देते हुए कहा कि यौन संबंध के लिए स्मेग्मा की उपस्थिति या अनुपस्थिति कोई निर्णायक प्रमाण नहीं है.

कोर्ट ने स्पष्ट किया:

स्मेग्मा 24 घंटे तक स्नान न करने पर भी बन सकता है. भले ही ऐसा हो लेकिन अपीलकर्ता के प्राइवेट पार्ट पर स्मेग्मा की मौजूदगी उसे संभोग करने से नहीं रोकती और यहां तक कि महिला के प्राइवेट पार्ट मात्र प्रवेश भी बलात्कार की श्रेणी में आता है.

स्कूल सर्टिफिकेट से ऊपर जन्म प्रमाण पत्र
आरोपी के वकील ने यह दलील भी दी कि पीड़िता के स्कूल प्रमाण पत्र के अनुसार वह 16 वर्ष से अधिक उम्र की थी इसलिए यह सहमति का मामला हो सकता है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया और यह अहम फैसला सुनाया कि कानूनी प्राधिकार द्वारा जारी किए गए जन्म प्रमाण पत्रका प्रमाणिक मूल्य स्कूल एडमिशन सर्टिफिकेट से अधिक है. चूंकि जिला रजिस्ट्रार द्वारा जारी किए गए जन्म प्रमाण पत्र के अनुसार पीड़िता नाबालिग थी इसलिए सहमति की दलील भी अपने आप खारिज हो गई.

क्‍या है पूरा मामला?
साल 1994 में जालंधर कोर्ट ने दोषी को सज़ा सुनाई थी, जिसे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा. 2013 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और दिसंबर 2014 में सज़ा निलंबित कर दी गई थी. अब 11 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को चार सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया है. यह फैसला साबित करता है कि न्याय भले ही देर से मिले, लेकिन वह अपनी मंज़िल तक ज़रूर पहुंचता है.

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Sandeep Gupta

पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें

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First Published :

December 10, 2025, 17:43 IST

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