पटना. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से ठीक पहले प्रशांत किशोर (पीके) की जन सुराज पार्टी हर दिन एक नया आयाम जोड़ रही है. यदि ‘पीके’ अपनी रणनीति के तहत वीआईपी के मुकेश सहनी और कांग्रेस को अपने साथ लाने में सफल हो जाते हैं, तो बिहार की राजनीति में एक त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है? क्या अगर चिराग पासवान भी जन सुराज के साथ गठबंधन कर लेते हैं, तो क्या यह गठबंधन बिहार में सरकार बना सकता है? सोमवार को पटना में चिराग पासवान की सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात और अगले ही दिन पार्टी के पोस्टर में सीएम कैंडिडेट बताना, क्या बिहार चुनाव में नई राजनीतिक संभावनाओं को जन्म दे रहा है? अगर जन सुराज, वीआईपी और एलजेपी (रामविलास) गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ती है तो क्या बिहार की सत्ता पर काबिज हो जाएगी? तीनों पार्टियों के पूर्व के वोट प्रतिशत से क्या राजनीतिक समीकरण बन सकते हैं?
प्रशांत किशोर, मुकेश सहनी, कांग्रेस और चिराग पासवान का संभावित गठबंधन बिहार चुनाव 2025 को त्रिकोणीय और बेहद रोमांचक बना सकता है. यह गठबंधन एनडीए और महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगा सकता है, खासकर दलित, मल्लाह, मुस्लिम और युवा मतदाताओं को लक्षित करके. हालांकि, जातिगत वफादारी, संगठनात्मक कमजोरी और चिराग की एनडीए के प्रति वफादारी इस गठबंधन की राह में चुनौतियां हैं. अगर यह गठबंधन बनता है और पीके अपनी रणनीति को प्रभावी ढंग से लागू करते हैं, तो जन सुराज की सरकार बनने की संभावना फिर भी नहीं है, लेकिन यह एक किंगमेकर की भूमिका जरूर निभा सकता है. जानें कैसे?
मुकेश सहनी
मल्लाह (निषाद) समुदाय के प्रभावशाली नेता हैं. पहले एनडीए के साथ थे, लेकिन 2022 में भाजपा से रिश्ते तोड़कर महागठबंधन में शामिल हो गए. हालांकि, उनकी पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में कोई सीट नहीं जीती, लेकिन मल्लाह समुदाय (लगभग 5-6% वोट) में उनकी पकड़ मजबूत है. सहनी ने हाल ही में तेजस्वी यादव के साथ मंच साझा किया, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा और क्षेत्रीय प्रभाव उन्हें पीके के साथ गठबंधन की ओर आकर्षित कर सकता है.
कांग्रेस
महागठबंधन का हिस्सा है. बिहार में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में है. हाल के दिनों में कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स में दावा किया गया कि कांग्रेस राजद से गठबंधन तोड़कर जन सुराज के साथ बिना शर्त गठबंधन कर सकती है. हालांकि, यह दावा पुष्ट नहीं है, लेकिन कांग्रेस की कमजोर स्थिति (2020 में 19 सीटों पर 9% वोट) उसे नए विकल्प तलाशने के लिए प्रेरित कर सकती है.
चिराग पासवान
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने 2024 के लोकसभा चुनाव में पांच सीटें जीतीं और उनकी दलित (खासकर पासवान) वोट बैंक में मजबूत पकड़ है. मंगलवार को ही पटना में लगे पोस्टरों ‘दंगा फसाद न बवाल चाहिए, बिहार का सीएम चिराग चाहिए’ ने उनकी महत्वाकांक्षा को उजागर किया है. चिराग और पीके के बीच हालिया तारीफों का आदान-प्रदान इस बात का संकेत है कि दोनों के बीच गठबंधन की संभावना तलाशी जा रही है.
कितना दिलचस्प होगा मुकाबला?
यदि पीके, मुकेश सहनी और कांग्रेस एक साथ आते हैं तो बिहार में त्रिकोणीय मुकाबला तय है. इस गठबंधन में शामिल होने की संभावना वाले चिराग पासवान इसे और रोमांचक बना सकते हैं.
वोटों का बिखराव
पीके की पार्टी अकेले 243 सीटों पर लड़ेगी, लेकिन गठबंधन के साथ वह 70-80 सीटों पर ध्यान केंद्रित कर सकती है. सहनी और चिराग के वोट बैंक से यह गठबंधन 20-25% वोट शेयर हासिल कर सकता है, जो कई सीटों पर एनडीए और महागठबंधन को नुकसान पहुंचा सकता है.
चिराग की भूमिका
चिराग का एनडीए में रहना या जन सुराज के साथ आना उनकी महत्वाकांक्षा पर निर्भर करता है. यदि नीतीश की सेहत या जदयू का प्रदर्शन कमजोर होता है, तो चिराग पीके के साथ जा सकते हैं. हालांकि, उनकी हालिया नीतीश से मुलाकात एनडीए में एकता का संकेत देती है.
कांग्रेस की रणनीति
कांग्रेस के लिए राजद से अलग होना जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि यादव-मुस्लिम वोट बैंक राजद के पास है. फिर भी, पीके की युवा अपील और सहनी की क्षेत्रीय ताकत कांग्रेस को आकर्षित कर सकती है.
चुनौतियां और नेताओं की महत्वाकांक्षा
बिहार में 57% मतदाता अपनी जाति को प्राथमिकता देते हैं, और पीके की गैर-जातिगत रणनीति को तोड़ना मुश्किल होगा. इसके अलावा, जन सुराज का संगठन अभी कमजोर है, और उपचुनाव में तीन उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड ने उनकी “स्वच्छ राजनीति” की छवि को नुकसान पहुंचाया. पीके का लक्ष्य बिहार को “नया विकल्प” देना है. उनकी महत्वाकांक्षा एक ऐसी सरकार बनाने की है, जो जातिगत राजनीति से परे हो. सहनी की महत्वाकांक्षा मल्लाह समुदाय को एकजुट कर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने की है. चिराग की ताजपोशी की चाहत (पटना के पोस्टर इसका सबूत हैं) उन्हें जन सुराज के साथ गठबंधन की ओर ले जा सकती है, खासकर अगर एनडीए में उनकी मांग पूरी नहीं होती. कमजोर संगठन के बावजूद, कांग्रेस बिहार में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना चाहती है. पीके की रणनीति उनके लिए नया अवसर हो सकती है.