DRDO ने आर्मी को दिया 'मायावी' रक्षक, अब बॉर्डर पर होगा कमाल

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Last Updated:December 29, 2025, 14:48 IST

Indian Army News: ऑपरेशन सिंदूर से भारत ने कई सबक लिए हैं, जिसका असर अब दिखने लगा है. डीआरडीओ समेत अन्य सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े वैज्ञानिक और इंजीनियर्स लगातार एडवांस्‍ड टेक्‍नोलॉजी और वेपन सिस्‍टम डेवलप कर रहे हैं.

DRDO ने आर्मी को दिया 'मायावी' रक्षक, अब बॉर्डर पर होगा कमालIndian Army News: डीआरडीओ ने ऐसी तकनीक ईजाद किया है, जिससे दुश्‍मनों को चकमा देना आसान हो जाएगा. (फाइल फोटो)

Indian Army News: युद्ध में दुश्मन को भ्रमित करना और अपनी ताकत को छिपाए रखना हमेशा से एक अहम रणनीति रही है. चीन के प्रसिद्ध सैन्य विचारक सुन जू ने भी कहा था कि हर युद्ध धोखे पर आधारित होता है. इसी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने भारतीय सेना को दो अहम स्वदेशी तकनीकें सौंपी हैं, जो दुश्मन की नजरों से सैनिकों और सैन्य उपकरणों को बचाने में मदद करेंगी. मई महीने में पाकिस्तान के साथ हुए हालिया टकराव के दौरान दुश्मन ने भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की कोशिश की थी. इसमें एयर डिफेंस सिस्टम, खासतौर पर S-400 जैसे अहम वेपन सिस्‍टम भी टारगेट पर थे. ऐसे में DRDO की यह पहल भारतीय सेना की सुरक्षा और मजबूती के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है.

DRDO की जोधपुर स्थित डिफेंस लैब (Defence Lab Jodhpur) ने 3 दिसंबर 2025 को सेना के कोर ऑफ मिलिट्री इंजीनियरिंग (CME), पुणे को दो प्रमुख तकनीकें सौंपीं. इनमें पहली है कैमोफ्लाज पैटर्न जेनरेशन सॉफ्टवेयर सिग्मा 4.0 (CPGSS 4.0) और दूसरी है फुल-स्केल मल्टीस्पेक्ट्रल सिग्नेचर टैंक मॉक-अप. DRDO के अनुसार, CPGSS 4.0 का उद्घाटन CME के कमांडेंट लेफ्टिनेंट जनरल एके रमेश ने किया. यह सॉफ्टवेयर अब आर्मी, नेवी और एयरफोर्स तीनों के उपयोग के लिए उपलब्ध होगा. यह एक उन्नत सॉफ्टवेयर है, जिसकी मदद से अलग-अलग इलाकों के अनुसार सैन्य उपकरणों के लिए विशेष पैटर्न तैयार किए जा सकते हैं.

रडार और सेंसर भी होंगे बेअसर

इस सॉफ्टवेयर की खासियत यह है कि यह केवल आंखों से दिखने वाली रोशनी ही नहीं, बल्कि इंफ्रारेड और रडार जैसे आधुनिक सेंसरों से भी बचाव में मदद करता है. यानी दुश्मन के ड्रोन, थर्मल कैमरे और रडार सिस्टम के लिए भारतीय सैन्य उपकरणों को पहचानना और भी मुश्किल हो जाएगा. दूसरी तकनीक, यानी मल्टीस्पेक्ट्रल सिग्नेचर टैंक मॉक-अप. यह असली टैंक की तरह दिखने वाला एक मॉडल है. इसका इस्तेमाल सैनिकों को प्रशिक्षण देने के लिए किया जाएगा. इसके जरिए सैनिक सीख सकेंगे कि कैसे उन्नत छलावरण सामग्री का उपयोग कर टैंकों को थर्मल, इंफ्रारेड और रडार निगरानी से छिपाया जाए. यह तकनीक दुश्मन को भ्रमित करने और असली सैन्य संपत्तियों को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाएगी. रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि आधुनिक युद्ध में सिर्फ हथियार ही नहीं, बल्कि तकनीक और रणनीति भी निर्णायक भूमिका निभाती है. DRDO की ये स्वदेशी तकनीकें भारतीय सेना की धोखा देने और बचाव की क्षमता को और मजबूत करेंगी, जिससे भविष्य में किसी भी खतरे का बेहतर तरीके से सामना किया जा सकेगा.

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Manish Kumar

बिहार, उत्‍तर प्रदेश और दिल्‍ली से प्रारंभिक के साथ उच्‍च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्‍ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्‍लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें

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New Delhi,Delhi

First Published :

December 29, 2025, 14:48 IST

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