Last Updated:December 30, 2025, 18:37 IST
Aravali Hills News: सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत की तीन जजों की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पलटते हुए पुराने आदेश पर रोक लगा दी है. असल में अरावली हिल्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने सरकारी समिति की सिफारिश पर अरावली पहाड़ियों की ऊंचाई 100 मीटर तय की गई थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने पुराने आदेश पर तब तक के लिए स्थगित रखने का फैसला दिया है जब तक विशेषज्ञों की हाईलेवल कमेटी अपनी रिपोर्ट नहीं सौंप देती है. पहले के फैसले पर रोक लगाते हुए मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत, जस्टिस जे के माहेश्वरी और जस्टिस ए जी मसीह की वेकेशन बेंच ने कहाकि प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि समिति की रिपोर्ट और इस अदालत के फैसले में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों को स्पष्ट रूप से स्पष्ट नहीं किया गया है. यह रोक तब तक प्रभावी रहेगी जब तक मौजूदा कार्यवाही तार्किक निष्कर्ष तक नहीं पहुंच जाती, ताकि मौजूदा ढांचे के आधार पर कोई भी अपूरणीय प्रशासनिक या पारिस्थितिकीय कार्रवाई न की जाए.
अरवाली हिल्स पर क्या था वो पुराना फैसला जिसे सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई की बेंच ने पलटानई दिल्ली. 20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वत श्रृंखला (Aravalli Hills) से जुड़े एक अहम पर्यावरण मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया था और जब इसको लेकर लोगों ने विरोध किया तो सुप्रीम कोर्ट ने फिर से सुनवाई की और अपने ही पुराने फैसले को पलट दिया. असल में अरावली पर्वतमाला भारत की सबसे पुरानी पहाड़ियों में से एक है और यह लगभग 700 किलोमीटर लंबी है और दिल्ली-एनसीआर से लेकर राजस्थान, हरियाणा और गुजरात तक फैली हुई है. यह पहाड़ियां इसलिए भी अहम है क्योंकि इससे पानी की सुरक्षा और रेगिस्तान को रोकने में अहम माना जाता है. यह मामला मुख्य तौर पर यह है कि अरावली की ‘परिभाषा’ कैसे की जाएगी यानी किन भू-भागों को ‘अरावली’ माना जाए ताकि वहां खनन और निर्माण पर क़ानूनी सुरक्षा जारी रहे.
क्यों सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही आदेश पर लगाई रोक?
लोगों के विरोध के बाद 28-29 दिसंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर के अपने ही फैसले को रोक लगा दी और इसे प्रभावहीन कर दिया. मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की तीन जजों की नई बेंच ने कहा कि प्रारंभिक फैसले और तकनीकी समिति की रिपोर्ट में कई “विवादास्पद मुद्दे” स्पष्ट नहीं हैं, वैज्ञानिक तथा पारिस्थितिक दृष्टि से इन पर गंभीर समीक्षा की आवश्यकता है और एक हाईपावर एक्सर्प्ट कमेटी बनाकर पूरी जांच की जाएगी और तब तक 20 नवंबर का आदेश लागू नहीं होगा.
CJI सूर्यकांत VS Ex CJI गवई
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने अरवली हिल्स मामले में फैसला सुनाते हुए नवंबर के फैसले पर रोक लगाई है. इस बेंच ने 100 मीटर परिभाषा सहित पुराने निर्णय को रोकते हुए सुनवाई 21 जनवरी 2026 के लिए पुनर्निर्धारित कर दिया. इससे पहले पूर्व मुख्य न्यायाधीश (Ex. CJI) भानु प्रभाकर गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजरिया की बेंच ने सुनाया था. इस बेंच ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की तकनीकी समिति द्वारा सुझाई गई ‘100 मीटर ऊंचाई वाली परिभाषा’ को स्वीकार कर लिया गया था. यानी वह भू-भाग जो जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचा है उसे ही ‘अरावली हिल्स’ माना जाएगा. इस पर अरावली के कई ऊंचे और निचले हिस्सों पर खनन नियंत्रण और संरक्षण जैसे नियम लागू हुए थे.
क्या था सुप्रीम कोर्ट के पहले फैसले का मतलब
इस फैसले का यह मतलब हुआ कि अरावली की लगभग 90%-96% पहाड़ियां जो 100 मीटर से नीचे थीं संरक्षण के दायरे से बाहर हो सकती थीं और खनन/निर्माण के लिए खुल सकती थीं. यह निर्णय विशेष बेंच ने पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट और सुझाव के आधार पर लिया था ताकि एक ‘एक समान’ (uniform) नीति लागू हो लेकिन इस पर प्रदूषण नियंत्रण समूहों और स्थानीय अभियानों ने कड़ी आपत्ति जताई।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का दूसरा फैसला?
