Last Updated:October 23, 2025, 07:14 IST
Su-30MKI R-37M Axehead Missile: भारत अपने डिफेंस सिस्टम को लगातार दुरुस्त करने में जुटा है. फाइटर जेट को अपग्रेड करना इस मुहिम का बड़ा कदम है. इसके तहत अब रूसी Su-30MKI लड़ाकू विमान को और शक्तिशाली बनाया जा रहा है. इसमें ऐसे मिसाइल सिस्टम को इंटीग्रेट करने की तैयारी है, जो दुश्मनों के लिए साक्षात यमराज होगा.

Su-30MKI R-37M Axehead Missile: भारत और रूस के बीच अत्याधुनिक R-37M ‘Axehead’ अल्ट्रा-लॉन्ग रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल की खरीद को लेकर औपचारिक बातचीत शुरू हो गई है. यह मिसाइल भारतीय वायुसेना के Su-30MKI लड़ाकू विमानों की मारक क्षमता को कई गुना बढ़ा देगी, विशेषकर उन अभियानों में जहां दुश्मन के AWACS (एयरबॉर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम), टैंकर और बमवर्षक विमानों को निशाना बनाना होता है. दोनों देशों के सीनियर डिफेंस ऑफिशियल्स के नेतृत्व में शुरू हुई यह बातचीत भारत की लॉन्ग-रेंज एयर कॉम्बैट क्षमता को नई दिशा देने वाली मानी जा रही है. रक्षा सूत्रों के अनुसार, रूस की प्रमुख हथियार निर्माता कंपनी Tactical Missiles Corporation (KTRV) द्वारा विकसित यह मिसाइल 300 किलोमीटर से अधिक दूरी पर लक्ष्य को भेदने की क्षमता रखती है और मैक-6 (लगभग 7,400 किमी/घंटा) की रफ्तार से मूव करने में सक्षम है.
मिसाइल में सक्रिय रडार सीकर (Active Radar Seeker) और इनर्शियल गाइडेंस सिस्टम का कंपोजिशन है, जो उसे दुश्मन के इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (EW) में भी सटीकता से लक्ष्य भेदने में सक्षम बनाता है. इसके अलावा, इसमें लगा डुअल-पल्स सॉलिड-फ्यूल मोटर लंबे समय तक सतत प्रोपल्शन प्रदान करता है, जिससे यह अधिक दूरी तक अपनी गति और दिशा बनाए रख सकती है. रूसी अधिकारियों के मुताबिक, कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर होने के बाद 12 महीनों के भीतर भारत को 150 से अधिक R-37M मिसाइलें उपलब्ध कराई जा सकती हैं. प्रस्ताव में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और Irkut Corporation के सहयोग से मिसाइल को भारतीय वायुसेना के Su-30MKI प्लेटफॉर्म में एकीकृत करने का रोडमैप शामिल है, ताकि यह मिसाइल भारतीय और रूसी एवियोनिक्स सिस्टम के साथ समन्वयित रूप से काम कर सके.
टेक्नोलॉजी इंटीग्रेशन की चुनौतियां
हालांकि, Su-30MKI पहले से रूसी हथियार प्रणालियों के साथ संगत है, लेकिन R-37M का आकार और वजन इसकी तकनीकी एकीकरण प्रक्रिया को चुनौतीपूर्ण बनाता है. मिसाइल की लंबाई करीब 4 मीटर से अधिक और वजन लगभग 600 किलोग्राम है, जिसके चलते विमान के सेंटरलाइन और विंग हार्डपॉइंट्स को मजबूत करना पड़ेगा. लॉन्च के दौरान लगने वाले उच्च बल को सहन करने के लिए पायलन और स्ट्रक्चरल पार्ट्स में भी बदलाव की जरूरत होगी. एयरफोर्स के N011M Bars रडार सिस्टम को मिसाइल की पूरी रेंज का उपयोग करने लायक बनाने के लिए सॉफ्टवेयर अपग्रेड्स और नए फायर-कंट्रोल एल्गोरिद्म की जरूरत होगी. इसके अलावा, मिसाइल के डेटा-लिंक और गाइडेंस प्रोटोकॉल को विमान के मिशन कंप्यूटर से जोड़ना एक और तकनीकी चुनौती है, ताकि मिड-कोर्स अपडेट्स और रियल-टाइम टार्गेट ट्रैकिंग संभव हो सके. एक अन्य प्रमुख पहलू यह भी है कि Su-30MKI के कई सिस्टम — विशेष रूप से कॉकपिट डिस्प्ले, मिशन कंप्यूटर और नेविगेशन यूनिट्स — भारतीय तकनीकी बदलावों के अनुरूप हैं, जबकि R-37M रूसी मानकों पर आधारित है. इस अंतर को पाटने के लिए HAL, DRDO और रूसी तकनीकी टीमों के बीच घनिष्ठ समन्वय की आवश्यकता होगी.
