Last Updated:December 22, 2025, 22:53 IST
अरावली पहाड़ी को लेकर भूपेंद्र यादव ने कांग्रेस पर हमला बोला. (फाइल फोटो)नई दिल्ली. केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने सोमवार को कांग्रेस पर अरावली की नई परिभाषा के मुद्दे पर ‘गलत सूचना’ और ‘झूठ’ फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा कि पर्वत श्रृंखला के केवल 0.19 प्रतिशत हिस्से में ही कानूनी रूप से खनन किया जा सकता है. यादव ने यहां प्रेसवार्ता में कहा कि नरेन्द्र मोदी सरकार अरावली की सुरक्षा और पुनर्स्थापन के लिए ‘पूरी तरह से प्रतिबद्ध’ है. उन्होंने आरोप लगाया, “कांग्रेस ने अपने शासनकाल में राजस्थान में बड़े पैमाने पर अवैध खनन की अनुमति दी, लेकिन वह अब इस मुद्दे पर भ्रम, गलत सूचना और झूठ फैला रही है.”
उन्होंने कहा कि पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिश पर उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुमोदित नई परिभाषा का उद्देश्य ‘अवैध खनन पर अंकुश लगाना’ और ‘कानूनी रूप से टिकाऊ खनन’ की अनुमति देना है तथा वह भी तब होगा जब भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) संपोषणीय खनन के लिए प्रबंधन योजना (एमपीएसएम) तैयार कर लेती है. सूत्रों ने कहा कि आईसीएफआरई उन क्षेत्रों की पहचान करेगी जहां केवल असाधारण और वैज्ञानिक रूप से उचित परिस्थितियों में ही खनन की अनुमति दी जा सकती है.
उन्होंने कहा कि अध्ययन अरावली परिदृश्य के भीतर पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील, संरक्षण-महत्वपूर्ण और बहाली-प्राथमिकता वाले क्षेत्रों का भी निर्धारण करेगा जहां खनन पर सख्त प्रतिबंध होगा. यादव ने कहा कि कानूनी रूप से स्वीकृत खनन वर्तमान में अरावली क्षेत्र के केवल एक बहुत छोटे हिस्से में होगा, जो राजस्थान, हरियाणा और गुजरात के 37 अरावली जिलों के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 0.19 प्रतिशत है. दिल्ली के पांच जिले अरावली क्षेत्र में हैं जहां किसी भी खनन की अनुमति नहीं है.
यादव ने कहा कि शीर्ष अदालत के निर्देशों के अनुसार, अरावली क्षेत्र में कोई भी नया खनन पट्टा तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद द्वारा संपूर्ण परिदृश्य के लिए सतत खनन प्रबंधन योजना तैयार नहीं कर ली जाती. मौजूदा खदानें केवल तभी परिचालन जारी रख सकती हैं, जब वे समिति द्वारा निर्धारित टिकाऊ खनन मानदंडों का सख्ती से पालन करती हैं. नवंबर 2025 में, शीर्ष अदालत ने पर्यावरण मंत्रालय के नेतृत्व वाली एक समिति की सिफारिश पर अरावली पहाड़ियों और अरावली रेंज की एक समान कानूनी परिभाषा को स्वीकार कर लिया. इस परिभाषा के तहत, ‘अरावली पहाड़ी’ अपने आसपास के इलाके से कम से कम 100 मीटर की ऊंचाई वाली एक भू-आकृति है और ‘अरावली रेंज’ एक दूसरे के 500 मीटर के भीतर दो या दो से अधिक ऐसी पहाड़ियों का समूह है.
पर्यावरणविदों और कुछ वैज्ञानिकों समेत आलोचकों का तर्क है कि अरावली प्रणाली के कई पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण हिस्से 100 मीटर की सीमा (उदाहरण के लिए, निचली चोटियां, ढलान, तलहटी और पुनर्भरण क्षेत्र) को पूरा नहीं करते हैं, फिर भी भूजल पुनर्भरण, जैव विविधता समर्थन, और मिट्टी की स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने चेतावनी दी है कि नई परिभाषा के तहत बाहर किए गए क्षेत्रों को खनन, निर्माण और वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए खोला जा सकता है, जिससे लंबे समय से चली आ रही सुरक्षा और पारिस्थितिकी निरंतरता कमजोर हो जाएगी.
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राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h...और पढ़ें
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
December 22, 2025, 22:53 IST

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