उसके बाद दिसंबर 2025 के आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही पुराने आदेश पर रोक लगा दी. यह चीफ जस्टिस (CJI) सूर्यकांत, जस्टिस जे. के. माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की तीन जजों की वेकेशन बेंच थी, जिसने मामला खुद से सुनवाई के लिए लिया और कहा कि पहले दिए गए 100 मीटर नियम पर अभी उसे लागू नहीं किया जाएगा. पहले आदेश में प्रयोग किए गए वैज्ञानिक व भू-विज्ञान संबंधी तथ्यों को नई विशेषज्ञ समिति से फिर से जांचा जाएगा. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चार राज्यों को नोटिस जारी किया गया और अगली सुनवाई 21 जनवरी 2026 के लिए तय की गई है.
क्यों सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही पहले फैसले को पलटा?
100 मीटर परिभाषा पर गंभीर विवाद: इस नियम से कई छोटे-ऊंचे भाग जो पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण हैं वह संरक्षण से बाहर हो सकते थे. वन सर्वेक्षण और विशेषज्ञ राय: विशेषज्ञ समूह और फ़ॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया जैसे स्रोतों के अनुसार यदि केवल ऊंचाई को आधार बनाया जाए, तो मौजूदा अरावली का बहुत बड़ा हिस्सा (जैसे घने जंगल और भूजल पुनर्भरण जोन) निरस्त्र रह जाता है. राजनीतिक और पर्यावरणीय प्रतिक्रिया: राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली जैसे क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विरोध और पर्यावरणविदों की चिंता बढ़ी. कोर्ट ने निष्पक्ष और वैज्ञानिक आधार पर नई कमिटी सलाह मांगी. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही आदेश पर रोका लगाकर नई विशेषज्ञ समिति बनाने का निर्णय लिया है.पहले किन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को पलटा है?
1- मेनका गांधी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1978)
सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान बेंच ने अपने ही पुराने निर्णय A.K. गोपालन बनाम मद्रास राज्य (1950) को खारिज कर दिया था. पुराने फैसले में कोर्ट ने कहा था कि संवैधानिक संरक्षण सीमित है, जबकि मनिका गांधी केस ने कहा कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Article 21) को व्यापक रूप से समझना चाहिए और प्रशासन को न्यायसंगत प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है. यानी पहले का नियम बदलकर एक व्यापक मानवाधिकार व्याख्या अपनाई गई.
2- सुरेश कुमार कौशल Vs नाज फाउंडेशन (2013)
दिसंबर 2013 में 2 जजों की बेंच ने सेक्शन 377 (समलैंगिकता) को वैध बताया था और दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को पलट दिया था. लेकिन 2018 में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान बेंच ने यह फैसला पलटते हुए कहा कि सेक्शन 377 समानलिंगिक संबंधों को वैध नहीं मानता लेकिन कंसेंसुअल समलैंगिक संबंधों पर लागू नहीं होगा यानी पुराने फैसले को उलट दिया गया.
3- आरक्षण के भीतर कोटा/सब-कैटेगरी (2024)
साल 2004 में एक 5 जजों की बेंच ने कहा था कि SC/ST के भीतर सब-कैटेगरी नहीं बनाई जा सकती यानी सब-कैटेगरी नहीं मानेंगे. लेकिन 1 अगस्त 2024 को 7 जजों की संविधान बेंच ने यह फैसला पलट दिया और कहा कि अब उप-कोटा मान्य है ताकि अधिक पिछड़े लोग भी लाभ उठा सकें. यह भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने पुराने दृष्टिकोण को बदलने का बड़ा उदाहरण है.
4- एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला (1976)
यह भारत का एक विवादास्पद फैसला था जब आपातकाल के दौरान कोर्ट ने कहा कि हैबियस कॉर्पस (दमन के खिलाफ सुरक्षा) के अधिकार के तहत कोई राहत नहीं दी जा सकती. यह फैसला बाद में खराब माना गया और 2017 में पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले में इसे उलट दिया गया. अब कहा गया कि मौलिक अधिकार के संरक्षण को सख्ती से देखा जाएगा.
5) राज्यपाल के अधिकारों पर (2025 राष्ट्रपति रेफरेंस निर्णय)
साल 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही पुराने नजरिए को बदलते हुए यह कहा कि राज्यपाल के व्यापक विवेकाधिकार को सीमित नहीं करना चाहिए और एक पुराने फैसले को असंवैधानिक करार दिया है. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल का रोल संवैधानिक रूप से महत्वपूर्ण है और कुछ मामलों में विवेकधिकार अहम होता है.
Location :
Delhi,Delhi,Delhi
First Published :
December 30, 2025, 18:37 IST

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