Last Updated:August 26, 2025, 21:33 IST
अमित शाह ने बी. सुदर्शन रेड्डी के सलवा जुडूम फैसले पर सवाल उठाए, 18 जजों ने विरोध किया, 56 रिटायर्ड जजों ने शाह का समर्थन किया, विवाद उपराष्ट्रपति पद से जुड़ा है.

देश की सियासत और न्यायपालिका के बीच इन दिनों जोरदार बहस छिड़ी हुई है. मामला उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार और पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज बी. सुदर्शन रेड्डी का है. गृहमंत्री अमित शाह ने रेड्डी पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्होंने सलवा जुडूम मामले में जो फैसला दिया, उसने नक्सलवाद को और ताकत दी. अमित शाह ने यहां तक कह दिया कि अगर यह फैसला न होता तो 2020 तक नक्सलवाद का खात्मा हो जाता. शाह की इस टिप्पणी ने पूर्व न्यायाधीशों को दो खेमों में बांट दिया. एक ओर 18 पूर्व जजों का समूह है, जिसने अमित शाह की बातों को दुर्भाग्यपूर्ण बताया, वहीं दूसरी तरफ 56 रिटायर्ड जजों का बड़ा समूह सामने आया है, जिसने अमित शाह के बचाव में बयान जारी किया. इनमें पूर्व चीफ जस्टिस भी हैं.
विवाद तब उठा जब अमित शाह ने केरल में एक जनसभा के दौरान सुदर्शन रेड्डी को सीधे तौर पर नक्सलवादियों का मददगार बता दिया। उन्होंने कहा, रेड्डी वही जज हैं जिन्होंने सलवा जुडूम पर रोक लगाने का फैसला दिया. अगर ये फैसला न हुआ होता, तो नक्सलवाद 2020 तक समाप्त हो गया होता. यह टिप्पणी सीधे सुदर्शन रेड्डी के पुराने फैसले और मौजूदा समय में उनके उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होने से जुड़ी थी. रेड्डी को INDIA ब्लॉक ने उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया है.
18 जजों का पलटवार
अमित शाह के बयान पर सबसे पहले 18 रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जजों ने कड़ा एतराज जताया. इन जजों ने शाह को पत्र लिखकर कहा कि उनका बयान अनुचित और दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने सलाह दी कि इस तरह के नाम लेकर प्रहार से परहेज करना चाहिए क्योंकि यह न्यायपालिका की गरिमा पर सवाल उठाता है. इन जजों का कहना था कि किसी पूर्व जज को केवल इसलिए निशाना बनाना कि वह अब विपक्ष के उम्मीदवार हैं, उचित नहीं है. यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर भी असर डाल सकता है.
56 जजों का ‘काउंटर स्टेटमेंट’
विवाद यहीं नहीं थमा. अगले ही दिन 56 रिटायर्ड जजों की ओर से बयान आ गया. इस समूह में देश के चार बड़े नाम भी शामिल थे. पूर्व सीजेआई पी. सदाशिवम, पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ए.के. सिकरी और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एम.आर. शाह. इन जजों ने अपने बयान में साफ लिखा कि वे अपने साथी जजों की बातों से असहमत हैं. हर बार किसी राजनीतिक घटनाक्रम के बाद वही लोग न्यायपालिका की स्वतंत्रता के नाम पर बयान जारी कर देते हैं. उन्होंने लिखा, हमारे एक रिटायर्ड साथी ने खुद की इच्छा से राजनीति में कदम रखा है. जब वे उपराष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार बने हैं, तो अब उन्हें राजनीतिक बहस में खुद को साबित करना होगा. न्यायिक स्वतंत्रता की आड़ में राजनीतिक सुविधा लेना लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है.
और क्या कहा गया?
56 जजों का समूह यहीं नहीं रुका. उन्होंने आगे कहा, न्यायपालिका की प्रतिष्ठा पर खतरा किसी राजनीतिक आलोचना से नहीं है. असली नुकसान तब होता है जब कुछ पूर्व जज बार-बार राजनीतिक बयान जारी करते हैं और यह आभास देते हैं कि पूरी न्यायपालिका ही किसी दल के साथ खड़ी है. उनका कहना था कि ऐसे रवैये से आम जनता के बीच न्यायपालिका की तटस्थ छवि धुंधली होती है.
सलवा जुडूम की क्या कहानी
इस पूरे विवाद की जड़ है सलवा जुडूम आंदोलन. यह छत्तीसगढ़ में 2005 में शुरू किया गया एक आंदोलन था, जिसे नक्सलवादियों के खिलाफ जनता की आम रक्षा सेना कहा गया. लेकिन समय के साथ यह आंदोलन मानवाधिकार उल्लंघन और बेकसूर आदिवासियों की हत्याओं के आरोपों में घिर गया. 2011 में जस्टिस सुदर्शन रेड्डी की बेंच ने इस पर कड़ा फैसला सुनाते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया और बंद करने का आदेश दिया. तब से ही भाजपा इसे नक्सलवाद के खिलाफ सरकार की रणनीति को कमजोर करने वाला फैसला मानती रही है.
Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.news18.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for 'Hindustan Times Group...और पढ़ें
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Location :
Delhi,Delhi,Delhi
First Published :
August 26, 2025, 21:33 IST