DNA: US का 'बारूदी विभाग', 'सीजफायर के सरपंच' समझने वाले ट्रंप क्यों धमकी देने पर उतर आए?

2 hours ago

Donald Trump War News: ट्रंप सरकार ने एक नया फैसला लिया है. इस फैसले ने बता दिया है कि दुनिया के सामने खुद को सीजफायर का सरपंच कहने  वाले ट्रंप दरअसल WAR MONGER यानी युद्ध चाहने वाले शख्स हैं. ऐसा क्यों कहा जा रहा है ये समझने के लिए आपको डॉनल्ड ट्रंप का WAR MODE बेहद गौर से देखना चाहिए.

अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ट्रंप अब अमेरिका के रक्षा विभाग का नाम बदलने वाले हैं. आज तक अमेरिकी रक्षा विभाग या यूं कहें कि रक्षा मंत्रालय को DEPARTMENT OF DEFENCE कहा जाता था. लेकिन ट्रंप के आदेश के बाद इस मंत्रालय को DEPARTMENT OF WAR. यानी युद्ध का विभाग कहा जाएगा. बताया जा रहा है कि जल्द ट्रंप नाम बदलने के इस फैसले पर दस्तखत भी कर देंगे.

क्यों ट्रंप बदल रहे विभाग का नाम

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हो सकता है आपके मन में सवाल उठ रहा हो कि आखिर किसी विभाग या मंत्रालय का नाम बदलने से क्या फर्क पड़ेगा लेकिन सवाल सिर्फ नाम बदलने का नहीं है. सवाल नाम बदलने के पीछे छिपी आक्रामक भावना से जुड़ा है, जिसका एक सबूत आपको ट्रंप के करीबी और अमेरिका के वर्तमान SECRETARY OF DEFENCE पीटर हेगसेथ के बयान से मिल जाएगा. 

विभाग का नाम बदलकर डॉनल्ड ट्रंप किस तरह अमेरिकी नीतियों को बदलना चाहते हैं, इस बारे में भी हम आपको बताएंगे लेकिन उससे पहले आपको अमेरिका के उस युद्ध मंत्रालय का इतिहास जरूर देखना चाहिए, जिसका जिक्र अमेरिकी रक्षा सचिव ने ट्रंप की मौजूदगी में किया है.

1789 में हुई थी स्थापना

अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन ने वर्ष 1789 में अमेरिकी युद्ध विभाग की स्थापना की थी, जिसे संभालने के लिए युद्ध सचिव नाम का पद भी बनाया गया था. दूसरे विश्वयुद्ध तक अमेरिका में रक्षा से जुड़े मामलों को युद्ध विभाग ही देखता था. वर्ष 1949 में अमेरिका की थलसेना, वायुसेना और नौसेना को पेंटागन के अंतर्गत लाया गया और तब युद्ध विभाग का नाम बदलकर DEPARTMENT OF DEFENCE यानी रक्षा विभाग किया गया था.

76 साल बाद अब ट्रंप दोबारा रक्षा विभाग को युद्ध विभाग बना रहे हैं. माना जा रहा है इस बदलाव के जरिए ट्रंप ये मैसेज देना चाहते हैं कि अमेरिका युद्ध के दौर में उतर रहा है या फिर अमेरिका की सामरिक नीतियां अब सुरक्षा की भावना से नहीं चलेंगी बल्कि ये नीतियां आक्रामक होंगी और इस आक्रामक बर्ताव की पहली झलक अब से 48 घंटे पहले सामने आ चुकी है.

ट्रंप के ऑर्डर पर अमेरिकी नेवी के जो जहाज वेनेजुएला के नजदीक पहुंचे थे. उन्होंने वेनेजुएला की एक नाव पर रॉकेट से हमला कर दिया था. इस हमले में 11 लोग मारे गए थे. अमेरिकी नेवी का दावा था कि इस नाव में तस्कर सवार थे.लेकिन वेनेजुएला की मादुरो सरकार ने इन दावों को मानने से इंकार कर दिया था.

