मुस्लिमों के सबसे पवित्र स्थलों में शुमार काबा की चाबी रखने वाले और उसके संरक्षक डॉ शेख सालेह अल-शेबी का पिछले दिनों निधन हो गया. वह काबा के 109वें संरक्षक थे और उस्मान बिन तलहा के वंशज थे. 1600 सालों से बानु शेबी कबीला काबा का संरक्षक है और उसके पास ही चाबी है. डॉ शेख इस खानदान के वारिस थे. काबा के खोलने से लेकर बंद होने तक, साफ-सफाई, रिपेयरिंग समेत समस्त धार्मिक कार्य इन्हीं के द्वारा होता है. पैगंबर मुहम्मद की इच्छा के मुताबिक इस चाबी का संरक्षक अल-शेबी परिवार ही रहा है.
परंपरा
हिज्र के आठ साल बाद जब पैगंबर मुहम्मद ने मक्का को फतेह किया तो उस्मान बिन तलहा से ये चाबी कुछ समय के लिए ले ली गई थी. मान्यता है कि अल्लाह के आदेश के बाद उस्मान को शहर की चाबी दे दी गई और काबा का संरक्षक नियुक्त किया गया. पैगंबर मुहम्मद ने खुद ये चाबी उस्मान को देते हुए कहा था कि काबा की ये चाबी आपके पास रहेगी और किसी आतताई के अलावा कोई आपसे ये चाबी कभी नहीं छीन पाएगा. लिहाजा उसी जमाने से ये दस्तूर चला आ रहा है और उनका अल-शेबी परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी इसका संरक्षक रहा है.
काबा का दरवाजा
काबा में दाखिल होने के लिए सिर्फ एक ही दरवाजा है जिसे बाब-ए-काबा कहा जाता है. ये दरवाजा काबा की उत्तर-पूर्वी दीवार के पास है और काले पत्थर के करीब है जहां से तवाफ शुरू होता है. हज या उमरा के दौरान हाजी इस काले पत्थर को चूमते हैं और फिर काबा के चक्कर लगाते हैं जिसे तवाफ कहते हैं.
1979 में 300 किलो सोने से काबा के लिए सोने का दरवाजा बनाया गया था. उसके बाद सऊदी अरब के शाह अब्दुल्ला के आदेश पर काबे के ताले और चाबी को भी बदला गया. ये नया ताला और चाबी शाह की तरफ से प्रिंस खालिद ने पूर्व संरक्षक शेख अब्दुल कादिर को दिया था. 2013 में कादिर के इंतकाल के बाद डॉ शेख सालेह इसके संरक्षक बने.