नई दिल्ली: जून की पहली तारीख. अचानक कंटेनरों से बाहर निकल यूक्रेनी ड्रोन रूस में प्रकट हुए. यूक्रेन ने 4,000 किलोमीटर अंदर तक जाकर कई रूसी एयरबेस को तबाह कर दिया. इस हमले को नाम दिया गया था ‘ऑपरेशन स्पाइडर वेब’. इस हमले ने दुनिया को चौंका दिया. किसी को यह अंदाजा नहीं था कि रूस को एक ही बार में ऐसी करारी चोट दी जा सकती है. उसके कम से कम 40 एयरक्राफ्ट नष्ट बताए जाते हैं. एक बड़ा सवाल भी उठा- जब रूस जैसे देश के पास S-400 और S-500 जैसे एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम हैं, तब भी वो इन्हें रोक क्यों नहीं पाया? इस सवाल का जवाब भारत के हालिया शौर्य में मिलता है. भारत सिर्फ S-400 जैसे हाई-एंड सिस्टम पर निर्भर नहीं है. भारत का मॉडल अब ‘लेयर्ड डिफेंस’ यानी परत-दर-परत एयर डिफेंस है, जिसमें स्वदेशी रडार, L-70 गन, आकाश मिसाइल और अब Akashteer जैसे स्मार्ट कंट्रोल सिस्टम भी शामिल हैं.
रूस ने दुनिया का सबसे महंगा सिस्टम तैनात किया, लेकिन बिना लो-लेवल डिफेंस, बिना यूनिफाइड कमांड, और बिना इंटेलिजेंस नेटवर्क के, वो नाकाम हो गया. भारत ने दिखाया कि टेक्नोलॉजी के साथ अगर लोकल बुद्धिमत्ता, स्वदेशी विकास और स्मार्ट इंटीग्रेशन हो तो दुश्मन कितना भी हाईटेक क्यों न हो, उसकी चालें विफल होंगी.
रूस का ‘S-400’ क्यों फेल हुआ?
रूस की असफलता S-400 की नहीं थी, बल्कि उस सिस्टम के इंटेलिजेंस नेटवर्क और लेयरिंग की थी. ड्रोन बहुत कम ऊंचाई से लॉन्च हुए, वो भी रूस के भीतर से. इससे लंबी दूरी तक काम करने वाले S-400 जैसे सिस्टम उन्हें ट्रैक ही नहीं कर पाए. नतीजा—41 बमवर्षक विमान जलकर खाक हो गए.
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भारत का फॉर्मूला: ‘हाई-टेक + लो-लेवल डिफेंस’ का मेल
भारत ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जो जवाबी हमला किया, वो इस फॉर्मूले की सफलता का प्रमाण है. पाकिस्तान के 15 शहरों पर हुए ड्रोन और मिसाइल अटैक को न सिर्फ रोका गया, बल्कि भारत ने जवाबी स्ट्राइक में उनके एयर डिफेंस रडार, HQ-9 सिस्टम और टेररिस्ट कैंप्स को तबाह कर दिया. इस जवाबी कार्रवाई में सिर्फ S-400 ही नहीं, बल्कि L-70 एंटी-एयरक्राफ्ट गन, आकाश मिसाइल सिस्टम, HARPY ड्रोन और सबसे खास ‘आकाशतीर’ ने निर्णायक भूमिका निभाई.
आकाशतीर: भारत की आंख, कान और दिमाग
आकाशतीर सिर्फ एक रडार नहीं, ये एक रियल-टाइम ऑटोमेटेड एयर डिफेंस कंट्रोल सिस्टम है. ये न सिर्फ दुश्मन की हरकत को ट्रैक करता है, बल्कि एक साथ एयरफोर्स, नेवी और आर्मी की यूनिट्स को एक ही कमांड प्लेटफॉर्म से कनेक्ट करता है.
इसका फायदा?
तेजी से निर्णय और जवाबी हमला ड्रोन, मिसाइल और एयरक्राफ्ट के खिलाफ 360 डिग्री कवरेज फ्रेंडली फायर की आशंका न के बराबरL-70 और आकाश मिसाइल: आधुनिक बनाम पारंपरिक का कॉम्बो
पुरानी मानी जाने वाली L-70 गन को अब नए इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल सिस्टम और रडार के साथ अपग्रेड कर दिया गया है. ये 3,000 मीटर तक कम ऊंचाई पर उड़ने वाले ड्रोन और हेलिकॉप्टर को मिनटों में गिरा सकती है. वहीं आकाश मिसाइल 25 किलोमीटर की रेंज में आने वाली किसी भी हवाई वस्तु को इंटरसेप्ट कर सकती है.
जब ये दोनों एक साथ किसी ‘बैटल ग्रिड’ में होते हैं, तो न सिर्फ हाई-फ्लाइंग टारगेट बल्कि जमीन के बेहद करीब उड़ रहे खतरों को भी खत्म किया जा सकता है.
पुतिन का ‘बदला’?
अब नहीं बचेगा यूक्रेन!
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क्यों जरूरी है यह मिक्स-मैच फॉर्मूला?
ड्रोन वॉरफेयर का नया युग
यूक्रेन-रूस युद्ध ने दिखाया कि एक कंटेनर या ट्रक से लॉन्च किए गए सैकड़ों छोटे ड्रोन, दुनिया के सबसे हाईटेक सिस्टम को भी बाईपास कर सकते हैं.
असिमेट्रिक वॉरफेयर की चुनौती
पाकिस्तान, चीन या किसी भी विरोधी से भविष्य के युद्ध सीमित और रेगुलर नहीं होंगे. उनमें क्रॉस-बॉर्डर टेररिज्म, ड्रोन अटैक, सैटेलाइट ब्लाइंडिंग जैसे अनजाने खतरे होंगे.
भारत का भूगोल और संवेदनशील सीमाएं
पाकिस्तान से लेकर चीन तक की सीमा पर भारत को मल्टी-थ्रेट स्कैनिंग और फुल कवरेज एयर डिफेंस चाहिए, जो एक अकेला सिस्टम नहीं कर सकता.
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Make in India: आत्मनिर्भर रक्षा का असली मतलब
आज आकाशतीर, आकाश मिसाइल, L-70 अपग्रेडेड गन, स्वदेशी रडार और मॉड्यूलर एयर डिफेंस सिस्टम भारत में ही बन रहे हैं. इससे न सिर्फ युद्ध क्षमता मजबूत हुई है, बल्कि हर मिशन के हिसाब से कस्टम कॉम्बो तैयार करना आसान हो गया है. S-400 के साथ अगर L-70 और आकाशतीर जैसे सिस्टम हों तो कोई भी ऑपरेशन स्पाइडर वेब नहीं चलेगा.