#DNAWithRahulSinha | ट्रंप की 'बारूदी पॉलिसी' का विश्लेषण

अमेरिकी रक्षा विभाग का नाम बदलेंगे ट्रंप, रक्षा विभाग का नया नाम युद्ध विभाग होगा। ट्रंप के रक्षा सचिव ने बयान जारी किया
#DNA #DonaldTrump #UnitedStates | @RahulSinhaTV pic.twitter.com/GW39AM3Mzm

— Zee News (@ZeeNews) September 5, 2025

वेनेजुएला ने ट्रंप को दिखाई ताकत

ट्रंप को लगा था कि वो एक धमाके से अपनी ताकत का प्रदर्शन करेंगे और वेनेजुएला डर जाएगा. लेकिन वेनेजुएला के राष्ट्रपति मादुरो ने जो प्रतिक्रिया दी, उसकी कल्पना शायद ट्रंप ने भी नहीं की होगी. वेनेजुएला की एयरफोर्स के दो लड़ाकू विमानों ने अमेरिकी नेवी के जहाजों के ऊपर चक्कर लगाकर ये संदेश दिया कि ट्रंप के आगे वेनेजुएला झुकेगा नहीं. वेनेजुएला जैसे छोटे देश से ट्रंप को चुनौती मिली तो उसकी बौखलाहट सीधे पेंटागन से आए बयान में दिखी. पेंटागन ने अपने अधिकारिक बयान में इस घटना को उकसावे से भरी कार्रवाई करार दिया है. साथ ही वेनेजुएला के लिए चेतावनी भी जारी की गई है कि अगर आने वाले वक्त में वेनेजुएला की सेना ने अमेरिकी सैनिकों की कार्रवाई को बाधित करने की कोशिश की तो जवाब सामरिक शक्ति से दिया जाएगा.

पहले संगीन आरोप लगाना, फिर विरोधी को उकसाना और आखिर में अमेरिका विरोधी साजिश का बहाना बनाकर सीधे हमला कर देना ये अमेरिकी सामरिक नीतियों का पुराना हिस्सा रहा है. वियतनाम से लेकर इराक और अफगानिस्तान तक अमेरिका ने यही किया है और इसी दादागीरी वाली नीति को डॉनल्ड ट्रंप दोबारा हवा दे रहे हैं. ट्रंप के बर्ताव और फैसलों को देखकर ये कहना गलत नहीं होगा कि सीजफायर, शांति का नोबेल पुरस्कार...ये सब एक आडंबर था. असल में डॉनल्ड ट्रंप के अंदर अमेरिकी सामरिक शक्ति का दंभ भरा है, जो अब आक्रामक स्वरूप लेता जा रहा है.

क्या डारने-धमकाने पर उतरा अमेरिका?

डॉनल्ड ट्रंप ना सिर्फ सामरिक शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं बल्कि वो उन मित्र देशों को भी डराने और धमकाने की कोशिश कर रहे हैं, जो दशकों से अमेरिका के साथ खड़े रहे हैं. ऐसा क्यों कहा जा रहा है, ये समझने के लिए आपको ट्रंप का एक और फरमान भी समझ लीजिए.

डॉनल्ड ट्रंप ने यूरोपीयन यूनियन के सभी बड़े सदस्य देशों ने निर्देश दिए हैं. इस निर्देशों  में कहा गया है कि यूरोपीयन यूनियन के सदस्य देश रूस से तेल या गैस ना खरीदें. EU के सदस्यों को ट्रंप ने ये भी कहा है कि वो चीन के ऊपर आर्थिक दबाव बनाएं. ताकि यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस के ऊपर प्रेशर बनाया जा सके. ट्रंप ने यूरोपीय देशों की आलोचना करते हुए ये भी कहा है कि रूसी आक्रमण के खिलाफ यूरोपीय देशों का सहयोग अपेक्षा से कम रहा है.

