आखिर क्यों पाकिस्तान में सेना और सरकार की कभी नहीं बनती, डरती रहती है सरकार

4 hours ago

भारत से तनाव के बीच ये खबरें आ रही हैं कि इन दिनों पाकिस्तान सरकार और सेना के बीच जबरदस्त टेंशन है. सरकार जो कुछ चाहती है, सेना वो मानना नहीं चाहती. उसे ये तो बिल्कुल पसंद ही नहीं कि सरकार बताए कि क्या करना है और क्या नहीं. दोनों हमेशा अलग राह चलते हैं. दुनिया में शायद कोई ऐसा देश हो जहां सेना और सरकार के बीच हमेशा 36 का आंकड़ा रहता हो. कहा जाता है कि पाकिस्तान में बनने वाली कोई भी सरकार सबसे ज्यादा अगर किसी से डरती है तो अपनी ही सेना से.

पाकिस्तान में सेना का प्रभाव और उसकी राजनीतिक भूमिका एक जटिल और गहरा विषय है. ये बात पाकिस्तान के लिए हर कोई कहता रहा है कि वहां सेना और सरकार के बीच कभी नहीं बनती. कई मायनों में सेना की ताकत और प्रभाव सरकार से कहीं ज्यादा है.

पाकिस्तान की स्थापना 1947 में भारत के विभाजन के साथ हुई. तब से ही सेना देश की राजनीति में एक प्रमुख शक्ति रही है. पाकिस्तान को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा – आर्थिक अस्थिरता, क्षेत्रीय विवाद से लेकर आंतरिक तनाव तक. इसमें सेना ने खुद को सुरक्षा के रक्षक के रूप में स्थापित किया.

कई बार हो चुका सैन्य तख्तापलट
पाकिस्तान के इतिहास में कई बार सैन्य तख्तापलट हुए. जनरल अयूब खान (1958-1969), जनरल याह्या खान (1969-1971), जनरल जिया-उल-हक (1977-1988) और जनरल परवेज मुशर्रफ (1999-2008) जैसे सैन्य नेताओं ने लंबे समय तक देश पर शासन किया. इन तख्तापलटों ने सेना को एक ऐसी संस्था के रूप में स्थापित किया, जो न केवल सुरक्षा देती है बल्कि राजनीतिक और प्रशासनिक मामलों में भी हस्तक्षेप कर सकती है. इसने सेना को एक ऐसी शक्ति बना दिया, जो सरकार के ऊपर हावी रहती है.

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पाकिस्तान के इतिहास में कई बार सैन्य तख्तापलट हुए. इसी वजह से कई बार देश का शासन सेना प्रमुखों ने संभाला है. (News18 AI)

सेना की ताकत के कारण
पाकिस्तान की सेना ना केवल सैन्य बल के रूप में काम करती है बल्कि आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में भी इसका बहुत असर है. सेना कई तरह के बिजनेस भी चलाती है, जैसे रियल एस्टेट, उर्वरक और अन्य उद्योग. इससे सेना को आर्थिक स्वायत्तता मिलती है, जो उसे सरकार पर निर्भर रहने से बचाती है.

जनता क्या सोचती है सेना के बारे में
भारत के साथ लंबे समय से चले आ रहे तनाव और कश्मीर मुद्दे ने सेना को राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रतीक के रूप में स्थापित कर दिया. लिहाजा पाकिस्तान जनता को लगता है सेना ही है जो उसकी भी रक्षा करती है और देश की भी. ये इमेज सेना को सरकार के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद देती है.

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पाकिस्तान में आईएसआई ताकतवर खुफिया एजेंसी है. राजनीतिक तौर पर भी उसका प्रभाव बहुत ज्यादा रहता है. (News18 AI)

आईएसआई का पूरा दखल
इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) पाकिस्तान की सबसे शक्तिशाली खुफिया एजेंसी है, जो सेना के अधीन काम बेशक करती है लेकिन इसका राजनीतिक मामलों में भी गहरा प्रभाव है. ये सरकारों को नियंत्रित करने या अस्थिर करने में सक्षम रही है.

