आजाद हुआ भारत का राज्य, पर पुर्तगाली संसद में खाली रही उसके नाम की कुर्सी

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Last Updated:December 19, 2025, 12:54 IST

Goa Liberation Day: गोवा को 1961 में ऑपरेशन विजय के तहत भारत ने पुर्तगाली शासन से मुक्त कराया. लेकिन पुर्तगाल की संसद में गोवा की सीट 1974 तक खाली रही. बाद में पुर्तगाल ने गोवा पर भारत की संप्रभुता को स्वीकार किया.

आजाद हुआ भारत का राज्य, पर पुर्तगाली संसद में खाली रही उसके नाम की कुर्सीपुर्तगाली संसद को 'असेम्बलिया दा रिपब्लिका' कहा जाता है, जो पुर्तगाल की एकसदनीय विधायिका है. यह लिस्बन में स्थित है.

Goa Liberation Day: 19 दिसंबर को गोवा मुक्ति दिवस मनाया जाता है. हालांकि भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ था, लेकिन गोवा को 1961 में यह दिन देखने को मिला था. गोवा 450 सालों से पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन के अधीन था. गोवा को पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराने के लिए पहले भारत ने वर्षों तक राजनयिक प्रयास किए. जब कामयाबी नहीं मिली तो भारत द्वारा 17 से 19 दिसंबर तक ऑपरेशन विजय को अंजाम दिया गया. भारतीय सशस्त्र बलों के एक रणनीतिक सैन्य अभियान द्वारा गोवा को मुक्त कराया. सैन्य संघर्ष 17 दिसंबर को शुरू हुआ और महज 36 घंटों के भीतर भारतीय सेना ने गोवा के अधिकांश हिस्से पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लिया.

19 दिसंबर 1961 को पुर्तगाली गवर्नर-जनरल वासालो ई सिल्वा ने आत्मसमर्पण कर दिया, जिससे गोवा, दमन और दीव की मुक्ति हुई. इस प्रकार वे भारतीय संघ का हिस्सा बन गए और 1987 में उन्हें पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया. यह अभियान भारत के औपनिवेशिक काल के बाद के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था, जिसने देश के सभी क्षेत्रों को एकीकृत करने के संकल्प को प्रदर्शित किया. परिणामस्वरूप, गोवा मुक्ति दिवस हर साल 19 दिसंबर को मनाया जाता है. यह उन सैन्यकर्मियों को भी श्रद्धांजलि अर्पित करता है जिन्होंने ऑपरेशन विजय के दौरान अपने प्राणों का बलिदान दिया और गोवा को पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराया.

तानाशाह सालाज़ार की जिद

लेकिन क्या आप जानते हैं कि पुर्तगाल की संसद कोर्टेस (या असेम्बली ऑफ द रिपब्लिक) में गोवा के प्रतिनिधित्व के लिए तीन सीटें रिजर्व थीं. क्योंकि 1911 के पुर्तगाली संविधान और बाद के संस्करणों के तहत गोवा, दमन और दीव को पुर्तगाल का अभिन्न विदेशी प्रांत माना जाता था, न कि केवल उपनिवेश. संसद में उसके लिए रिजर्व सीट गोवा के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करती थी. दिलचस्प बात ये है कि गोवा के आजाद होने के बाद भी पुर्तगाल की संसद में उसकी सीट बरकरार रही, भले ही उन पर बैठने वाला कोई नहीं था. पुर्तगाल के तानाशाह एंटोनियो डी ओलिवेरा सालाज़ार का मानना था कि गोवा, दमन और दीव केवल उपनिवेश नहीं, बल्कि पुर्तगाल के ‘विदेशी प्रांत’ और उसका अभिन्न हिस्सा हैं.

19 दिसंबर 1961 को आजाद हुआ था गोवा. इसकी आजादी के लिए चलाया गया था ऑपरेशन विजय.

खाली रखी कईं सांकेतिक सीटें

जब भारत ने सैन्य कार्रवाई की तो सालाज़ार ने इसे अवैध कब्जा माना और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कभी स्वीकार नहीं किया कि गोवा अब भारत का हिस्सा है. पुर्तगाली संविधान के अनुसार उनके ‘विदेशी प्रांतों’ को संसद में प्रतिनिधित्व का अधिकार था. इस दर्जे का मतलब था कि गोवावासी पुर्तगाल की मुख्य भूमि की तरह ही पुर्तगाली संसद में निर्वाचित प्रतिनिधियों को भेज सकते थे, जिससे लिस्बन में उनकी आवाज सुनिश्चित हो जाती थी. 1961 में गोवा के भारत में विलय के बाद भी पुर्तगाल ने अपने नक्शे नहीं बदले. संसद में गोवा के प्रतिनिधियों के लिए सांकेतिक सीटें खाली रखी गईं. पुर्तगाल का तर्क था कि भले ही जमीन पर कब्जा हो गया हो, लेकिन कानूनी तौर पर वह भूमि अभी भी पुर्तगाल की है.

1974 तक बनी रही यह स्थिति

सालाज़ार प्रशासन ने लिस्बन में एक प्रकार की निर्वासित सरकार की मानसिकता पाल रखी थी. वे उम्मीद करते थे कि एक दिन अंतरराष्ट्रीय दबाव में भारत को गोवा वापस करना पड़ेगा. इसीलिए, जब तक सालाज़ार सत्ता में रहे और उसके कुछ समय बाद तक वे संसद की उन सीटों को यह दिखाने के लिए खाली रखते थे कि उनका दावा अभी भी कायम है. यह स्थिति 1974 तक बनी रही. पुर्तगाल में ‘कार्नेशन रिवोल्यूशन’ हुई, जिससे वहां के तानाशाही शासन का अंत हुआ और लोकतंत्र की स्थापना हुई. नई सरकार ने हालात को स्वीकार किया. 31 दिसंबर 1974 को भारत और पुर्तगाल के बीच एक संधि हुई. पुर्तगाल ने आधिकारिक तौर पर गोवा पर भारत की संप्रभुता को मान्यता दी. इसके बाद ही पुर्तगाली संसद से वे ‘खाली सीटें’ हटाई गईं और राजनयिक संबंध दोबारा बहाल हुए.

1961 से पहले जन्मे लोग पुर्तगाली नागरिक

पुर्तगाल के इसी ‘अखंड पुर्तगाल’ वाले दावे का एक असर आज भी दिखता है. चूंकि वे 1974 तक गोवा को अपना हिस्सा मानते थे, इसलिए उन्होंने नियम बनाया कि 1961 से पहले गोवा में जन्मे लोग और उनकी तीन पीढ़ियां पुर्तगाली नागरिकता की हकदार हैं. यही कारण है कि आज भी कई गोवावासियों के पास पुर्तगाली पासपोर्ट है.

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

December 19, 2025, 12:54 IST

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