पटना: बिहार में जिस इलाक़े पर इस बार ख़ास नज़र रह सकती है वो है तो सिर्फ़ तीन ज़िलों का, लेकिन बिहार की पॉलिटिक्स में इसलिए अहम हो जाता है, क्योंकि यहां यादव समुदाय के वोटर काफ़ी तादाद में हैं. वैसे तो कई इलाक़े ऐसे हैं, जहां यादव समुदाय के वोटर अच्छी तादाद में हैं, लेकिन इस इलाक़े के साथ एक कहावत जुड़ी हुई है. रोम पोप का, और मधेपुरा गोप का. गोप यहां पर यादव समुदाय के लोगों को कहा जाता है. तो रोम पोप का और मधेपुरा गोप का.
ये इलाक़ा है कोसी प्रमंडल का इलाक़ा. हम बिहार को प्रमंडलों से समझने की कोशिश कर रहे हैं तो देखते हैं कि ये प्रमंडल कहां हैं बिहार में. बिहार में 243 विधानसभा सीटें हैं. और ये बंटी हुई हैं 38 ज़िलों में. और इन ज़िलों को जोड़-जोड़ कर वहां प्रमंडल बनाए हुए हैं. तो 38 ज़िले जो हैं वो बंटे हुए हैं 9 प्रमंडलों में.
गंगा के किनारों से समझें बिहार के प्रमंडलों को बंटवारा
हर प्रमंडल की अपनी ख़ासियत है. और 9 प्रमंडलों को बांटा जा सकता है गंगा के उत्तर वाले प्रमंडलों में और गंगा के दक्षिण वाले प्रमंडलों में. और इन 9 प्रमंडलों में 5 प्रमंडल पड़ते हैं गंगा के ऊपर नक़्शे में और 4 पड़ते हैं गंगा के नीचे. गंगा लगभग बीच से बहती है बिहार के नक़्शे पर लेफ़्ट से राइट. तो यूपी से बंगाल की तरफ़ चलते हुए गंगा के ऊपर जो 5 प्रमंडल हैं वो हैं सारण, तिरहुत, दरभंगा, कोसी और पूर्णिया.
इसी तरह गंगा के नीचे जो प्रमंडल नक़्शे पर लेफ़्ट से राइट हैं वो हैं पटना प्रमंडल, फिर मगध, फिर मुंगेर और फिर भागलपुर. तो जो गंगा के उत्तर में प्रमंडल हैं उनमें सारण के बाद गंडक नदी आती है और गंडत क्रॉस करने के बाद आता है तिरहुत, फिर दरभंगा और आती है कोसी नदी. मोटे तौर पर कोसी नदी क्रॉस करने के बाद आते हैं तीन ज़िले कोसी प्रमंडल के.
मतलब बिलकुल एक्ज़ैक्ट नदी की बाउंडरी ज़िलों की बाउंडरी नहीं है, लेकिन लेकिन मोटे तौर पर ये कह सकते हैं कि गंगा के उत्तर में यूपी से बंगाल की तरफ़ चलते हुए कोसी नदी क्रॉस करने के बाद जो प्रमंडल है वो है कोसी प्रमंडल. और उसमें हैं तीन ज़िले, सुपौल, सहरसा और मधेपुरा. सबसे उपर नक़्शे में है सुपौल जिसका बॉर्डर नेपाल से लगता है. और नक़्शे पर उसके नीच हैं सहरसा और मधेपुरा ज़िले.
जब पहली बार चर्चा में आया ‘रोम है पोप का, मधेपुरा है गोप का’ नारा
फिर आगे बंगाल की तरफ़ बढ़े तो सीमांचल वाला पूर्णिया प्रमंडल आ जाता है. तो उससे पहले पड़ता है ये कोसी प्रमंडल. रोम पोप का मधेपुरा गोप का, ये कहावत कहां से आई ये तो पता नहीं, लेकिन 1962 के लोक सभा चुनावों से तो इसको सुना ही जा रहा है बिहार में. क्योंकि क्या था कि एक पार्टी होती थी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी. कांग्रेस के ख़िलाफ़ ये एक विपक्षी पार्टी होती थी. वो तो पंडित नहरू की कांग्रेस का दौर था.
