Last Updated:December 18, 2025, 17:40 IST
CJI Surykant News: सुप्रीम कोर्ट ने बोतलबंद पानी की क्वालिटी को लेकर दायर याचिका की सुवनाई करते हुए CJI सूर्यकांत ने सख्त टिप्पणी की है. उन्होंने इस याचिका को खारिज करते हुए इसे लग्जरी मुकदमा बताया. CJI सूर्यकांत ने कहा कि देश के कई हिस्सों में लोगों को आज भी पीने का बुनियादी पानी नहीं मिलता. ऐसे में बोतलबंद पानी के इंटरनेशनल स्टैंडर्ड्स पर बहस शहरी सोच को दिखाती है.
बोतलबंद पानी की क्वालिटी पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की. (फाइल फोटो)नई दिल्ली: भारत में बोतलबंद पानी की क्वालिटी को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी ने एक बड़ी बहस छेड़ दी है. देश की शीर्ष अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि जब करोड़ों लोगों को आज भी पीने के लिए बुनियादी पानी तक नसीब नहीं है, तब बोतलबंद पानी के इंटरनेशनल स्टैंडर्ड्स की मांग लग्जरी मुकदमा लगती है. इसी सोच के साथ कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी. सुनवाई के दौरान चिफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) सूर्यकांत ने सख्त टिप्पणी की.
CJI सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने सुनवाई के दौरान सवाल उठाया, ‘इस देश में पीने का पानी कहां है?’ कोर्ट की टिप्पणी ने शहरी और ग्रामीण भारत के बीच पानी की असमानता को एक बार फिर केंद्र में ला दिया. CJI ने दो टूक कहा कि गांवों में लोग आज भी जमीन के नीचे का पानी पीते हैं और बोतलबंद पानी जैसी सुविधाएं उनकी प्राथमिकता में भी नहीं हैं.
क्या थी याचिका?
लाइव लॉ के अनुसार यह रिट याचिका सारंग वामन ने दायर की थी. इसमें मांग की गई थी कि भारत में पैक्ड ड्रिंकिंग वॉटर के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन सुनिश्चित किया जाए और क्वालिटी को लेकर सख्त दिशा-निर्देश दिए जाएं. याचिका का तर्क था कि बोतलबंद पानी सीधे तौर पर लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा है.
रिट याचिका सारंग वामन ने दायर की थी.
कोर्ट ने क्यों खारिज की याचिका
CJI सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बाग्ची की बेंच ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह देश की जमीनी हकीकत से कटी हुई है. CJI ने कहा कि जब बड़ी आबादी को साफ पीने का पानी ही उपलब्ध नहीं है, तब बोतलबंद पानी की क्वालिटी पर अदालत का समय खर्च करना प्राथमिकता नहीं हो सकती.
‘यह शहरी सोच है’
याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट अनीता शेनॉय ने दलील दी कि लोगों को कम से कम सुरक्षित बोतलबंद पानी तो मिलना चाहिए. उन्होंने फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट, 2006 की धारा 18 का हवाला दिया. लेकिन CJI ने इस तर्क से असहमति जताते हुए कहा, ‘यह शहरी सोच को दिखाता है. ग्रामीण इलाकों में लोग जमीन का पानी पीते हैं और उन्हें कुछ नहीं होता.’
गांव बनाम शहर का सवाल
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर याचिका उन लोगों पर केंद्रित होती जिन्हें आज भी पीने का पानी नहीं मिलता खासकर ग्रामीण भारत में तो कोर्ट उसकी सराहना करता. CJI ने कहा कि इस तरह की याचिकाएं असल समस्याओं से ध्यान भटकाती हैं और इन्हें ‘लग्जरी मुकदमे’ कहना गलत नहीं होगा.
CJI सूर्यकांत ने याचिका खारिज करते हुए पूछा जब गांवों में पीने का पानी नहीं, तो लग्जरी बहस क्यों?(फाइल फोटो)
इस फैसले का क्या मतलब
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी केवल एक याचिका तक सीमित नहीं है. यह देश की जल नीति, प्राथमिकताओं और शहरी-ग्रामीण असमानता पर एक बड़ा संदेश है. अदालत ने यह साफ कर दिया कि जब तक बेसिक जरूरतें पूरी नहीं होतीं, तब तक सुविधाओं की बहस सेकेंडरी है.
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सुमित कुमार News18 हिंदी में सीनियर सब एडिटर के तौर पर काम कर रहे हैं. वे पिछले 3 साल से यहां सेंट्रल डेस्क टीम से जुड़े हुए हैं. उनके पास जर्नलिज्म में मास्टर डिग्री है. News18 हिंदी में काम करने से पहले, उन्ह...और पढ़ें
First Published :
December 18, 2025, 17:38 IST

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