सियासी दल कमजोर हैं
पाकिस्तान में राजनीतिक दल और नेता आमतौर पर कमजोर रहे हैं और अगर उन्होंने ताकतवर होने की कभी कोशिश की तो सेना उनके पर कतर देती है, जैसा इमरान खान के मामले में हुआ. सियासी कमजोरी ने सेना के लिए रास्ता आसान किया है.

क्यों पाकिस्तान सरकार अपनी ही सेना से डरती है
पाकिस्तान की सरकारों को हमेशा डर बना रहता है कि सेना किसी भी समय सत्ता पर कब्जा कर सकती है. ऐतिहासिक रूप से सेना ने कई बार लोकतांत्रिक सरकारों को अपदस्थ किया है, जिसके कारण सिविलियन नेता सेना के साथ टकराव से बचते हैं.
विदेश नीति, विशेष रूप से भारत, अफगानिस्तान, और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंधों के मामले में सेना का दबदबा रहता है. सरकारें इन मामलों में सेना की मंजूरी के बिना कोई बड़ा कदम नहीं उठा सकतीं.

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पाकिस्तान की सरकारें हमेशा अपनी ही सेना से डरती रहती हैं कि पता नहीं कब सेना सत्ता पर कब्जा करके उन्हें गद्दी से हटा दे. (News18AI)

सेना का मीडिया और जनमत पर भी गहरा प्रभाव है. सेना के समर्थन में प्रचार और सरकार के खिलाफ नकारात्मक कवरेज से सरकारें दबाव में रहती हैं.

सेना के सीधे अंतरराष्ट्रीय संबंध
कई बार सरकारें आर्थिक संकटों से जूझती हैं और ऐसे में सेना की आर्थिक शक्ति और अंतरराष्ट्रीय संबंध उन्हें और कमजोर करते हैं. सेना के पास अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और सऊदी अरब जैसे देशों के साथ सीधे संबंध हैं, जो सरकार को दरकिनार कर सेना को और मजबूत करते हैं.

सेना और सरकार के बीच असंतुलन से क्या होता है
सेना और सरकार के बीच यह असंतुलन पाकिस्तान के लोकतंत्र को कमजोर करता है. लोकतांत्रिक संस्थाएं, जैसे कि संसद और न्यायपालिका, सेना के प्रभाव के सामने अक्सर कमजोर पड़ जाती हैं. इससे देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती है. आम जनता का विश्वास लोकतांत्रिक प्रक्रिया में कम होता है. सेना का विदेश नीति पर नियंत्रण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की छवि को प्रभावित करता है, क्योंकि इसे अक्सर आतंकवादियों और कट्टरपंथी समूहों के साथ संबंधों से जोड़ा जाता है.

शहबाज सरकार से सेना के कैसे रिश्ते
खबरें हैं कि शहबाज शरीफ सरकार और पाकिस्तानी सेना के बीच तनाव की स्थिति है, जो मुख्य रूप से भारत के साथ हाल के तनाव, सेना के भीतर असंतोष, और सरकार की कमजोर स्थिति से पैदा हुई है.
कुछ X पोस्ट्स में दावा किया गया है कि सेना सरकार के फैसलों को नियंत्रित कर रही है, शहबाज शरीफ बैकफुट पर हैं. X पर एक पोस्ट में दावा किया गया कि सेना सरकार से ज्यादा फैसले ले रही है.

पाकिस्तान सरकार कभी सेना को आर्डर देने की स्थिति में 
दूसरे देशों में हमेशा सरकार की इतनी मजबूत पोजिशन रहती है कि वो आर्डर देती है और सेना उसी तरह से काम करती है लेकिन पाकिस्तान में ऐसा नहीं होता. वहां सरकार कभी सेना को किसी भी तरह के आर्डर देने की स्थिति में नहीं रहती है.

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