तो सहरसा लोक सभा सीट के चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बीएन मंडल ने कांग्रेस के दिग्गज नेता ललित नारायण मिश्रा को सहरसा लोक सभा सीट से हरा दिया था. तो बी. एन. मंडल की जीत को अदालत में चुनौती दी गई थी, ये कहते हुए कि इन्होंने एक पर्चा बंटवाया था क्षेत्र में जिसमें ये नारा लिखा था, रोम है पोप का, मधेपुरा है गोप का. और ये दलील दी गई थी कि ये नारा जातिवादी नारा है इसलिए इनकी जीत को ख़ारिज किया जाए. तबसे ये नारा चर्चा में आ गया.
अदालत ने बीएन मंडल के चुनाव को 1964 में अमान्य घोषित कर दिया था. यानी वो 1962 से 1964 तक सांसद रहे फिर उनकी संसद सदस्यता इसी बात पर चली गई थी. और उनके 6 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लग गई थी. तो ये है वो कोसी प्रमंडल का इलाक़ा और इन तीन ज़िलों में 13 सीटें हैं. और पहले ये तीनों ज़िले एक ही ज़िले में हुआ करते थे, ज़िले का नाम होता था सहरसा.
यादव बाहुल्य सीटों पर भी RJD को जीत नहीं
तब ये कहावत होती थी की रोम पोप का, और मधेपुरा गोप का. अब ये कोसी प्रमंडल बन चुका है तीन ज़िलों के साथ और इसमें 13 विधानसभा सीटें हैं. जिनमें 5 सीटें तो ऐसी हैं, जहां यादव समुदाय के वोटरों की संख्या बाक़ी समुदायों के वोटरों से ज़्यादा हैं. इनमें तीन सीटें सुपौल ज़िले में हैं. ये तीन सीटें हैं निर्मली, पिपरा, और सुपौल की सीट.
इन तीन सीटों में एक भी RJD को नहीं मिली थी. निर्मली और सुपौल जीती थीं JDU ने. और पिपरा जीती थी BJP ने. जो लोग भूल जाते हैं वो फिर नोट कर लें कि JDU यानी नीतीश कुमार की पार्टी पिछले चुनावों में यानी 2020 में BJP की साथ ही थी. यानी सुपौल ज़िले के इन तीनों सीटों पर NDA जीत गया था.
फिर मधेपुरा ज़िले की सीट है आलमनगर, जहां यादव समुदाय के वोटरों की संख्या बाक़ी समुदायों के वोटरों से ज़्यादा है. वो भी JDU ने जीत ली थी. और फिर सहरसा ज़िले की एक सीट है सिमरी बख़्तियारपुर. वो सीट ज़रूर RJD ने जीती थी. यानी कि इस प्रमंडल की 13 सीटों में 5 सीटों पर यादव समुदाय के वोटर निर्णायक भूमिका में हैं, उन 5 में 4 सीटों पर तो NDA जीत गया था. और RJD को सिर्फ़ एक ही सीट मिली थी.
महागठबंधन के लिए चुनौती हैं ये आंकड़े
और टोटल पूरे इस प्रमंडल की सीटें भी देख लें तो, जो प्रमंडल गोप का बताया जाता था कहावत में. तो इस प्रमंडल की 13 सीटों में महागठबंधन को मिली थीं सिर्फ़ 3 सीटें, और NDA ले गया था 10 सीटें. यानी टोटल डॉमिनेशन था NDA का. और वोटों में भी इस प्रमंडल के 3 ज़िलों की 13 सीटों में NDA को पिछली बार मिले थे 43% वोट और महागठबंधन को मिले थे 36%, यानी ये जो नैरेटिव है कि यादव इलाक़े में अब भी लालू यादव के नाम का सिक्का चलता है, वो इस इलाक़े में तो उस तरह दिखा नहीं था जैसा महागठबंधन को उम्मीद रही होगी.
याद रखिये पिछली बार NDA को टोटल 243 में मिली थीं 125 सीटें और महागठबंधन थोड़ा ही पीछे था 110 सीटों के साथ. तो उस छोटी सी बढ़त में NDA के लिए इस प्रमंडल ने बड़ा काम किया था. रोम पोप का, मधेपुरा गोप का, तो देखिये इस बार किस तोप का? क्योंकि इस बार प्रशांत किशोर की पार्टी भी है.

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