87 लाख के सोने के ताबूत में 104 साल की मां का अंतिम संस्कार! नाइजीरियाई Prophet Jeremiah पर उठे सवाल

1 hour ago

Gold Coffin Funeral: Prophet Jeremiah Fufeyin नाम के नाइजीरियाई धार्मिक नेता ने अपनी मां मामा असेतु के अंतिम संस्कार को बहुत ही भव्य तरीके से किया. ऐसा बताया गया है कि उनकी मां का निधन मई महीने में हुआ था, लेकिन अंतिम संस्कार दिसंबर में किया गया. इस दौरान इस्तेमाल किया गया ताबूत करीब 87 लाख रुपये का था. उस पर सोने की परत चढ़ी हुई थी. जैसे ही अंतिम संस्कार का वीडियो सामने आया वह तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा.

सोशल मीडिया पर दिखी लोगों की नाराजगी 
इस अंतिम संस्कार को लेकर लोगों की तीखी प्रतिक्रिया सामने आने लगी है. कई यूजर्स ने इसे दिखावा बताया है, तो वहीं कुछ ने कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर ताबूत 24 से 48 घंटे के भीतर खोदा न जाए, तो नाइजीरिया में लोग इसे सच नहीं मानते हैं. एक अन्य यूजर ने लिखा कि उम्मीद है कि जब वह जीवित थीं तब भी सोने के बर्तनों में खाना खाती होंगी. इन प्रतिक्रियाओं से साफ दिखा कि आम जनता इस तरह की शानो-शौकत से असहज होती दिखी है.

कौन हैं Prophet Jeremiah Fufeyin
Prophet Jeremiah Fufeyin नाइजीरिया के डेल्टा और बायेल्सा राज्यों में काफी मशहूर व्यक्ति हैं. वह Christ Mercyland Deliverance Ministry के संस्थापक भी हैं. अपने चमत्कारी प्रवचनों, खासकर दुष्ट आत्माओं से मुक्ति दिलाने वाले उपदेशों के लिए जाने जाते हैं. बता दें कि उनकी जीवनशैली हमेशा से चर्चा में रही है क्योंकि वह खुलकर अपनी दौलत का प्रदर्शन करते नजर आते हैं.

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रिपोर्ट्स के मुताबिक 46 साल के फुफेईन का अतीत बेहद कठिन रहा था. एक समय वह इतनी गरीबी में थे कि उन्होंने नींद की गोलियों की अधिक मात्रा लेकर आत्महत्या करने की कोशिश भी की थी. ऐसा दावा किया जाता है कि वह चमत्कारिक रूप से बच गए और जिसे वह भगवान की कृपा मानते हैं. इसके बाद उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया. आज वह बेहद अमीर धार्मिक नेता बन चुके हैं.

बता दें किProphet Jeremiah Fufeyin के पास करीब 30 लाख डॉलर कीमत का निजी जेट Bombardier Challenger 601-3R भी बताया जाता है. उनकी यह आलीशान जीवनशैली अक्सर चर्चा का विषय रहती है. खासकर ऐसे देश में जहां आम लोगों की पूरी जिंदगी की औसत कमाई करीब 20 हजार डॉलर मानी जाती है.

चर्च और समाज पर उठे सवाल
इस पूरे मामले ने नाइजीरिया में चर्च की भूमिका और संसाधनों के बंटवारे पर एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं. कई लोग मानते हैं कि एक विकासशील देश में जहां बड़ी आबादी गरीबी से जूझ रही है वहां धार्मिक संस्थाओं की जिम्मेदारी दिखावे से ज्यादा समाज सेवा होनी चाहिए.

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