इससे पहले डॉनल्ड ट्रंप ने यूरोपीयन यूनियन से भारत पर भी आर्थिक दबाव बढ़ाने के लिए कहा था लेकिन ट्रंप के मित्रों ने साफ कह दिया था कि भारत के साथ आर्थिक टकराव की जगह आर्थिक सहयोग को आगे बढ़ाना चाहिए. अगर यूरोपीय देशों ने भारत से दूरी बनाई तो ये नुकसान दायक हो सकता है. रूस से तेल खरीदने के इस फरमान को यूरोपीयन यूनियन कितनी संजीदगी से लेगी, ये अभी साफ नहीं है. लेकिन यूरोपीय देशों ने ये जरूर साफ कर दिया है कि अगर यूक्रेन युद्ध को खत्म करना है. तो भारत का सहयोग जरूरी है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं. ये समझने के लिए आपको EU से जुड़ा एक बड़ा अपडेट जान लेना चाहिए.

EU नेताओं ने की पीएम मोदी से बात

यूरोपीयन यूनियन के वरिष्ठ नेताओं ने गुरुवार को प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत की है. बातचीत के बाद इन नेताओं ने मीडिया को बताया कि यूक्रेन-रूस का युद्ध खत्म करने में भारत की भूमिका अहम साबित हो सकती है. क्योंकि भारत ही वो देश है, जो रूस के साथ शांति समझौते जैसे प्रस्ताव को आगे बढ़ा सकता है.

यूरोपीयन यूनियन का ये बयान भी ट्रंप को तीर की तरह चुभा होगा क्योंकि ट्रंप ही वो शख्स थे, जिन्होंने संभावित युद्धविराम के लिए पुतिन को अलास्का बुलाया था और जेलेंस्की से भी मुलाकात की थी. हालांकि ट्रंप की ये कोशिश अब नाकाम साबित होती लगती है क्योंकि जब से पुतिन ट्रंप से मुलाकात करके लौटे हैं तब से यूक्रेन पर रूसी हमलों की तादाद और ताकत दोनों बढ़ गई हैं. यूक्रेन युद्ध का समाधान आसान नहीं है. अब इस बात का एहसास ट्रंप को भी हो चला है और ये कबूलनामा उनकी जुबान से सुनाई भी पड़ रहा है.

ट्रंप के  जुबान से निकले ये शब्द समाधान की कोशिश कम और सरेंडर ज्यादा नजर आ रहे हैं. ये अमेरिका ही था जिसने यूक्रेन को नाटो की सदस्यता की लॉलीपॉप दिखाई थी, जिसके लालच में आकर जेलेंस्की ने पुतिन से अदावत पाल ली थी. हजारों लोगों की मौत हो चुकी है. लाखों विस्थापित हो चुके हैं.हजारों करोड़ डॉलर का इंफ्रास्ट्रक्चर खत्म हो चुका है और अब ट्रंप कह रहे हैं कि वो युद्धविराम चाहते तो हैं लेकिन युद्धविराम कराना इतना आसान नहीं है. ऐसे हालात में जेलेंस्की समेत यूक्रेन के लोग खुद को ठगा सा महसूस कर रहे होंगे और इस निराशा का असर जेलेंस्की की उन बातों में भी सामने आया जो उन्होंने पेरिस में कही हैं.

क्या बोले जेलेंस्की?

पेरिस में यूरोपीय देशों के साथ बैठक के दौरान जेलेंस्की ने कहा हमें लगता है कि रूस हर वो मुमकिन कोशिश कर रहा है, जिसके जरिए युद्धविराम को टाला जाए और युद्ध को आगे बढ़ाया जाए. मुझे पता है कि यूरोपीयन यूनियन रूस पर प्रतिबंधों को ज्यादा सख्त करेगा.

पेरिस समिट में जेलेंस्की ने युद्धविराम के प्रयासों के लिए डॉनल्ड ट्रंप को शुक्रिया तो कहा लेकिन जब बात सुरक्षा से जुड़ी गारंटी की आई तो जेलेंस्की ने यूरोपीयन यूनियन यानी यूरोपीय साथियों पर ही भरोसा जताया और जेलेंस्की के इस रुख ने बता दिया कि यूक्रेन को अब सामरिक जरूरतों के लिए ट्रंप से ज्यादा यूरोपीयन यूनियन के सदस्यों पर  भरोसा हो चला है. शायद यही वजह है कि ट्रंप अब रूस, चीन और भारत के साथ ही साथ यूरोपीयन यूनियन से भी जलने लगे हैं. यूरोपीयन यूनियन पर सवाल भी उठाने लगे हैं.

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