DNA: पाकिस्तान की 'बकरीद' वाली आतंकी फंडिंग... त्योहार के पीछे आतंक की बड़ी साजिश!

19 hours ago

DNA Analysis: आज हम आपको बकरीद से जुड़ी एक और अर्थव्यवस्था के बारे में बताने जा रहे हैं. फर्क इतना है कि ये कथित इकॉनॉमिक्स हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में चलती है और यहां जमा किया पैसा टेरर फंडिंग यानी आतंकी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए पाकिस्तान में बकरीद वाली ये इकॉनॉमिक्स आपको जरूर जानना चाहिए. ताकि आपको पता चल सके. पाकिस्तान में त्योहारों का इस्तेमाल भी दहशतगर्दी के लिए किया जाता है.

DNA में हमने आपको बताया था किस तरह पाकिस्तानी फौज, खुफिया एजेंसी ISI और आतंकी संगठनों के कमांडर सुभान अल्लाह कॉन्क्लेव के झंडे तले एक साथ नजर आए थे. इस कॉन्क्लेव के दो मकसद हैं. पहला ये बताना कि भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद भी पाकिस्तान में आतंकी नेटवर्क मौजूद है और दूसरा बकरीद के नाम पर आतंकियों के लिए फंड जुटाना. सबसे पहले जानिए आखिर हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकी किस तरह आतंकी गतिविधियों के लिए पैसा जुटाते हैं.

टेरर फंडिंग के लिए लश्कर और जैश ने अलग शाखाएं बना रखी हैं, जो चैरिटी यानी दान की आड़ में पैसा जमा करती हैं. लश्कर-ए-तैयबा की शाखा है जिसका नाम है जमात-उद-दावा, और जैश-ए-मोहम्मद की शाखा का नाम है अल-रहमत ट्रस्ट बकरीद पर ये गुट किस तरह सक्रिय हुए हैं. अब हम आपके सामने इसका प्रमाण बताने जा रहे हैं.

अपने टीवी स्क्रीन पर आप जो कागज देख रहे हैं ये हाफिज सईद की जमात-उद-दावा का एक पैम्फलेट है, जो पाकिस्तान में बांटा जा रहा है. कागज के इस टुकड़े पर उर्दू में लिखा है. अपने शहीदों के साथ खड़े रहिए. इस्लाम के अनुयायियों का साथ दीजिए. और उन मुजाहिदों का साथ दीजिए जो मुस्लिम उम्माह के लिए जंग लड़ रहे हैं. इस पंक्ति के साथ ही दान यानी टेरर फंडिंग की रेट लिस्ट भी लिखी है, जो है 21 हजार रुपए, 29 हजार रुपए, 34 हजार रुपए और 39 हजार रुपए. आतंकियों के लिए पैसा जुटाने के लिए क्या किया जा रहा है. ये आपने जाना. अब हम आपको बताते हैं कि आखिर जेहाद के इस रेटकार्ड की स्क्रिप्ट कहां और कैसे लिखी गई है.

आतंकियों के सुभान अल्लाह कॉन्क्लेव में जब पाकिस्तानी नेताओं के साथ तल्हा सईद और सैफुल्लाह कसूरी जैसे आतंकी कमांडर मंच पर मौजूद थे. उसी वक्त पाकिस्तान के अलग-अलग शहरों में जमात-उद-दावा और अल-रहमत ट्रस्ट ने अपने कैंप शुरु कर दिए थे. इन कैंप्स में स्थानीय इलाकों के आतंकी कमांडर बुलाए गए थे और उनकी मौजूदगी में ही पैसा जमा करने के लिए आतंकी शहरों की गलियों में निकल गए हैं. शहर की गलियों से लेकर स्थानीय मस्जिद और मदरसों तक जिहाद के नाम पर लोगों से पैसा मांगा जा रहा है. हम आपको बता दें कि ये पहली बार नहीं हो रहा. हर साल ईद और बकरीद के मौके पर आतंकियों की जमात पाकिस्तान की गलियों में नजर आती है.

मस्जिदों के साथ ही साथ बकरीद में टेरर फंडिंग का एक बड़ा हिस्सा उन जानवरों की खाल से भी आता है, जिन्हें बकरीद में कुर्बान किया जाता है. इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक जो जानवर कुर्बान किया जाता है. उसकी खाल मदरसों जैसे संस्थानों को दान दी जाती है.

पिछले साल किए गए एक सर्वे के मुताबिक, पाकिस्तान में बकरीद पर तकरीबन 60 लाख जानवर कुर्बान किए जाते हैं. एक बकरे की खाल की औसत कीमत 450 रुपए मानी जाती है यानी मदरसों से जब खाल बेची जाएंगी तो उनकी कुल कीमत 2700 करोड़ रुपए होगी. पाकिस्तान में अधिकतर बड़े मदरसों पर आतंकी संगठनों का कब्जा या प्रभाव है. जिसका सीधा मतलब है कि बकरीद पर मिलने वाली जानवरों की खाल इन्हीं आतंकी संगठनों को मिलती हैं. जो खाल को आगे बेचकर हजारों करोड़ कमाते हैं और फिर इसी पैसे का इस्तेमाल. भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियां चलाने के लिए किया जाता है.

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