Explainer: मानसून इतनी जल्दी क्यों आ गया, इसका देश के मौसम और खेती पर क्या असर

3 weeks ago

उस समय जबकि उत्तर भारत में गरमी के बीच बार बार अंधड़ आ रहे थे और बारिश भी कई बार आई. उसी समय मानसून ने 8 दिन पहले ही केरल के तटों पर झमाझम करके दस्तक दे दी. मानसून केरल में 25 मई को पहुंचा. अपने सामान्य समय से 8 दिन पहले. हालांकि पिछले कुछ सालों से मानसून लेट ही आता रहा था. लिहाजा 16 वर्षों में उसका पहली बार जल्दी आना काफी सुखद है. मानसून का ये जल्दी आना क्यों हुआ है और उसकी ये जल्दी देश के मौसम के साथ खेती-किसानी के लिए कैसी होगी.

माना जा रहा है कि ऐसा मुख्य तौर पर अनुकूल वायुमंडलीय और महासागरीय परिस्थितियों के कारण हुआ है, मानसून को कमजोर करने वाला एल नीनो मौजूद है नहीं. भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, कम दबाव वाला क्षेत्र बनने के साथ मानसूनी हवाओं के आगे बढ़ने से मानसून के जल्दी आगमन की आदर्श स्थितियां बनीं. यानि अगर सरल शब्दों में कहें तो वायुमंडल और समुद्र की स्थितियां अनुकूल थीं, जिन्होंने मानसून एक्सप्रेस की स्पीड बढ़ा दी.,

हालांकि, विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि केरल में समय से पहले आगमन से भारत के बाकी हिस्सों में मानसून के तेज़ या समान प्रसार की गारंटी नहीं है, क्योंकि बड़े पैमाने पर मौसम के पैटर्न और स्थानीय कारक इसकी प्रगति पर असर डाल सकते हैं.

सवाल – भारत आने वाला मानसून किस समुद्र में मूल रूप से बनता है और फिर कैसे केरल की ओर से दाखिल होता है?
– भारत में जो मानसून आता है, उसकी उत्पत्ति मूल रूप से हिंद महासागर और अरब सागर के ऊपर होती है. गर्मियों में जब भारतीय उपमहाद्वीप (विशेषकर उत्तर भारत और तिब्बत का पठार) बहुत गर्म हो जाता है, तो वहां कम दबाव बन जाता है. इस कारण हिंद महासागर और अरब सागर से नम और ठंडी हवाएं दक्षिण-पश्चिम दिशा से भारत की ओर बहने लगती हैं, जिसे दक्षिण-पश्चिम मानसून कहा जाता है.

ये मानसूनी हवाएं भारत के दक्षिणी सिरे (केरल) पर सबसे पहले पहुंचती हैं. फिर दो मुख्य शाखाओं में बंट जाती हैं.
अरब सागर शाखा – यह पश्चिमी तट (केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात) से होते हुए उत्तर-पश्चिम भारत की ओर बढ़ती है.

भारतीय मानसून की उत्पत्ति मुख्य तौर पर हिंnद महासागर और अरब सागर में होती है, वहीं से ये हवाएं भारत में केरल की ओर आती हैं. फिर पूरे देश में फैलती हैं. (News18 AI)

बंगाल की खाड़ी शाखा – यह पूर्वी भारत (पश्चिम बंगाल, असम, पूर्वोत्तर राज्य) से होते हुए उत्तर भारत की ओर जाती है.
इस तरह भारतीय मानसून की उत्पत्ति मुख्य तौर पर हिंद महासागर और अरब सागर में होती है, वहीं से ये हवाएं भारत में केरल की ओर आती हैं. फिर पूरे देश में फैलती हैं.

सवाल – इस बार इसके जल्दी आने की वजह क्या रही, ये तो कुछ ज्यादा ही जल्दी है, खासकर अगर ये पिछले कुछ सालों से देर से आने लगा था?
– भारत में इस वर्ष (2025) मानसून सामान्य से लगभग 8 दिन पहले आ गया है, ये एक असामान्य लेकिन वैज्ञानिक रूप से समझने योग्य घटना है. अरब सागर में निम्न दबाव का क्षेत्र बना. मोटे तौर पर यही वजह है कि मानसून जल्दी आ गया.

सवाल – इस बार अल नीनो ने क्या भूमिका निभाई?
इस वर्ष El Niño और IOD दोनों ही न्यूट्रल स्थिति में हैं, जो मानसून के लिए अनुकूल माने जाते हैं. इसके अलावा, उत्तरी गोलार्ध और यूरेशिया में जनवरी से मार्च 2025 के बीच बर्फ की परत सामान्य से कम रही, जो भारतीय मानसून को मजबूत करने में सहायक होती है. विशेषज्ञों का मानना है कि भूमध्यरेखीय रॉस्बी वेव्स और अन्य मौसमी तरंगें, जो दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ती हैं, इस वर्ष जल्दी सक्रिय हो गईं, जिससे भारत में बारिश के पैटर्न में बदलाव आया.

सवाल – ऊपर जिस IOD की बात की गई, वो क्या है, मानसून में उसकी क्या भूमिका होती है?
– IOD, यानी इंडियन ओशियन डिपोल, ये मौसम के लिहाज से एक महत्वपूर्ण जलवायु पैटर्न है जो हिंद महासागर और आसपास के क्षेत्रों के मौसम को प्रभावित करता है. इस साल भारतीय मानसून पर इंडियन ओशन डिपोल का प्रभाव न्यूट्रल रहा है. हालांकि IOD न्यूट्रल होने के बाद भी IMD ने 2025 के दक्षिण-पश्चिम मानसून के लिए सामान्य से अधिक वर्षा की भविष्यवाणी की है.

