History Of 27th August: उड़ान हमेशा से इंसानों के लिए एक जादुई और रोमांचक विषय रही है. राइट ब्रदर्स की पहली उड़ान से लेकर अंतरिक्ष में स्पेस शटल तक, हर नई उड़ान ने हमारी फैंटसीज को नई उड़ान दी. 27 अगस्त की तारीख एयरक्राफ्ट की दुनिया में खास अहमियत रखती है. इसी दिन, 1939 में जर्मनी में दुनिया का पहला जेट प्लेन, हेइंकेल एचई-178, पहली बार आसमान में उड़ा. इस क्रांतिकारी विमान के पीछे वैज्ञानिक हांस योआखिम पाब्स्ट फॉन ओहेन का नाम था. 1930 के दशक में उन्होंने जेट इंजन का विचार किया और 1935 में इसका पेटेंट कराया. उनका सवाल था, 'क्या प्लेन सिर्फ गैस टर्बाइन से, पिस्टन इंजन के बिना उड़ सकता है?' उनके इसी सोच ने फ्यूचर की उड़ानों की दिशा बदल दी.
इसी सोच के साथ साल 1936 में ओहेन और उनकी टीम की मुलाकात जर्मनी के मशहूर विमान निर्माता एर्न्स्ट हाइकल से हुई. हाइकल उनके विचार से इतने मुतासिर हुए कि उन्होंने फौरन उन्हें अपनी कंपनी में नौकरी दे दी. हाइकल का टारगेट था कि वे ऐसा प्लेन बनाएं जिसे दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा हो. ओहेन और उनकी टीम ने सबसे पहले HES-1 इंजन बनाया, जो हाइड्रोजन से चलता था. हालांकि, यह सिर्फ परीक्षण के लिए था, लेकिन यह सफल रहा.
HE-178: 6 मिनट की पहली उड़ान
इसके बाद एचईएस-2 और एचईएस-3 इंजन बनाए गए, जिन्हें पेट्रोल से चलाया जा सकता था. इन इंजनों की बुनियाद पर प्लेन डिजाइन करने का काम शुरू हुआ. इस काम का नेतृत्व हांस रेगनर और उनकी टीम ने किया. प्लेन दिखने में सामान्य था, लेकिन उसकी ताकत नई थी. इसमें आगे की तरफ नाक जैसी हवा लेने की जगह (एयर-इंटेक) थी और पीछे से धुआं निकलता था. 27 अगस्त 1939 की सुबह जर्मनी के रोस्टॉक एयरफील्ड पर इतिहास लिखा गया. टेस्ट पायलट एरिक वार्सिट्ज़ ने HE-178 को उड़ाया. ये उड़ान सिर्फ 6 मिनट की थी, लेकिन इसने भविष्य की उड़ानों के लिए नींव रख दी.
पायलट वार्सिट्ज़ ने बाद में लिखा, 'शुरुआत में प्लेन धीरे चला, लेकिन 300 मीटर बाद वह तेजी से भागने लगा. इंजन की गूंज अलग ही अहसास दे रही थी. जब प्लेन जमीन से उठा, तो लगा जैसे हम भविष्य को छू रहे हों.'
हाइकल और HE-178 की दिलचस्प कहानी
दिलचस्प बात यह थी कि HE-178 को बनाने के वक्त गुप्त रखा गया था. जर्मन वायु मंत्रालय को इसकी जानकारी तक नहीं थी. हाइकल ने इसे निजी पहल के तौर पर बनाया था, ताकि वे कॉम्पिटिटर्स से आगे निकल सकें. लेकिन, जब इसे अफसरों के सामने पेश किया गया तो ज्यादा असर नहीं पड़ा. उस वक्त तक जर्मनी पोलैंड पर आक्रमण कर चुका था और पारंपरिक पिस्टन इंजन वाले प्लेन जंग में पर्याप्त साबित हो रहे थे. यही कारण है था HE-178 को आगे बढ़ाने में सरकार की तरफ से रुचि नहीं दिखाई गई.
600-700 किमी/घंटा की रफ्तार
जब एचई-178 की रफ्तार लगभग 600-700 किमी/घंटा थी, तब इसका इंजन ज्यादा वक्त तक नहीं चल पाता था. यह प्लेन जंग के लिए नहीं, बल्कि इस्तेमाल के लिए बनाया गया था. बाद में जर्मनी ने एचई-280 और मेसर्सचिमिट एमई-262 जैसे जेट फाइटर बनाए, लेकिन तब तक जंग का हाल बदल चुका था.बदकिस्मती से एचई-178 का असली मॉडल 1943 में बमबारी में नष्ट हो गया. आज इसकी सिर्फ एक रिप्लिका रोस्टॉक एयरपोर्ट पर दिखाई देती है. भले ही यह प्लेन कभी जंग में इस्तेमाल नहीं हुआ, एचई-178 ने दिखा दिया कि अब आसमान सिर्फ पिस्टन इंजन वाले विमानों का नहीं रहेगा. आने वाले सालों में जेट इंजन ने नागरिक उड़ानों से लेकर युद्धक विमानों तक हर जगह क्रांति ला दी.