R-37M Axehead को Su-30MKI में इंटीग्रेट किया जाना है. (फोटो: पीटीआई)
कई बड़ी टेस्टिंग
पूरी प्रक्रिया में ग्राउंड ट्रायल्स, एयरवर्दीनेस टेस्ट, पर्यावरणीय परीक्षण और लाइव फायरिंग वैलिडेशन शामिल होंगे, जिनकी निगरानी भारतीय वायुसेना स्वयं करेगी. अनुमान है कि यह प्रक्रिया अनुबंध हस्ताक्षर से लेकर 18 से 24 महीने तक चल सकती है. मिसाइल की तैनाती सबसे पहले उन Su-30MKI स्क्वॉड्रनों में की जाएगी जो उत्तरी और पूर्वी वायुसेना कमांड के रणनीतिक ठिकानों पर तैनात हैं. यह क्षेत्र चीन और पाकिस्तान दोनों सीमाओं के नजदीक है, जहां उच्च ऊंचाई वाले हवाई अभियानों में लंबी दूरी की मिसाइलें निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं. R-37M के शामिल होने से भारतीय वायुसेना के सुखोई विमान दुश्मन के AWACS, एयर रिफ्यूलिंग टैंकर और बमवर्षकों को उनके एयर डिफेंस कवच से पहले ही निशाना बना सकेंगे. इससे भारत को न केवल अग्रिम चेतावनी प्रणालियों को निष्क्रिय करने में बढ़त मिलेगी, बल्कि शत्रु के हवाई हमले की योजना को भी शुरुआती स्तर पर विफल किया जा सकेगा.
‘हंटर-किलर’ मिशन कॉन्सेप्ट
‘इंडिया डिफेंस न्यूज’ ने सैन्य सूत्रों के हवाले से बताया कि वायुसेना की नई हंटर-किलर टीम रणनीति में R-37M से लैस Su-30MKI विमानों को लॉन्ग-रेंज अटैक प्लेटफॉर्म के रूप में उपयोग किया जाएगा. इनके साथ उड़ने वाले अन्य Su-30 या राफेल विमान मध्यम और कम दूरी की मिसाइलों (जैसे Astra Mk-1/2, MICA या Meteor) से लैस रहेंगे. यह मिश्रित गठन दूर से ही दुश्मन के विमानों पर हमला करने में सक्षम होगा, जबकि निकटवर्ती विमान दुश्मन के फाइटर इंटरसेप्टर्स से सुरक्षा प्रदान करेंगे. यह मल्टी-लेयर्ड एयर कॉम्बैट स्ट्रैटेजी भारतीय वायुसेना को हवाई क्षेत्र में निर्णायक बढ़त दे सकती है. दक्षिण एशिया में बदलते हवाई शक्ति संतुलन के बीच R-37M मिसाइल की खरीद भारत के लिए न केवल तकनीकी बल्कि सामरिक दृष्टि से भी अहम कदम है. चीन की वायुसेना के पास पहले से ही PL-15 जैसी लंबी दूरी की मिसाइलें हैं, जबकि पाकिस्तान अपने JF-17 और F-16 बेड़े में नई BVR मिसाइलें जोड़ रहा है. ऐसे में R-37M का अधिग्रहण भारतीय वायुसेना की एयर सुपरिऑरिटी और एरिया डिनायल कैपेबिलिटी को और मजबूत करेगा.
300 किलोमीटर रेंज
R-37M Axehead के आने से भारतीय वायुसेना को 300 किलोमीटर से अधिक दूरी पर भी घातक सटीकता से हमला करने की क्षमता मिलेगी. यह अब तक केवल कुछ ही देशों के पास उपलब्ध है. यह सौदा यदि तय होता है तो भारत की हवाई युद्धक रणनीति को नई धार देगा और वायुसेना के सुखोई बेड़े को एशिया की सबसे घातक एयर कॉम्बैट प्लेटफॉर्म्स में बदल देगा.
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...
और पढ़ें
न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
October 23, 2025, 07:14 IST