मौसम विभाग के अनुसार, दक्षिण-पश्चिम मानसून केरल में पहुंच चुका है. (फोटो: पीटीआई/फाइल)

जब IOD सकारात्मक होता है, तो हिंद महासागर के पश्चिमी भाग में गर्म पानी जमा हो जाता है और पूर्वी भाग में ठंडा पानी सतह पर आता है. इससे भारत के दक्षिण-पूर्वी और पूर्वी क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है, जबकि ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका में सूखा पड़ता है.

जब IOD नकारात्मक होता है, तो यह पैटर्न उलट जाता है. हिंद महासागर के पूर्वी भाग में गर्म पानी जमा हो जाता है और पश्चिमी भाग में ठंडा पानी सतह पर आता है. इससे भारत के दक्षिण-पूर्वी और पूर्वी क्षेत्रों में सूखा पड़ता है, जबकि ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका में अधिक वर्षा होती है.

सवाल – क्या मानसून के इतनी जल्दी आने का अनुमान वैज्ञानिकों ने लगा लिया था?
– इस बार मानसून के इतनी जल्दी आने का अनुमान वैज्ञानिकों विशेषकर भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने पहले ही लगा लिया था. IMD ने मई के तीसरे सप्ताह में ही यह भविष्यवाणी कर दी थी कि दक्षिण-पश्चिम मानसून 27 मई के आसपास केरल तट पर पहुंच सकता है, जो सामान्य तिथि 1 जून से चार दिन पहले है. IMD ने अपने पूर्वानुमान में 4 दिन पहले या बाद का अंतर भी बताया था और इस बार मानसून 24 मई को ही केरल पहुंच गया, यानी तय तारीख से 8 दिन पहले. मौसम विभाग की यह भविष्यवाणी सटीक साबित हुई.

जल्दी मानसून पहुंचने से देशभर में खेती किसानी के बेहतर रहने के आसार. (News18 AI)

सवाल – मानसून के जल्दी आने से देशभर के मौसम और खेती किसानी पर किस तरह का प्रभाव पड़ सकता है?
– दक्षिण भारत के राज्यों—केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र के तटीय इलाकों में अगले सात दिनों तक भारी से बहुत भारी बारिश की संभावना है. पूर्व-मध्य भारत (महाराष्ट्र, मराठवाड़ा, कर्नाटक) में भी यह सिस्टम भारी बारिश लाएगा, जिससे इन इलाकों में तापमान में गिरावट और गर्मी से राहत मिलेगी. हालांकि, उत्तर-पश्चिम भारत (राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर) में भीषण गर्मी और लू की स्थिति अभी बनी रहेगी, क्योंकि मानसून वहां तक पहुंचने में समय लगेगा. पूर्वी भारत (बिहार, झारखंड, ओडिशा) में भी 26 मई तक भारी बारिश की संभावना जताई गई है, जिससे इन इलाकों में भी मौसम बदल सकता है.

सवाल – दिल्ली, यूपी और आसपास के इलाकों में मानसून का असर कब से देखने को मिलेगा?
– दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में मानसून के जल्दी आने के बावजूद आने में समय लगेगा. मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, दिल्ली-NCR में मानसून 27-29 जून के बीच पहुंचने की संभावना है. पूर्वी यूपी में इसकी तारीख 20 जून के आसपास और पश्चिमी यूपी में 25-30 जून के बीच रहने का अनुमान है. पंजाब और हरियाणा में 29 जून से 2 जुलाई के बीच.

लिहाजा उत्तर भारतीय इलाकों में मानसून के आगमन से पहले गर्मी और लू का प्रभाव बना रहेगा. मानसून के आते ही तापमान में गिरावट आएगी, नमी बढ़ेगी और बारिश की शुरुआत होगी, जिससे गर्मी से राहत मिलेगी. यानि उत्तर भारत को गर्मी से निजात जून के अंत तक दिखेगा.

सवाल – इससे खेती किसानी पर क्या असर रहने की उम्मीद है?
– मानसून के शुरुआती दौर में हल्की से मध्यम बारिश और कहीं-कहीं तेज बारिश हो सकती है, जिससे खेती और जलस्तर दोनों को फायदा होगा. मानसून के जल्दी आने से खरीफ फसलों की बुवाई जल्दी शुरू हो सकती है, जिससे किसानों को लाभ होगा और उत्पादन बढ़ने की संभावना है. मिट्टी में नमी बढ़ेगी, जिससे धान, मक्का, सोयाबीन, कपास जैसी फसलों की बुवाई के लिए अनुकूल स्थिति बनेगी. अगर मानसून की प्रगति देशभर में समान रूप से तेज रही, तो पूरे भारत में कृषि गतिविधियां समय पर शुरू हो सकेंगी और फसल उत्पादन बेहतर हो सकता है.

सवाल – इस बार क्या प्री मानसून नहीं आया, सीधे मानसून ही आ गया?
– इस बार प्री-मानसून का समय लगभग नहीं के बराबर रहा या बहुत छोटा रहा. आमतौर पर केरल और दक्षिण भारत में मई के मध्य से जून की शुरुआत तक प्री-मानसून बारिश होती है, लेकिन 2025 में मानसून ने पहले दस्तक दे दी. मानसून के इतनी जल्दी पहुंचने के कारण, प्री-मानसून शॉवर्स के लिए जो समय मिलता है, वह या तो बहुत कम रहा या सीधे ही मानसून की मुख्य बारिश शुरू हो गई.इसलिए, कहा जा सकता है कि 2025 में केरल में प्री-मानसून का समय लगभग गायब रहा.

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